नई दिल्ली: सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए 'स्ट्रेटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट' ने मध्य-पूर्व और दक्षिण एशिया की भू-राजनीति में नई बहस छेड़ दी है. इस समझौते के तहत दोनों देशों ने सहमति जताई है कि किसी एक देश पर हमला दोनों पर हमला माना जाएगा. इस समझौते के बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की मुलाकात की तस्वीरें चर्चा में हैं.
पाकिस्तान इसे मुस्लिम देशों के बीच एकजुटता के रूप में पेश कर रहा है, जबकि भारत में इस समझौते को लेकर चिंता और सवाल उठ रहे हैं. भारत ने इस घटनाक्रम पर सतर्क रुख अपनाते हुए कहा है कि वह इसके प्रभावों का अध्ययन करेगा. भारत-पाकिस्तान के बीच हाल के तनाव, खासकर आतंकी ठिकानों पर भारत की सैन्य कार्रवाई के बाद, यह सवाल उठता है कि अगर भारत भविष्य में पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करता है, तो क्या सऊदी अरब इसे अपने ऊपर हमला मानेगा?
हालांकि, सऊदी अरब के एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्पष्ट किया है कि भारत के साथ उनके रिश्ते पहले से मजबूत हैं और आगे भी प्रगाढ़ होंगे. रक्षा विशेषज्ञ इस समझौते को लेकर आलोचनात्मक रुख अपना रहे हैं. प्रख्यात विश्लेषक डॉ. ब्रह्मा चेलानी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इस डील को सऊदी अरब की महत्वाकांक्षाओं का प्रतीक बताया. उन्होंने लिखा कि सऊदी अरब को भारत की चिंताओं का अंदाजा था, फिर भी उसने यह कदम उठाया.
उनके मुताबिक, यह समझौता सऊदी अरब की रणनीति को दर्शाता है, जो आर्थिक रूप से कमजोर पाकिस्तान का इस्तेमाल अपनी सैन्य और सामरिक ताकत बढ़ाने के लिए कर रहा है. चेलानी ने समझौते की टाइमिंग पर भी सवाल उठाए, क्योंकि यह उसी दिन हुआ जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 75वां जन्मदिन था. उन्होंने इसे भारत के लिए एक झटके के रूप में देखा, खासकर तब जब भारत ने सऊदी अरब के साथ सैन्य सहयोग और रणनीतिक साझेदारी को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं.
विल्सन सेंटर के साउथ एशिया इंस्टिट्यूट के निदेशक माइकल कुगेलमैन ने भी इस समझौते पर टिप्पणी की. उन्होंने एक्स पर लिखा कि यह समझौता पाकिस्तान के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि उसे सऊदी अरब जैसे प्रभावशाली देश का समर्थन मिला है.
उन्होंने कहा कि भले ही यह समझौता भारत को पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई से न रोके, लेकिन चीन, तुर्की और अब सऊदी अरब के समर्थन से पाकिस्तान की स्थिति मजबूत हुई है.यह समझौता भारत के लिए एक जटिल स्थिति पैदा करता है, क्योंकि सऊदी अरब उसका महत्वपूर्ण साझेदार रहा है. भारत को अब इस नए समीकरण के साथ अपनी कूटनीतिक और रक्षा रणनीति को संतुलित करना होगा.