नई दिल्ली: विदेश मंत्रालय (MEA) ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में हाल ही में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बारे में बांग्लादेश की टिप्पणियों को दृढ़ता से खारिज कर दिया, और पड़ोसी देश से आग्रह किया कि वह अपनी सीमाओं के भीतर अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न पर ध्यान दे. बता दें कि शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़े जाने के बाद वहां अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं के खिलाफ हिंसा देखने को मिली है.
बांग्लादेश को आइना दिखाते हुए विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि हम पश्चिम बंगाल की घटनाओं के संबंध में बांग्लादेश की ओर से की गई टिप्पणियों को अस्वीकार करते हैं. यह बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के चल रहे उत्पीड़न पर भारत की चिंताओं के साथ समानता स्थापित करने का एक छिपा हुआ और कपटपूर्ण प्रयास है, जहां इस तरह के कृत्यों के अपराधी खुलेआम घूमते रहते हैं. इसमें कहा गया, "अनुचित टिप्पणी करने और सद्गुणों का प्रदर्शन करने के बजाय, बांग्लादेश को अपने अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए."
बांग्लादेश ने की थी यह टिप्पणी...
भारत की प्रतिक्रिया बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार के प्रेस सचिव शफीकुल आलम द्वारा भारत से अपने मुस्लिम अल्पसंख्यक आबादी की "पूरी तरह से सुरक्षा" करने का आह्वान करने के बाद आई है. आलम ने स्थानीय मीडिया को दिए गए एक बयान के माध्यम से मुर्शिदाबाद हिंसा में किसी भी बांग्लादेशी संलिप्तता से भी इनकार किया था. उन्होंने स्थानीय दैनिक से कहा, "हम मुर्शिदाबाद में सांप्रदायिक हिंसा में बांग्लादेश को शामिल करने के किसी भी प्रयास का दृढ़ता से खंडन करते हैं." वक्फ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान 11 अप्रैल को भड़की हिंसा में तीन लोगों की जान चली गई और कई अन्य घायल हो गए. अशांति के कारण संपत्ति का काफी नुकसान हुआ और कई परिवारों को पलायन करना पड़ा, जिनमें से कुछ ने झारखंड के पाकुर जिले में शरण ली, जबकि अन्य मालदा के राहत शिविरों में चले गए.
कलकत्ता हाईकोर्ट की है नजर
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए मुर्शिदाबाद में केंद्रीय बलों की निरंतर तैनाती का आदेश दिया है. अदालत, जो पीड़ितों के पुनर्वास की निगरानी करेगी, ने भाजपा और टीएमसी सहित राजनीतिक दलों के अधिकारियों को भड़काऊ भाषण देने से परहेज करने का भी निर्देश दिया है, जिससे स्थिति और खराब हो सकती है.