अभिषेक शांडिल्य
32 साल पहले इन पांच नामों ने हिन्दुस्तान को हिला दिया था...बंगाल और ठाणे की घटना पर देश में जो भूचाल आया है, उससे हज़ारों गुना ज्यादा बड़ा विवाद साल 1992 में खड़ा हो गया. कांग्रेस के नेताओं का हाथ था, 100 महिलाओं के साथ ठीक वैसा ही हुआ था, जैसा बंगाल की डॉक्टर के साथ हुआ है. सोचिए एक महिला के साथ ग़लत होने पर कैसे पूरा बंगाल सड़कों पर है. एक महिला के साथ पहले ग़लत होता है. उसकी तस्वीरें ली जाती है, फिर उस महिला के बाद 99 महिलाओं की तस्वीरें ली जाती है. उनके साथ भी बंगाल की डॉक्टर की तरह ही होता है.
ये कहानी दिल थामकर पढ़िए, आपको बहुत गुस्सा आने वाला है. रिपोर्ट स्कीप करने से बेहतर है आप सच को जानिए, दिल थाम कर सोचिए और बताइए इस देश में कैसे वर्षों से कैसा अपराध हो रहा है? हम आज़ भी वहीं हैं जहां 32 साल पहले अजमेर में थे.
ये बात साल 1992 की है..उस वक्त फोन नहीं था, फोटो स्टूडियो होता था. अजमेर के एक फोटो स्टूडियो में एक पत्रकार को एक लड़की की वैसी फोटो मिली. ये ख़बर अख़बार में छपी और बवाल मच गया. स्कूल की लड़की का फोटो छपने के कारण पूरा देश हिल गया. कुछ घण्टों में ही जांच शुरू हुई तो पता चला, 100 या 250 लड़कियों के साथ एक जैसी घटना हुई है. पहले लड़की को बुलाया जाता है. उनकी फोटो ली जाती है, उन्हें डराया जाता है. यहां तक कि उस घटना में पत्रकार भी शामिल थे.
अजमेर में उन दिनों तक 350 के आस-पास अख़बार, पत्रिका या साप्ताहिक अख़बर होते थे, इनमें से कई अख़बार के रिपोर्टर भी शामिल थे. अलग-अलग स्कूल की लड़कियां डर जाती और फिर वो अपने परिवार के बारे में सोच कर घटना में न चाहते हुए भी शामिल हो जाती. कई लड़कियों ने जान तक दे दी थी. अजमेर में इस घटना के बाद हिंसा शुरू हो गई. दरअसल ज्यादातर आरोपी मुस्लिम थे, हिन्दू लड़कियों की संख्या ज्यादा होने के कारण पूरा देश हिल गया.
आरोपियों में कई बेहद प्रभावशाली खादिम परिवार से जुड़े थे, जो दरगाह ख्वाज़ा मोहिनुद्दीन चिश्ती दरगाह के प्रबंधन में शामिल हैं. फारूख और नफीस चिश्ती उस वक्त यूथ कांग्रेस के बड़े नेता थे. ज्यादातर आरोपी, राजनीतिक और आर्थिक रूप से मज़बूत थे. राजस्थान के तात्कालीन मुख्यमंत्री भैरव सिंह शेखावत थे, जो बाद में देश के उपराष्ट्रपति भी बने.
सवाल उठता है आख़िर ये केस खुला कैसे? और इसकी शुरूआत कैसे हुई? सबसे पहले चिश्ती ने सोफिया स्कूल की एक लड़की को अपने जाल में फंसाया, फिर उसके साथ ग़लत करता है. उसी वक्त उसकी तस्वीरें ली जाती हैं. उसके बाद उसको तस्वीरों का डर दिखाया जाता है. पहली लड़की पर इस बात का दवाब डाला गया कि तुम दूसरी लड़की को अपने साथ यहां लेकर आओ, डर के कारण पीड़िता ऐसा ही करती है. दूसरी लड़की के साथ यही होता है. दूसरी लड़की से तीसरी, तीसरी से चौथी, चौथी से पांचवी और ऐसे 250 तक संख्या पहुंचने का दावा किया जाता है.
कई महीने तक खेल चला. कई साल तक वीडियो औऱ फोटो लिया जाता रहा. लड़कियां डर के मारे अपने घर पर कुछ नहीं बताती थी. एक लड़की को एक बार नहीं कई बार बुलाया जाता. दैनिक नवज्योति नाम के अख़बार के हाथ फोटो लगी थी, उसके बाद कई बार ख़बर प्रकाशित की गई, पत्रकार को धमकी मिली, लेकिन वो नहीं माना. एक के बाद एक कई बार वो ख़बर प्रकाशित करते रहे, छात्राओं को ब्लैकमेल करने वाले आज़ाद कैसे रह गए?
सरकार पर जब दबाव बना तो फिर सवाल खड़ा हो गया. जनता ने अजमेर बंद का ऐलान कर दिया. इतना ही नहीं, उस वक्त के राजस्थान के DGP ओमेन्द्र भारद्वाज ने तो इस केस को झूठा तक करार दे दिया था. लड़कियों पर ही सवाल उठाए गए थे. फिर केस CBI के हाथों में आया, जांच तेज़ हुई और फिर जो खुलासा हुआ उसने पूरा देश हिला दिया.
CBI ने खुलासा किया कि युवा कांग्रेस के शहर अध्यक्ष और दरगाह के खादिम चिश्ती परिवार के कई लोगों के शामिल होने की बात सामने आई. इनके नाम फारूक चिश्ती, उपाध्यक्ष नफीस चिश्ती, संयुक्त सचिव अनवर चिश्ती, पूर्व कांग्रेस विधायक के नजदीकी रिश्तेदार अलमास महाराज, जमीर, सोहेल गनी, पुत्तन इलाहाबादी, इशरत अली, इकबाल खान, सलीम, नसीम अहमद उर्फ टार्जन, परवेज अंसारी, मोहिबुल्लाह उर्फ मेराडोना, कैलाश सोनी, महेश लुधानी, पुरुषोत्तम उर्फ जॉन वेसली उर्फ बबना और हरीश तोलानी थे.
ऐसे अमीर और सियासी रसूख वाले लोगों के नाम के खुलासे ने हड़कंप मचा दिया. इतनी बड़ी घटना के बाद भी सिर्फ 8 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था. साल 2000 में पहला फैसला आया था, जिसमें 8 आरोपियों को उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी. देश का सिस्टम देखिए, इतने बड़े कांड पर 4 आरोपियों की सज़ा घटाकर 10 साल कर दी गई. राजस्थान सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची, कोर्ट के दखल के बाद मामला पॉक्सो कोर्ट को भेजा गया.
अब 32 साल बाद 6 आरोपियों को दोषी माना गया और उम्रकैद की सज़ा सुना दी. कुल 18 आरोपी थे, एक ने जेल से ज़मानत मिलने पर जान दी. एक 18 साल बाद पकड़ा गया. 9 लोगों को सज़ा मिली, जबकि सिर्फ 6 को उम्रकैद की सज़ा. सोचिए जब इतनी बड़ी घटना के बाद भी ऐसी लापरवाही सिस्टम से होती है, फिर बंगाल जैसी घटना के बाद न्याय की उम्मीद करना बेईमानी सा लगता है? 32 साल पहले जो हुआ, वो आज भी हो रहा है! 32 साल पहले और आज में क्या फर्क है?