संजय हो सिसोदिया...किसी पर नहीं रहा भरोसा! इतने मजबूर कभी नहीं थे केजरीवाल

Global Bharat 26 Feb 2025 04:13: PM 7 Mins
संजय हो सिसोदिया...किसी पर नहीं रहा भरोसा! इतने मजबूर कभी नहीं थे केजरीवाल

नई दिल्ली: इस कुर्सी के अंदर कुछ न कुछ समस्या है, जो इस कुर्सी के ऊपर बैठता है, वही गड़बड़ हो जाता है. तो कहीं ऐसा तो नहीं कि इस आंदोलन से जब विकल्प निकलेगा और वो लोग जब कुर्सी पर जाकर बैठेंगे, कहीं वो न भ्रष्ट हो जाएं, कहीं वो न गड़बड़ करने लगे, ये भारी चिंता है हम लोगों के मन में. ये शब्द हैं अरविंद केजरीवाल के... उस वक्त केजरीवाल अन्ना हजारे के साथ रामलीला मैदान में अनशन पर बैठे थे. बड़ी-बड़ी बातें कर रहे थे.

अब ये बात अलग है कि आंदोलन से निकले केजरीवाल ने न सिर्फ अन्ना हजारे को किनारे लगा दिया, बल्कि खुद उसी कुर्सी पर बैठ गए, जिसमें वो गड़बड़ की बातें कहा करते थे, और वो भी कांग्रेस का साथ लेकर. आपको याद होगा कि केजरीवाल ने पहली बार कुछ दिनों की सरकार उसी कांग्रेस के साथ मिलकर चलाई थी, जिसे कोस-कोसकर राजनीति में आए. इस बात को एक दशक से ज्यादा हो गया है. केजरीवाल जिस गड़बड़ कुर्सी से इतने वक्त तक चिपके थे, उसे जनता ने ही छीनकर बीजेपी को दे दिया है. क्योंकि केजरीवाल ने ही कहा था कि अगर मैं कट्टर ईमानदार न हूं, तो मुझे वोट न देना. जनता ने फैसला किया और केजरीवाल को कुर्सी से कम से कम 5 सालों के लिए तो दूर ही कर दिया.

अब केजरीवाल ठन-ठन गोपाल हैं. संवैधानिक रूप से उनके पास फिलहाल कोई पद नहीं है. हालांकि उनका कुर्सी मोह अभी भी नहीं छूटने का नाम नहीं ले रहा. दिल्ली नहीं, तो पंजाब में ही सही, केजरीवाल अपनी जमीन तलाशने में लगे हुए हैं. खबर ये आ रही है कि वो राज्यसभा जा सकते हैं. सीट भी लगभग फाइनल हो गई है. लुधियाना पश्चिम सीट, जहां से गुरप्रीत बस्सी गोगी विधायक हुआ करते थे, 10 जनवरी को उनका निधन हो गया. अब ये सीट खाली है, इस पर जल्द ही उपचुनाव होगा.

बताया ये जा रहा है कि केजरीवाल ने यहां संजीव अरोड़ा को उतारने का फैसला किया है. संजीव अरोड़ा अभी राज्यसभा के सांसद हैं. संजीव को उपचुनाव में उतारकर केजरीवाल उनकी जगह राज्यसभा जाने की फिराक में हैं. इसके लिए केजरीवाल ने संजीव अरोड़ा को राज्य मंत्रिमंडल में अच्छा पद दिए जाने का ऑफर भी दे दिया है. अटकलों का बाजार पूरी तरह से गर्म है. अब इसे कुर्सी का मोह न समझा जाए तो क्या समझा जाए.

नई दिल्ली की जनता ने तो भरोसा किया नहीं, अब राज्यसभा ही चारा है. लेकिन केजरीवाल इतने बेचैन क्यों हैं. उन्हें क्यों जरूरत आ पड़ी कि वो राज्यसभा जाएं इसकी कई वजहें हैं. उन वजहों पर आएं उससे पहले एक ट्वीट आपको दिखाता हैं... ये ट्वीट स्वाती मालीवाल ने किया है और लिखा है...कभी दिल्ली का बेटा...कभी हरियाणा का लाल...अब पंजाब दा पुत्तर.

ये वहीं स्वाती मालीवाल हैं, जिन्होंने केजरीवाल के खिलाफ पूरी तरह से मोर्चा खोल रखा है. ये तब से है, जब शीशमहल में स्वाती के साथ बदसलूकी हुई थी और केजरीवाल को चुनाव हरवाने में स्वाती का भी बड़ा रोल रहा है. खैर, वो बातें पुरानी हो चुकी हैं. नई बात केजरीवाल की उस मजबूरी से जुड़ी है, जिसने उन्हें साम-दाम-दंड-भेद की राजनीति करने को मजबूर कर दिया है... क्यों?

वजह नंबर-1: अगर केजरीवाल किसी संवैधानिक पद पर नहीं रहेंगे तो पार्टी में उनका कद और नीचे चला जाएगा, क्योंकि उनके पास कोई मंच बचा नहीं है, जहां वो अपनी बात रख सके. CAG की रिपोर्ट आने के बाद BJP जिस तरह से हमलावर है, ऐसे में जरूरी हो जाता है कि केजरीवाल किसी ऐसे मंच से अपनी बात रखें जहां से उनकी बात हर कोई सुन सके. विधानसभा हो या लोकसभा, चुनाव में अभी 5 सालों का वक्त है. इतने लंबे वक्त में केजरीवाल कहीं विलुप्त न हो जाएं, उनकी सियासत खत्म न हो जाए, ये डर उन्हें जरूर सता रहा होगा. इसीलिए केजरीवाल को राज्यसभा की कुर्सी नजर आ रही है.

वजह नंबर-2: आम आदमी पार्टी केजरीवाल के चेहरे पर खड़ी हुई है, लेकिन इस वक्त केजरीवाल करो या मरो की स्थिति में हैं. उन्हें अच्छे से पता है कि चुनावी हार के बाद जब कांग्रेस जैसी पार्टी इंडिया गठबंधन में चक्की पीसती नजर आई थी, तो उनका क्या ही हाल होगा. विपक्ष के नेता भाव नहीं देंगे और जिस तरह से कांग्रेस ने चुनाव में मोर्चा खोला था, अगर वैसे ही चलता रहा तो AAP पार्टी गायब हो जाएगी. ऐसे में अगर केजरीवाल के ही पास कोई पद नहीं होगा तो उन्हें विपक्ष में छोड़िए, उनकी पार्टी में भी कोई भाव नहीं देगा.

वजह नंबर-3: केजरीवाल का संघर्ष सिर्फ विपक्षी दलों से ही नहीं, बल्कि अपनी ही पार्टी के लोगों से भी है. केजरीवाल जब जेल गए तब भी उन्होंने CM का पद नहीं छोड़ा, लेकिन बाहर आकर सिंपैथी वोट के चक्कर में उन्होंने आतिशी को आगे कर दिया. वोट तो मिला नहीं, हार के बाद अब परेशानी ये है कि आतिशी को जो कमान दी थी, उसे वापस कैसे लिया जाए. क्योंकि सियासत में कोई किसी का सगा नहीं होता, ऐसे में आतिशी कहीं केजरीवाल को रिप्लेस न कर दें, ये खतरा तो बना ही हुआ है. ऐसे में सुरक्षित राज्सभा सीट केजरीवाल के कद को पार्टी में भी बनाए रखने में मदद करेगी.

वजह नंबर-4: केजरीवाल के चुनाव हारते ही पंजाब की सियासत भी डगमगाने लगी है. भगवंत मान कहीं शिंदे न बन जाएं, ये डर भी केजरीवाल के मन में घर कर गया है. इसलिए जरूरी है कि वो अपने विश्वासपात्रों को मान के पीछे लगाएं ताकि पंजाब सरकार के अंदर की हर हलचल पर केजरीवाल नजर रख सकें.

कुल मिलाकर देखा जाए तो केजरीवाल फिलहाल डैमेज कंट्रोल करने में लगे हुए हैं... उन्हें अच्छे से पता है कि ज्यादा छटपटाने से कुछ होगा नहीं, क्योंकि सियासी हवा दूसरी दिशा में बह रही है. उनका पहला ऐम, एक संवैधानिक पद पर बैठना है ताकि जो कंट्रोल खो गया है, वो फिर से बनाया जा सके. हालांकि परेशानी सिर्फ इतनी नहीं है, कैग की रिपोर्ट में जिस तरह से खुलासे हुए हैं. केजरीवाल फिर से जेल की सलाखों के पीछे जा सकते हैं और अगर ऐसा होता है.

वजह नंबर-5: केजरीवाल जेल जाते हैं तो बतौर राज्यसभा सांसद संसद सत्र आने के लिए वो अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे, अगर छूट मिलती है तो महीने-दो महीने या 6 महीने पर एक बार बाहर आ सकते हैं. बेशक सत्र के बहाने ही. एक संकट ये भी है कि आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह, जो सबसे ज्यादा मुखर रहते हैं, समाजवादी पार्टी में शामिल हो सकते हैं, ऐसे कयास लगने लगे हैं. इसलिए आम आदमी पार्टी राज्यसभा में अपना मजबूत चेहरा तलाश रही है और केजरीवाल खुद मोदी के सामने मोर्चा संभालने की तैयारी कर रहे हैं.

वजह नंबर-6: एक वजह ये भी चर्चा में है कि परिणिति के पति राघव चड्ढा भी केजरीवाल का साथ कभी भी भी छोड़ सकते हैं, क्योंकि कैग रिपोर्ट के 200 से ज्यादा पन्नों में राघव चड्ढा का नाम अगर लिखा दिखा, और उन पर शिकंजा कसा तो राघव कुछ भी कर सकते हैं, जब केजरीवाल जेल गए, तब राघव लंदन में थे, उस वक्त भी ऐसी चर्चा थी कि वो दूसरी पार्टी ज्वाइन करने वाले हैं, ऐसे में मुसीबत के वक्त केजरीवाल देश की सबसे बड़ी सदन में खुद ही मोर्चा संभालना चाहेंगे.. जिसका दांव उल्टा भी पड़ सकता है.

वजह नंबर-7: बड़ी बात ये है कि केजरीवाल पर राज्यसभा का टिकट पैसा लेकर बांटने के आरोप लगे, इसे वो राज्यसभा में खड़े होकर भी डिफेंड कर सकते हैं, और खुद वहां जाएंगे तो जैसे मोदी सरकार ने केजरीवाल की सियासी कब्र खोदी है, वैसे ही मल्लिकार्जुन खड़गे और कांग्रेस के बड़े नेताओं के साथ मिलकर मोदी के खिलाफ वाली फाइल देख सकते हैं, और तब सियासत और ज्यादा दिलचस्प हो जाएगी.

अब आते हैं, उस CAG रिपोर्ट पर, जिसने केजरीवाल के रातों की नींद उड़ा रखी है. कैग की इस ऑडिट रिपोर्ट में 2017-18 से लेकर 2020-21 तक यानी कुल 4 सालों तक दिल्ली में शराब पॉलिसी से हुए नुकसान का लेखा-जोखा है. रिपोर्ट की मानें तो शराब नीति में बदलाव के कारण सरकार को 2,002 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, लेकिन आतिशी इसे घोटाला न बताकर सक्सेज पॉलिसी बता रही हैं. उनका कहना है कि कैग रिपोर्ट के आठवें चैप्टर में कहा गया है कि नई एक्साइज पॉलिसी पारदर्शी थी, कालाबाजारी रोकने के उपाय थे.

इससे राजस्व बढ़ना चाहिए था. यही नीति जब पंजाब में लागू हुई तो वहां एक्साइज राजस्व बढ़ गया. इस नीति के कारण 2021 से 2025 तक राजस्व 65 फीसदी बढ़ गया. सिर्फ एक साल में रेवेन्यू 4108 करोड़ से बढ़कर 8911 करोड़ पहुंच गया. नई शराब नीति लागू नहीं हुई, इसलिए 2,000 करोड़ रुपए कम राजस्व इकट्ठा हुआ. इसकी जांच होनी चाहिए कि इसे किसने लागू नहीं होने दिया, इसके लिए तीन लोग जिम्मेदार हैं. पहला- दिल्ली के उपराज्यपाल, दूसरा- CBI और तीसरा- ED. हालांकि ये वार-पलटवार की सियासत है. यहां कुछ भी होना संभव है, क्योंकि न कुर्सी की किसी सगी है और न ही नेता. मजेदार बात ये है कि केजरीवाल सालों पहले खुद ही ये बात कह चुके हैं कि इस कुर्सी के अंदर कुछ न कुछ समस्या है.

Arvind Kejriwal Manish Sisodia Raghav Chadha Delhi Politics

Description of the author

Recent News