राहुल गांधी जहां भी यात्रा निकाल रहे हैं, गाड़ी के आगे खूब भीड़ नजर आ रही है, साइड में लोग खड़े होते हैं, पीछे जहां तक नजरें जाती हैं, लोग ही लोग नजर आते हैं, ऐसे में सवाल ये उठता है कि अगर राहुल गांधी और कांग्रेस का इतना क्रेज ही है तो फिर राहुल अमेठी क्यों हार गए, 2019 के चुनाव में कांग्रेस 60 सीटें भी क्यों नहीं जीत पाई, हमने भी इसका जवाब तलाशने की कोशिश की तो पता चला कि राहुल गांधी के साथ जो लोग चल रहे हैं, उनमें से सैकड़ों की संख्या में लोग हर वक्त उनके साथ हैं। सिविल ड्रेस में कुछ सुरक्षाकर्मी और दर्जनों नेता हर वक्त राहुल के साथ खड़े रहते हैं।
जब आप राहुल की न्याय यात्रा छोटी सड़कों से गुजरते देखेंगे तो वहां भीड़ ज्यादा दिखेगी, लेकिन यही जब हाइवे से होकर गुजरती है तो सिर्फ गाड़ियों का काफिला दिखता है, जिसका मतलब ये होता है कि राहुल गांधी की न्याय यात्रा की भीड़ कैमरे में ज्यादा नजर आ रही है, इसके अलावा कांग्रेस के स्थानीय नेताओं को भी भीड़ इकट्ठी करने की जिम्मेदारी दी जाती है, हर नेता की रैली में भी ऐसा ही होता है, लेकिन स्मृति ईरानी का आरोप इससे हटकर है। उनका दावा है कि राहुल गांधी अमेठी में घुसे तो जनता ने वापस जाओ के नारे के साथ स्वागत किया, खाली सड़कों ने उनका स्वागत किया। ये जो भीड़ थी, ये प्रतापगढ़ और सुल्तानपुर से लेकर आए थे।
जबकि राहुल गांधी का दावा इससे उलट है, उनका कहना है कि अमेठी की जनता ने कहा था कि आपकी यात्रा इधर से नहीं आई तो फिर हमने दूसरी यात्रा निकाली और अब अमेठी की जनता ने भरपूर प्यार दिया है। पर सवाल ये उठता है कि राहुल गांधी और स्मृति ईरानी दोनों ने एक ही तारीख को अमेठी में प्रवेश क्यों किया। क्या दोनों ने एक ही पंडित से मुहूर्त दिखवाया था।
स्मृति ईरानी गृह प्रवेश के लिए अमेठी पहुंची हैं, जिसके लिए 19 फरवरी और 21 फरवरी की तारीख सबसे शुभ है, 19 फरवरी के दिन माघ महीने के शुक्लपक्ष की दशमी तिथि थी, इस दशमी का खास महत्व इसलिए है, क्योंकि ये गुप्त नवरात्रि के बाद की दशमी है, इसकी मान्यता भी कई जगहों पर विजयादशमी की तरह ही है, शायद इसीलिए राहुल ने अमेठी विजय का प्लान सोचकर इसी दिन एंट्री ली होगी, और स्मृति ईरानी जो यहां से सांसद हैं, उन्होंने दोबारा जीत हासिल करने के उद्देश्य से इस तारीख को चुना होगा। स्मृति ईरानी तो वैसे भी अमेठी जाती रहती हैं, लेकिन राहुल के लिए ये दिन सबसे खास था, क्योंकि अमेठी से मिली हार के बाद 5 साल में वो शायद पहली बार यहां पहुंचे थे, और जब पहुंचे तो देखा कि सड़कों पर जनता का सैलाब उमड़ पड़ा है।
चूंकि स्मृति ईरानी जनसंवाद कर रही थीं, लोगों से बातचीत कर उनकी समस्याएं सुलझा रही थीं, इसलिए उनकी तुलना राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा से करना ठीक नहीं हैं, क्योंकि एक रैली और एक जनशिकायत केन्द्र की भीड़ में अंतर होती है, और भीड़ कैसे जुटाई जाती है, इसका तरीका भी हमने आपको बताया, इसलिए ये बात राहुल भी जानते हैं कि इस भीड़ से सिर्फ माहौल बनाया जा सकता है, सरकार नहीं। हालांकि राहुल गांधी का एक सबसे अलग अंदाज तब देखने को मिला, जब अमेठी में उनके खिलाफ नारे लगे। जिसे सुनकर राहुल गुस्सा नहीं हुए, बल्कि तुरंत गाड़ी से उतरकर उनसे हाथ मिलाया, और बातचीत करने की कोशिश की, जो बताता है राहुल गांधी की मोहब्बत की दुकान में प्यार हर किसी के लिए है, चाहे वो उनका विरोध ही क्यों न करे, पर इसके पीछे पीएम की कुर्सी वाला जो प्यार उनके दिल में है, वो पूरा होना आसान नहीं दिखता, क्योंकि इस बार बीजेपी का टारगेट पिछली बार की तुलना में जितना बड़ा है, कांग्रेस के हाथ के सिमटने की संभावना भी उतनी ही ज्यादा है। क्योंकि जाहिर सी बात है बीजेपी की सीटें बढ़ेंगी तो किसी न किसी पार्टी की तो कम होंगी और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस है, इसलिए उसकी सीटे कम होने की संभावना ज्यादा है, ऐसे में राहुल की न्याय यात्रा में जुटी भीड़ को देखकर आपको क्या लगता है इस बार कांग्रेस 2019 चुनाव की तरह 52 सीटें जीत पाएगी या आंकड़ा इधर-उधर होगा।