मुख्तार को घुटनों पर लाने वाला बाहुबली, खौफ से पूरे बाहुबली हो गए थे इकट्ठे, फिर घर में घुस कर मारी गई गोली

Rahul Jadaun 05 Apr 2025 10:21: AM 6 Mins
मुख्तार को घुटनों पर लाने वाला बाहुबली, खौफ से पूरे बाहुबली हो गए थे इकट्ठे, फिर घर में घुस कर मारी गई गोली

लखनऊ: वो बहुबली जिसके नाम से कांपता था पूर्वांचल का डॉन मुख्तार अंसारी... लखनऊ में घर बनाने के लिए जोड़ लिए थे हाथ फिर भी नहीं बनाने दिया था मकान... श्रीप्रकाश शुक्ला भी नहीं ले पाया था उससे टक्कर, फिर जन्म-दिन पर ही हुई हत्या... इधर लोग गा रहे थे तुम जियो हजारों साल... उधर सिर के आर-पार हो गई किसी अपने की ही गोली... आज हम बात कर रहे हैं लखनऊ के बाहुबली विधायक अजीत सिंह की... जिसके नाम से अपने दौर के सभी दबंग थर्राते थे... उसके नाम का खौफ इतना था कि राजा भैय्या को बाहुबली पंचायत बुलानी पड़ गई थी...

उन्नाव में हुआ था आजीत सिंह का जन्म

अजीत सिंह का जन्म 4 सितंबर 1964 को उन्नाव में हुआ था... मुलाहिमपुर गांव में पैदा हुए अजीत का बचपन लखनऊ में ही बीता था... उसके पिता रंजीत सिंह रेलवे कर्मचारी थे... जो चारबाग में एक रेलवे क्वार्टर में रहते थे... रंजीत सिंह की उत्तर रेलवे की मजदूर यूनियन अच्छी पकड़ थी... अधिकारियों के साथ बैठना-उठना था... 1980 के दशक में अजीत सिंह को बुलेट मोटरसाइकल मिल चुकी थी... जो उस समय बड़ी बात होती थी... अजीत पहले से ही दबंग स्वभाव का था... वो कभी बुलट से रंगबाजी दिखाता... तो कभी लोगों को साथ लेकर दादागीरी करता... इन्हीं बातों से परेशान होकर पिता ने जुगाड़ लगा कर रेलवे में नौकरी लगवा दी... खलासी की नौकरी अजीत के सपने पूरे नहीं कर पा रही थी... इसीलिए वो रेलवे मजदूर यूनियन में शामिल हो गया... जल्दी ही बड़े-बड़े अधिकारियों तक अपना धाक जमा ली... मनमर्जी से काम कराने भी शुरू कर दिये... केकेसी छात्रसंघ चुनाव में भी दखल शुरू कर दी... जिससे छात्र नेता भी उसके पक्ष में रहते थे... थोड़े ही समय में हुसैनगंज से लेकर चारबाग तक अजीत के नाम का डंका बजने लगा...

दबंग खलासी से मिलने को तरसते थे बड़े-बड़े अधिकारी

आलम ये हो गया कि रेलवे के छोटे कर्मचार से लेकर बड़े अधिकारी तक अजीत से मिलने के लिए तरसते थे... सबको दबंग खलासी का आशीर्वाद लेना होता था.. वो जिसे चाहे रेलवे का ठेका चुटकियों में दिलवा देता था... एक किस्सा ये भी है कि कुछ लोगों ने इसके गैरकानूनी कामों की शिकायत रेलवे बोर्ड में कर दी... जिसकी जांच शुरू हो गई.. दिल्ली से रेलवे विजिलेंस के दो अधिकारी जांच करने लखनऊ आए... रात को रेलवे गेस्ट हाउस में रुके... और उसी रात अजीत के गुर्गों ने उन्हीं जमकर पीटा... धमकी दी कि अगर रिपोर्ट हमारे खिलाफ बनाई तो तुमाहारे परिवार की भी खैर नहीं है... इस वाकये के बाद वो अफसर इतना डर गए कि उन्होंने अजीत की मर्जी के हिसाब से रिपोर्ट बनाई थी... अब तक अजीत अपना वर्चस्व बना चुका था.. लेकिन उसकी राह का कांटा सुभाष भंडारी था... लेकिन 1991 में सुभाष का मर्डर हो जाता है... बाकी गैंग्सटर भी आपसी लड़ाई में फंसे हुए थे... यही वो दौर था जब अजीत ने बाहुबली बनने का सपना देख लिया... उसने चारबाग टेंपो-टैक्सी स्टैंड से वसूली की कोशिश की...

सुभाष के शूटर ने किया था बेइज्जत, फिर लखनऊ में हुई खून की होली

लेकिन सुभाष के शूटर रहे रेलवे कर्मचारी सुरेश जायसवाल अजीत को उठवा लिया...  चारबाग के एक प्लॉट पर ले जाकर उसे खूब बेइज्जत किया... बदला लेने के लिए अजीत ने सुरेश को ठिकाने लगाने की कसम खा ली... जिसके कुछ दिन बाद ही अजीत ने सुभाष पर पहली बार हमला किया.... लेकिन वो बच निकला... कुछ दिनों बाद ही अजीत को दूसरा  मौका मिल गया... उसे खबर मिली कि सुरेश हजरतगंज में DRM कार्यालय के पीछे बने क्वार्टर में है... इस बार अजीत ने मौका नहीं गंवाया... और ताबड़तोड़ फायरिंग कर सुरेश को वहीं ढ़ेर कर डाला... इस घटना के  बाद लखनऊ में हर जुबान पर अजीत का नाम था... यहां से उसने अपना असली खेल शुरू किया... खम्मन पीर बाबा की मजार के ठेकेदार से भी रंगदारी वसूलनी शुरू कर दी... लोको वर्कशॉप में रेलवे स्क्रैप की नीलामी में भी पैर जमा लिए... मौका देख कर मिश्रा बंधुओं को भी रास्ते से हटा दिया... उसने लल्ला मिश्रा को लोको वर्कशॉप के पास और राजू मिश्रा को सिटी बस में दिन दहाड़े मार डाला... ये मौतों का सिलसिला यहीं नहीं रुका इसके बाद भी कई लोगों की दिनदहाड़े हत्या हुई... जो या तो अजीत सिंह ने खुद की... या फिर उसके इशारे पर हुईं... ये वो दौर था जब पूरा लखनऊ अजीत के नाम से भी कांपने लगा था... देखते ही देखते अजीत और उसके साथियों के खिलाफ चार दर्जन से ज्यादा मुकदमे दर्ज हो चुके थे... जिनमें ज्यादातर हत्या, हत्या के प्रयास, वसूली, अपहरण संगीन मामले थे... लेकिन सजा एक मामले में भी नहीं हुई.. स्क्रैप नीलामी के साथ अजीत ने जमीनों के कामों में भी दखल देना शुरू कर दिया... ठेकों और स्टैंडों की वसूली भी चरम पर थी... चारों ओर से पैसों की बरसात हो रही थी... अब डर सिर्फ पुलिस का था... इसलिए अपनी इसी धाक का फायदा उठा कर बीजेपी में शामिल हो गया.. 

अजीत की राजनीति में एंट्री

1997 में लखनऊ-उन्नाव सीट से निर्विरोध MLC बन गया. बताया जाता है जिस दिन उसे टिकट मिला, उसके एक दिन पहले ही तत्कालीन SSP लखनऊ अरुण कुमार ने अजीत के चारबाग स्थित आवास पर छापा मारा था. बाहुबली से 'माननीय' बनते ही अजीत सिंह काली गाड़ियों के काफिले के साथ घूमने लगा था. एक तत्कालीन महिला सभासद के जरिए उसकी पहुंच कल्याण सिंह तक भी हो गई थी. लेकिन बीजेपी ने दोबारा उसे चुनाव में नहीं उतारा, तो मुलायम सिंह के खेमे में पहुंच गया और 2003 में समाजवादी पार्टी के टिकट से दोबारा MLC बना.

मुख्तार से अदावत की शुरूआत

जिस समय अजीत लखनऊ में अपना दबदबा बना रहा था... तब तक मऊ में पूर्वांचल का डॉन मुख्तार अपना वर्चस्व कायम कर चुका था.. मुख्तार अंसारी भी विधायक बनकर लखनऊ पहुंच चुका था... जहां उसने एक मकान बनाने का प्लान बनाया... मख्तार की तैयारी लखनऊ से पूर्वांचल को कंट्रोल करने की थी..

मुख्‍तार अंसारी ने लखनऊ के कृष्‍णानगर में अपनी पत्‍नी अफशां अंसारी के नाम जमीन खरीदी. वो यहां घर बनवाना चाहता था. जिसका लखनऊ के बाहुबली अजीत सिंह ने विरोध किया. अजीत ने मुख्‍तार से कहा कि आप मऊ या गाजीपुर में घर बनाइए पर लखनऊ में नहीं. लखनऊ में सरकारी आवास मिला है उसमें रहिए, अलग से घर बनवाने की क्‍या जरूरत है. अजीत ने साफ कह दिया था कि लखनऊ में मुख्‍तार अंसारी की हुकूमत बिलकुल नहीं चलेगी.

राजा भैय्या को बुलानी पड़ी थी डॉन पंचायत

विवाद इतना बढ़ गया था कि खुद राजा भैय्या को बीच में आना पड़ा था.. उस समय राजा भैय्या कैबिनेट मंत्री थे… इस दौरान लखनऊ में एक पंचायत का आयोजन होता है... इस पंचायत में सभी बड़े बाहुबली पहुंचते हैं.. इसीलिये इस पंचायत को डॉन पंचायत कहा जाता है...

डॉन पंचायत के दौरान राजा भैया ने कहा कि अगर सभी बाहुबली आपस में लड़ेंगे तो सबका अस्तित्‍व खत्‍म हो जाएगा, सब लोग सिर्फ अपने इलाके तक सीमति रहें, किसी भी विभाग का टेंडर हो, पहली प्राथमिकता उसे मिलेगी जो उस इलाके का बाहुबली होगा, गोरखपुर के टेंडर में हरिशंकर तिवारी को प्राथमिकता मिलेगी, फैजाबाद में अभय सिंह को टेंडर मिलेगा और लखनऊ में कोई टेंडर होगा तो अजीत सिंह तय करेंगे उन्हें टेंडर लेना है या नहीं, अगर ये लोग अपने इलाके का टेंडर नहीं लेते तो ही कोई और इस टेंडर की तरफ बढ़ेगा.

जन्मदिन पर घर में ही हुई हत्या

इस पंचायत के बाद जाकर मामला शांत हुआ था.... 4 सितंबर 2004 को उन्नाव के गेस्ट हाउस में अजीत सिंह का जन्मदिन मनाया जा रहा था... शराब की बोतलें खुल रही थीं... बीच-बीच हवाई फायरिंग भी हो रही थी। खाने के बाद अजीत कमरे में सोने चला गया, लेकिन साथी उसे फिर बुला लाए। अजीत मंच के सामने बैठा था। 'तुम जियो हजारों साल, हर साल के दिन हों पचास हजार' गाना गाया जा रहा था... अचानक किसी की नजर गई कि अजीत सिंह के चेहरे से खून बह रहा है... अजीत का चेहरा नीचे झुका हुआ था... आनन-फानन में उसे कानपुर के अस्पताल ले जाया गया.. जहां डॉक्टर्स ने अजीत को मृत घोषित कर दिया गया... इस मामले में रायबरेली के बाहुबली विधायक अखिलेश सिंह, रमेश कालिया समेत तीन अज्ञात के खिलाफ FIR दर्ज कराई गई... जांच में चौंकाने वाला सच सामने आता है... अजीत सिंह को गोली उसी के गनर की बंदूक से लगी थी... बाद में पता चलता है कि गनर संजय द्विवेदी कुर्सी के पीछे बैठा था... वहीं से कारबाईन से फायरिंग कर रहा था... पुलिस ने संजय को गैर इरादतन हत्या का आरोपी बनाया.... कोर्ट ने 11 अप्रैल 2007 को सिपाही संजय को दोष मुक्त कर दिया....

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