प्रेमानंद से मिलते ही बाहुबली रिंकू सिंह ने छोड़ दी करोड़ों की नौकरी, लौटकर सनातन को आए!

Global Bharat 21 Apr 2024 3 Mins
प्रेमानंद से मिलते ही बाहुबली रिंकू सिंह ने छोड़ दी करोड़ों की नौकरी, लौटकर सनातन को आए!

ये कहानी है भारत के उस शेरा की जिसने कालीन की रंगीन दुनिया से निकलकर दुनिया के पटल पर गांव की मिट्टी की पहचान दिलाई. बाहुबली जैसी भुजा, माथे पर त्रिपुंड, हाथों पर मां का टैटू, पैरों में अंगद वाली ताकत, अखाड़े में उतरते ही बता देता था बाजरे की रोटी और साग की ताकत. लेकिन एक दिन अचानक मन हुआ वृंदावन चलते हैं, और ये पहलवान करोड़ों की दौलत छोड़कर वृंदावन का ही क्यों हो गया. 
ये तस्वीर 12 सितंबर 2023 की है, जब वृंदावन के आश्रम में स्वामी प्रेमानंद महाराज से रिंकू सिंह की मुलाकात हुई, स्वामी प्रेमानंद जो कहते हैं उसमें समुद्र इतनी गहराई है जिससे रिंकू बाहर ही नहीं निकल पाए, और कहा गुरुदेव आप कहें तो मैं यहीं का होकर रह जाता हूं. वो आए थे मन को हल्का करने, मन को भारी करके लौटे थे.
ये कहानी उन सभी लोगों को सुननी चाहिए जो कहते हैं क्या भगवान धरती पर हैं, क्या हम उन्हें फील कर सकते हैं, वो लोग भी देख सकते हैं जो कहते हैं कलियुग में भगवान जैसा कुछ नहीं है, आप हाईस्कूल पास करते हैं, इंटर पास करते हैं और कोई नौकरी लग जाती है तो आप कुर्बानी देते हैं पर नौकरी नहीं छोड़ते, समाज भी आपको यही सलाह देता है कि नौकरी नहीं छोड़नी चाहिए, फिर सवाल उठता है कि रिंकू सिंह की प्रसिद्धि जब पूरी दुनिया में हो चुकी थी, तब उन्होंने अचानक से स्वामी प्रेमानंद से मुलाकात के बाद सबकुछ त्यागकर भारत लौटने का फैसला क्यों कर लिया. 
इस कहानी की शुरुआत होती है, आज से 20 साल पहले, रिंकू सिंह पर भुजाओं पर न मां का टैटू था, न माथे पर त्रिपुंड, हाथों में सूखी रोटी थी, पेट में भूख. रिंकू सिंह यूपी के भदोही से निकले और एक स्टार बने जो फिल्मी बाहुबली प्रभास, शाहरूख खान या सलमान से बहुत आगे निकल गया. उनकी कामयाबी कोई मजाक में नहीं है, संघर्ष का पूरा रास्ता दिखता है. इसी बीच उनको कुछ ऐसे लोग मिले जिन्होंने उनकी ऐसी मदद की कि जो फरिश्ते ही करते हैं. 
20 साल बाद जब वो वृंदावन पहुंचे तो उन्हें स्वामी प्रेमानंद के प्रवचन को सुनकर ये एहसास हुआ कि वो जो फरिश्ते थे असल में वो कौन थे, यहीं से वो दौलत, ग्लैमर, तकदीर और कामयाबी को छोड़कर सनातन सभ्यता की तरफ आगे बढ़ गए. पर सवाल उठता है कि भारत लौटकर करेंगे क्या. हम कुछ आंकड़े दिखाते हैं. 
एपीजे अब्दुल कलाम जब देश के राष्ट्रपति हुआ करते थे, तो अमेरिका जैसे देशों ने उनके दिमाग को लेने के लिए कई ऑफर दिए
स्वामी विवेकानंद के दिमाग से पूरी दुनिया हिल गई
अटल बिहारी वाजपेयी के एक भाषण से पूरा यूएन गूंज उठा था, पर भारत की ये सही तस्वीर नहीं है. सच्चाई थोड़ी कटू है, पर ये है कि अमेरिका, जापान या दुनियाभर की बड़े देशों की कंपनियों के पीछे भारत का ही दिमाग है. दरअसल ये समस्या ड्रेन vs ब्रेन की है. दिमाग भारत का, कामयाबी दूसरे मुल्कों की. यही कारण है कि पिछले कुछ सालों में लगभग 20 लाख लोगों ने अमेरिका में नौकरी चुनना पसंद किया, ये वो लोग हैं जो आईआईटी रुड़की में पढ़ते हैं, आईआईटी मद्रास में पढ़ते हैं, देश के टॉप कॉलेज में पढ़ते हैं, पर जब उन्हें सेवा का मौका मिलता है तो दूसरे मुल्क को चुनते हैं, इन्हें तब सिर्फ पैसा दिखता है.
लेकिन बीते कुछ सालों में भारत भी बदला है, दुनिया ने भारत की तरफ देखना शुरू किया है, इसीलिए जिस ड्रेन और ब्रेन से भारत परेशान था, उसमें रिटर्न पलायन भी बढ़ा है, लोग लौटकर वतन की तरफ वापस आने लगे हैं, और उसी में एक नाम है रिंकू सिंह, हम रिंकू के फैसले का स्वागत करते हैं, और उम्मीद करते हैं कि अमेरिका और बाहरी देशों में भी जाएगा जो कुछ रुपयों के लिए भारत की सेवा की बजाय दुनिया की ताकत बने हैं, वो लौटकर वतन को आएं.