कानपुर में नामांकन के दौरान हुआ हाईवोल्टेज ड्रामा, राहुल-अखिलेश के छूटे पसीने!

Global Bharat 24 Apr 2024 2 Mins
कानपुर में नामांकन के दौरान हुआ हाईवोल्टेज ड्रामा, राहुल-अखिलेश के छूटे पसीने!

ये हैं कानपुर लोकसभा सीट से गठबंधन के प्रत्याशी आलोक मिश्रा, जो 23 अप्रैल को नामांकन के लिए कानपुर के कलेक्टर ऑफिस में पहुंचे थे, बाहर सुरक्षा व्यवस्था टाइट थी, एसीपी साहब खुद ये देख रहे थे कौन अंदर जाएगा और कौन बाहर रुकेगा, नियम के मुताबिक अंदर 4 ही लोगों को जाने की अनुमति होती है, आलोक मिश्रा के साथ के तीन लोग अंदर जा चुके थे, चौथे बचे थे आलोक मिश्रा, वो जैसे ही गेट पर पहुंचे उन्हें याद आया कि उनके प्रस्तावक अमिताभ बाजपेयी तो वहां आए ही नहीं, तुरंत अमिताभ बाजपेयी को फोन लगाया गया, और मीडिया से बातचीत के दौरान ही अमिताभ बाजपेयी को आलोक मिश्रा ने कहा कि आप नहीं जाओगे तो मैं वापस लौट जाऊंगा, नामांकन अगले दिन करूंगा. 
नेताजी ने जैसे ही फोन रखा, और भागते हुए अमिताभ बाजपेयी उनके पास पहुंचे पुलिसवालों ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया, क्योंकि तीन लोग पहले ही अंदर जा चुके थे, अब या तो आलोक मिश्रा जा सकते थे या फिर अमिताभ बाजपेयी, लेकिन अमिताभ के बगैर आलोक मिश्रा इसलिए नामांकन नहीं करना चाहते थे, क्योंकि कहा जा रहा है कि अमिताभ बाजपेयी आलोक को उम्मीदवार बनाए जाने से नाराज थे, जब पुलिस किसी कीमत पर नहीं मानी तो आलोक मिश्रा वहीं जमीन पर धरने पर बैठ गए, मतलब नेताजी के नामांकन पर ही संकट गहरा गया था, काफी देर तक ये हाईवोल्टेज ड्रामा चला, उसके बाद आखिर में पुलिस ने दोनों को अंदर जाने की अनुमति दी, तब जाकर मामला ठंडा हुआ.
चूंकि प्रस्तावक को लेकर पहले ही सूरत में खेल हो चुका है, वहां प्रस्तावक के फर्जी साइन की वजह से कांग्रेस उम्मीदवार का नामांकन रद्द हो चुका है, इसलिए हर प्रत्याशी अब फूंक-फूंककर कदम रख रहा है, हर नेता को जीत-हार से पहले इस बात का डर होता है कि नामांकन फॉर्म सही से भरा जाए और बाद में वो रद्द न हो, जैसा कि सूरत वाले केस में हुआ, क्योंकि बड़ी पार्टियों के नेताओं के नामांकन रद्द होने के बाद पार्टी की किरकिरी तो होती ही है, साथ में उस सीट पर विपक्षी उम्मीदवार के निर्विरोध जीतने की संभावना भी बढ़ जाती है. इसीलिए हर पार्टी का प्रत्याशी इस बार छोटी-छोटी गलतियों से बचना चाहता है..
हालांकि कई लोग ये भी दावा कर रहे हैं कि आलोक मिश्रा को दरअसल पुलिस ने पहचाना ही नहीं, इसलिए उन्हें अंदर नहीं जाने दिया, और ड्रामा खड़ा हो गया. लेकिन असल सवाल ये है कि अगर प्रत्याशी ही नामांकन के लिए नहीं जाएगा और उसके प्रस्तावक ही समय पर नहीं पहुंचेंगे, वो 4-5 लोगों को भी तय समय पर साथ नहीं ला सकता, तो फिर वो चुने जाने के बाद जनता का काम समय पर कैसे करवाएगा, क्योंकि सांसद बनने का मतलब सिर्फ कुर्सी तो है नहीं, इलाके के विकास की जिम्मेदारी भी उसके कंधे पर आ जाती है, वो अलग बात है कि कुछ नेता सांसद बनने के बाद भी मौज में होते हैं, जबकि कुछ नेता ईमानदारी से अपना काम करते हैं, आपके सांसद ने कितने ईमानदारी से आपके यहां काम किया है, आप कमेंट कर बता सकते हैं.