बयान देकर बुरे फंसे राहुल, अब सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई, क्या संपत्ति बंटवारा पर लेंगे यू-टर्न?

Global Bharat 24 Apr 2024 3 Mins
बयान देकर बुरे फंसे राहुल, अब सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई, क्या संपत्ति बंटवारा पर लेंगे यू-टर्न?

राहुल गांधी के दिमाग में कार्ल मार्क्स वाली विचारधारा कैसे आई, नक्सलियों की तरह वो ये क्यों कहने लगे कि अमीरों की संपत्ति गरीबों में बांट देंगे, इस सवाल पर अब सुप्रीम कोर्ट के जज साहब भी विचार करेंगे, ख़बर है कि सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसी याचिका पहुंची है, जिसमें राहुल और पीएम मोदी के बयानों का हवाला देते हुए ये कहा गया है कि इस पर फैसला होना चाहिए, 9 जजों की बेंच अब इस मामले की सुनवाई करेगी. हो सकता है आपके दिमाग में भी ये सवाल हो कि हम मेहनत से कमाएं और वो पैसा दूसरों में बांट दिया जाए ये तो अन्याय है, क्या कोई नेता ऐसा कर सकता है, तो हम इसके कानूनी पहलू आपको समझाते हैं.
जब संविधान बना तब संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकार में रखा गया था, लेकिन 44वें संविधान संशोधन में इसे मूल अधिकार से बाहर कर दिया गया, तब संपत्ति के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 300-A में रखा गया था. जिसके मुताबिक
किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा. निजी संपत्ति का होना एक मौलिक मानव अधिकार है. इसे कानूनी प्रक्रियाओं और आवश्यकताओं का पालन किए बिना राज्य द्वारा नहीं लिया जा सकता है. 
लेकिन इस नियम के बावजूद सरकार आपकी प्रॉपर्टी जबरन नहीं ले सकती, साल 2020 में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने एक बड़ा ही अहम फैसला सुनाया. 
विद्या देवी बनाम हिमाचल प्रदेश सरकार केस में
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संपत्ति का अधिकार मानव अधिकार है. साल 1967 में हिमाचल प्रदेश सरकार ने जो 3 एकड़ जमीन विद्या देवी से जबरन ली, वो ठीक नहीं था. चूंकि विद्या देवी पढ़ी-लिखी नहीं थीं और विधवा महिला हैं, इसलिए सरकार को उन्हें तय समय पर मुआवजा देना चाहिए था, पर 52 सालों में सरकार ने ऐसा नहीं किया. 80 साल की बुजुर्ग महिला को सरकार 1 करोड़ रुपये का मुआवजा दे.
यानि एक बात तो साफ है कि कोई भी सरकार आपकी संपत्ति नहीं हथिया सकती, उसे कानून का पालन करना होगा, और कानून बनाना संसद का काम है. और फिलहाल सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच आर्टिकल 39 (बी) की व्याख्या को लेकर फिर से सुनवाई करने वाली है. 
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस बी वी नागरत्ना, जस्टिस एस धूलिया, जस्टिस जे बी पारदीवाला, जस्टिस आर बिंदल, जस्टिस एस सी शर्मा और जस्टिस एजी मसीह की पीठ 31 साल पुराने मामले पर सुनवाई कर रही है, जिसे साल 2002 में सात जजों के संविधान पीठ ने 9 जजों के पीठ को भेजा था. 
दरअसल इस बात पर कभी भी जज एकमत नहीं हुए हैं कि किसी निजी संपत्ति को सामुदायिक भलाई के लिए बांटा जाए या नहीं, अनुच्छेद 39 (बी) इसीसे जुड़ा है. 
इसीलिए अब जब सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर सुनवाई की बात सामने आई तो लोगों को राजनीतिक बयान भी नजर आने लगे. जब पीएम मोदी ये कह रहे हैं कि कांग्रेस की नजर आपकी मंगलसूत्र पर है तो देश का हर नागरिक ये सोचने पर मजबूर हो जा रहा है कि क्या सच में ऐसा हो सकता है, क्योंकि राहुल गांधी खुलकर ये कह रहे हैं कि हिंदुस्तान को एक्सरे की जरूरत है, जिसकी जितनी भागादीरी उसकी उतनी हिस्सेदारी. लेकिन प्रियंका ने इस मुद्दे को भावनात्मक बनाना शुरू कर दिया है, और पीएम मोदी के मंगलसूत्र वाले बयान पर जिस तरह का जवाब दिया है, उसने हर कांग्रेसी को खुश कर दिया है, और हर कांग्रेसी यही कह रहा है कि हमारा नेता ऐसा ही होना चाहिए, जो राहुल की तरह बयान देकर विवाद न बढ़ाए बल्कि उसे भावनाओं से जोड़ दे. 
हालांकि प्रियंका की बातों का पब्लिक पर कितनी असर होता है ये देखने वाली बात होगी, पर सच्चाई ये है कि राहुल गांधी जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स की भाषा बोल रहे हैं, जिनका कहना था कि गरीबी-अमीरी की खाई को पाटने का यही एक रास्ता है कि सबके बीच संपत्ति का समान बंटवारा हो, लेकिन राहुल को ऐसा कहने की बजाय महात्मा गांधी की तरह ट्रस्टशिप की सिद्धांत की बात करनी चाहिए, जिसके पक्ष में आजादी के दौरान कई कांग्रेसी थी, तब गांधी ने कहा था
भूस्वामी और अमीर लोगों को अपनी संपत्ति के न्यासी के रूप में काम करना चाहिए. उन्हें अपने संपत्ति के अधिकार को आम लोगों में समर्पित कर देना चाहिए. संपत्ति के बावजूद उन्हें अपने को मजदूर वर्ग के स्तर पर ले जाना चाहिए और मेहनत करके जीवन-यापन करना चाहिए. हालांकि, गांधीजी का ये सिद्धांत लोगों ने नहीं अपनाया.
पर यहां बड़ा सवाल ये है कि क्या कांग्रेस के नेता इसके लिए तैयार होंगे, क्या खुद राहुल, सोनिया और प्रियंका इसके लिए तैयार होंगी, आप इस पर क्या सोचते हैं, कमेंट कर बता सकते हैं.