क्या है कच्चातिवु द्वीप का इतिहास..क्यों बीजेपी इस मुद्दे को भुना रही है..

Global Bharat 07 Apr 2024 4 Mins
क्या है कच्चातिवु द्वीप का इतिहास..क्यों बीजेपी इस मुद्दे को भुना रही है..

क्या है कच्चातिवु द्वीप का इतिहास? आखिर क्यों बीजेपी इस मुद्दे को भुना रही है? 31 मार्च को जैसे ही पीएम मोदी ने  कच्चातिवु द्वीप को लेकर कांग्रेस को घेरते हुए ट्वीट किया वैसे ही ये मुद्दा एक बार फिर सुर्ख़ियों में छा गया और ये तमाम सवाल उठने लगे. ये मुद्दा कितना बड़ा और अहम है इसका अंदाज़ा ऐसे लगाइए कि खुद पीएम मोदी ने अपने ट्विटर हैंडल से पोस्ट किया और कांग्रेस को घेरा। पीएम ने अपने पोस्ट में क्या लिखा इसे जानने से पहले कच्चातिवु द्वीप की कहानी जानना बेहद ज़रूरी है. ये जानना ज़रूरी है कि आखिर क्यों इस मुद्दे ने कांग्रेस की नींद उड़ा दी है.

सबसे पहले आपको बता दें कि कच्चातिवु द्वीप का जिन्न बोतल से बाहर निकालने वाली भी खुद बीजेपी ही है. दरअसल तमिलनाडु के बीजेपी अध्यक्ष अन्नामलाई ने एक RTI फाइल की थी. आरटीआई से मिले जवाब में सामने आया कि 1974 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया था. और जैसे ही RTI का जवाब आया बीजेपी के हाथ तो जैसे जेकपॉट लग गया. पीएम, गृहमंत्री से लेकर तमाम बीजेपी नेता कांग्रेस के  पीछे पड़ गए. तमिलनाडु में कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को सौंपे जाने का मुद्दा गरमा गया है.

बता दें कि कच्चातिवु द्वीप हिंद महासागर में भारत के दक्षिण छोर पर है. 285 एकड़ में फैला यह द्वीप भारत के रामेश्वरम और श्रीलंका के बीच में बना हुआ है. 17वीं शताब्दी में यह द्वीप मदुरई के राजा रामानंद के अधीन था. अंग्रेजों के शासनकाल में कच्चातिवु द्वीप मद्रास प्रेसीडेंसी के पास आया. उस दौर में यह द्वीप मछलीपालन के लिए अहम था. ऐसे में साल 1921 में भारत और श्रीलंका दोनों देशों ने मछली पकड़ने के लिए इस द्वीप पर दावा ठोका. उस वक्त तो इसे लेकर कुछ खास नहीं हो सका. लेकिन भारत की आजादी के बाद समुद्र की सीमाओं को लेकर चार समझौते हुए. ये समझौते 1974 से 1976 के बीच हुए थे.

साल 1974 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और श्रीलंका के राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के बीच इस द्वीप पर समझौता हुआ. 26 जून, 1974 और 28 जून 1974 में दोनों देशों के बीच दो दौर की बातचीत हुई. ये बातचीत कोलंबो और दिल्ली दोनों जगह हुई थी. बातचीत के बाद कुछ शर्तों पर सहमति बनी और द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया गया था. इसमें एक शर्त ये भी थी कि भारतीय मछुआरे जाल सुखाने के लिए इस द्वीप का इस्तेमाल करेंगे. साथ ही द्वीप पर बने चर्च पर जाने के लिए भारतीयों को बिना वीजा इजाजत होगी. लेकिन एक शर्त ये भी थी कि भारतीय मछुआरे इस द्वीप पर मछली नहीं पकड़ सकेंगे।

उस समय इस फैसले का काफी विरोध भी हुआ था. तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री करुणानिधि ने इंदिरा गांधी सरकार के इस फैसले का काफी विरोध किया था. इसके खिलाफ 1991 में तमिलनाडु विधानसभा में प्रस्ताव भी पास कर द्वीप को वापस लाने की मांग की गई थी. जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था. साल 2008 में तत्कालीन CM जयललिता ने सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर याचिका दायर की थी. और कच्चातिवु द्वीप को लेकर हुए समझौते को अमान्य करार देने की मांग की थी. उनका कहना था कि गिफ्ट में इस द्वीप को श्रीलंका को देना असंवैधानिक है.

 अब सवाल ये भी है कि आखिर ये विवाद होता क्यों है? क्यों ये मुद्दा बार-बार उठता है? दरअसल मछली पकड़ने के लिए तमिलनाडु के रामेश्वरम जैसे जिलों के मछुआरे कच्चातिवु द्वीप की तरफ जाते हैं. बताया जाता है कि भारतीय जल हिस्से में मछलियां खत्म हो गई है. लेकिन द्वीप तक पहुंचने के लिए मछुआरों को अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा पार करनी पड़ती है. जिसे पार करने पर श्रीलंका की नौसेना उन्हें हिरासत में ले लेती है.

द्वीप को लेकर विवाद क्यों है? क्यों इस मुद्दे को बीजेपी के लिया जैकपॉट माना जा रहा है? ये सब तो हमने जान ही लिया है. अब जानते हैं कि जानकारी सामने आने के बाद भाजपा कांग्रेस को कैसे घेर रही है. तो आपको बता दें कि मुद्दे को उठाते हुए पीएम ने कहा कि भारत की एकता, अखंडता और हितों को कमजोर करना कांग्रेस का 75 सालों से काम करने का तरीका रहा है। RTI का जवाब आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने X अकाउंट पर पोस्ट कर लिखा, 'ये चौंकाने वाला है. नए तथ्यों से पता चला है कि कांग्रेस ने जानबूझ कर कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को दे दिया था. इसे लेकर हर भारतीय गुस्सा है और एक बार फिर से मानने पर मजबूर कर दिया है कि हम कांग्रेस पर भरोसा नहीं कर सकते हैं. वहीं गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि कांग्रेस के लिए तालियां. कांग्रेस ने जानबूझ कर कच्चातिवु द्वीप दे दिया और उसका कोई पछतावा ही नहीं. कई बार कांग्रेस सांसद देश को विभाजित करने की बात करते हैं. तो कई बार भारत की सभ्यताओं और संस्कृति की भी आलोचना करते हैं.

आपको बता दें कि ये पहला मौका  नहीं है  इससे पहले अगस्त 2023 में प्रधानमंत्री ने विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर जवाब देते हुए भी इस मुद्दे को उठाया था। ऐसे में लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर बीजेपी ने कांग्रेस को घेर लिया है. बीजेपी के इस दांव को देखकर जानकारों का कहना है कि चीन के मुद्दे पर केंद्र की मोदी सरकार को बार-बार घेरने वाली कांग्रेस के खिलाफ बीजेपी के हाथ बड़ा मुद्दा लग गया. अब बीजेपी मुद्दे को भुना रही है तो कांग्रेस तिलमिला रही है. कांग्रेस की तरफ से मोदी सरकार पर पलटवार शुरू हो गया है.वहीं कुछ लोगों का ये भी कहना है कि चीन के मुद्दे को दबाने के लिए ही बीजीपी ने इस मुद्दे को सुर्ख़ियों में ला दिया है.  फिलहाल कहा जा रहा है कि इससे कांग्रेस की नींद तो उड़ गई है लेकिन देखना होगा कि बीजेपी का ये दांव कितना कारगर साबित होता है.