गुजरात हाई कोर्ट का फैसला: मुस्लिम जोड़े मौखिक सहमति से ले सकते हैं तलाक, लिखित समझौते की जरूरत नहीं

Amanat Ansari 12 Aug 2025 01:15: PM 2 Mins
गुजरात हाई कोर्ट का फैसला: मुस्लिम जोड़े मौखिक सहमति से ले सकते हैं तलाक, लिखित समझौते की जरूरत नहीं

अहमदाबाद: गुजरात हाई कोर्ट ने मुस्लिम दंपतियों के लिए तलाक की प्रक्रिया को आसान करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा है कि मुस्लिम विवाह को 'मुबारात' (आपसी सहमति से तलाक) के जरिए समाप्त किया जा सकता है, और इसके लिए किसी लिखित समझौते की आवश्यकता नहीं है. यह फैसला कुरान और हदीस के हवाले से दिया गया, जिसमें तलाक की प्रक्रिया को स्पष्ट किया गया है.

राजकोट फैमिली कोर्ट का फैसला पलटा

जस्टिस ए.वाई. कोगजे और जस्टिस एन.एस. संजय गौड़ा की खंडपीठ ने राजकोट के एक फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया. फैमिली कोर्ट ने एक मुस्लिम दंपति की मुबारात के जरिए तलाक की अर्जी को खारिज करते हुए कहा था कि फैमिली कोर्ट्स एक्ट की धारा 7 के तहत यह मामला मान्य नहीं है, क्योंकि आपसी सहमति का कोई लिखित दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया. हाई कोर्ट ने इस तर्क को गलत ठहराते हुए कहा कि कुरान, हदीस या मुस्लिम पर्सनल लॉ में लिखित समझौते की कोई अनिवार्यता नहीं है.

क्या है मामला?

मामला एक मुस्लिम दंपति से जुड़ा है, जिनका विवाह कुछ वर्ष पहले हुआ था. समय के साथ उनके बीच मतभेद बढ़े, जिसके चलते दोनों ने आपसी सहमति से अलग होने का निर्णय लिया. दंपति ने मुबारात के तहत अपने निकाह को समाप्त किया और राजकोट के फैमिली कोर्ट में तलाक की मान्यता के लिए अर्जी दायर की. फैमिली कोर्ट ने लिखित समझौते की कमी का हवाला देते हुए उनकी अर्जी खारिज कर दी थी. इसके बाद दंपति ने गुजरात हाई कोर्ट में अपील की.

कोर्ट ने दिया तर्क

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मुबारात के लिए केवल आपसी सहमति का मौखिक इजहार ही काफी है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कुरान और हदीस में तलाक की प्रक्रिया में लिखित समझौते की कोई शर्त नहीं है, न ही मुस्लिम पर्सनल लॉ में ऐसी कोई अनिवार्यता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि निकाहनामा या रजिस्टर केवल विवाह के समझौते का सबूत है, लेकिन इसे तलाक की प्रक्रिया के लिए अनिवार्य नहीं माना जा सकता.

मुस्लिम दंपतियों के लिए राहत

हाई कोर्ट ने इस मामले को वापस फैमिली कोर्ट को भेजते हुए तीन महीने में नए सिरे से फैसला लेने का निर्देश दिया. यह फैसला उन मुस्लिम दंपतियों के लिए राहत लेकर आया है जो आपसी सहमति से बिना जटिल कागजी कार्रवाइयों के अपने विवाह को समाप्त करना चाहते हैं. इस फैसले ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत तलाक की प्रक्रिया को और स्पष्ट करते हुए धार्मिक ग्रंथों की व्याख्या पर जोर दिया है.

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