क्या भावनात्मक राजनीति की चाल चल रहा है केजरीवाल परिवार

Global Bharat 30 Mar 2024 3 Mins
क्या भावनात्मक राजनीति की चाल चल रहा है केजरीवाल परिवार

“अपने भाई अपने बेटे केजरीवाल को आशीर्वाद दीजिये दुआ दीजिये! अरविंदजी किसी क्रन्तिकारी की तरह कोर्ट में डटे रहे, बहुत हिम्मत है अरविन्द जी में… आपके अरविंदजी बेहद बीमार हैं, उनका शुगर लेवल ऊपर नीचे हो रहा है… आँख बंद कीजिये और केजरीवाल जी की आत्मा को महसूस कीजिये!”

ये सुनीता केजरीवाल के वो तीन बयान हैं, जिनसे कुछ लोगों को इमोशनल ब्लैकमेलिंग की बू आ रही है। पूरी की पूरी आम आदमी पार्टी और केजरीवाल का परिवार एक अलग ही लेवल का भावनात्मक राजनिति का जाल बनाने में लगा है। देश और दिल्ली को ये बताने की कोशिश हो रही हैं कि अरविन्द केजरीवाल को जानबूझकर ईडी वालों ने केवल बदले कि भावना से उठा लिया है। राजनीति में प्रोपेगंडा एक बेहद जरूरी पहलु है, लेकिन अरविन्द केजरीवाल के जेल जाने के बाद आम आदमी पार्टी जो कर रही है वो नेक्स्ट लेवल प्रोपगेंडा है। इस पूरी मुहिम के कई हिस्से और किरदार हैं। 
बारीकी से देखने पर सुनीता केजरीवाल मुख्य किरदार नजर आ रहीं हैं और उनके पीछे अरविंद केजरीवाल का दिमाग हैं। आम आदमी पार्टी और इस पार्टी को निर्देशित करने वाली पीआर कंपनी हर छोटी से छोटी बारीकी पर ध्यान दे रही हैं, सुनीता केजरीवाल यूं ही नहीं प्रकट हो रहीं हैं बल्कि ये एक बेहद सोची समझी पीआर टेक्निक हैं। केजरीवाल और सुनीता केजरीवाल द्वारा किया जा रहा एक एक काम एक्सपर्ट द्वारा निर्देशित हैं। ऐसा वीडियो देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है। 

केजरीवाल के जेल जाने से पूरी आम आदमी पार्टी भौचक्का रह गयी, पार्टी में भगदड़ कि आशंका से चिंतित अरविन्द केजरीवाल को पता था उनका जेल जाना निश्चित हैं और इसलिए केजरीवाल कि पीआर टीम ने अपना होम वर्क पहले ही तय करके रखा था। इधर केजरीवाल जेल गए तो टीम ने प्लान एक्टिवेट तो कर दिया, प्लान तो एक्टिवेट हुआ लेकिन जनता के बीच जो असर और प्रभाव आम आदमी पार्टी चाहती थी वो दिल्ली कि गलियों और सड़कों से गायब रहा। केजरीवाल और उनकी टीम समझ गयी जेल जाने के बावजूद दिल्ली कि आम जनता सड़कों पर केजरीवाल के समर्थन में नहीं निकल रही, यानी कि जो आम आदमी पार्टी और केजरीवाल मजाक-मजाक में रामलीला मैदान में लाखों कि भीड़ जुटा लिया करते थे, उनको जनता का साथ ही नहीं मिल रहा था। जबकि केजरीवाल और उनकी टीम को ये उम्मीद थी गिरफ़्तारी के वजह से पूरी दिल्ली का चक्का जाम हो जाएगा, जबकि हुआ ये कि क्रांति से निकली हुई पार्टी अपने नेता कि गिरफ़्तारी पर एक ढंग का आंदोलन भी नहीं खड़ा कर सकी।

भारत एक संप्रभु राष्ट्र है, भारत दुनिया कि पांचवीं सबसे बड़ी आर्थिक ताकत है, दुनिया कि तीसरी सबसे बड़ी सैन्य ताकत है लेकिन केजरीवाल के गिरफ्तार होते ही जर्मनी से लेकर अमेरिका तक भारत को लोकतंत्र और फेयर ट्रायल का ज्ञान देने लगे।

पहला सवाल, आखिर एक आधे राज्य के मुख्यमंत्री केजरीवाल में ऐसा क्या है जिसकी गिरफ़्तारी से अमेरिका परेशान है? दूसरा सवाल, भारत के एक नेता कि गिरफ़्तारी को पश्चिमी देशों कि मीडिया में जगह दिया जाना किस और इशारा करता है? तीसरा सवाल, क्या आम आदमी पार्टी और उसके पीछे विदेशी ताकतों का हाथ है? आम आदमी पार्टी को विदेशी फंडिंग है? चौथा सवाल, राघव चड्डा का लंदन में भारत विरोधी ब्रिटिश सांसद से मिलने के पीछे क्या मकसद है? और आखिरी सवाल, क्या विदेशी ताकतें आम आदमी पार्टी के जरिये भारत में किसी बड़े मिशन को अंजाम देने कि कोशिश में हैं?

हमारे पूछे गए गए सभी सवाल ख़्याली हो सकते हैं लेकिन क्या आम आदमी पार्टी को इस बात का जवाब नहीं देना चाहिए कि गिरफतार तो झारखण्ड के सीएम हेमंत सोरेन भी हुए लेकिन हेमंत सोरेन भी हुए थे, उस पर अमेरिका ने चिंता क्यों नहीं जताई। भारत में पहले भी लालू यादव से लेकर, जय ललिता, करूणानिधि, शिबू सोरेन जैसे नेता अलग अलग मामलों में गिरफ्तार हुए हैं लेकिन कभी किसी नेता के लिए पश्चिमी देशों में वो मुहिम नहीं दिखाई दी जो मुहीम केजरीवाल के लिए जर्मनी से लेकर अमेरिका तक चल रही है । भारत कि बढ़ती ताकत दुनिया के देशों को चुभने लगी हैं और ऐसा हो सकता है कि विदेशी शक्तियां नब्बे के दौर वाले तरीकों से इतर हटकर इसबार नया तरीका ढूंढ रही हो। 

अमेरिका जैसी ताकतों कि मुश्किल ये हैं भारत में नरेंद्र मोदी जैसा मास लीडर है और भारत अब दुनिया कि आँख में आँख डालकर बात करने कि हिम्मत रखता है। पूरी आम आदमी पार्टी और सुनीता केजरीवाल इस बात से खुश हो सकते हैं कि अरविन्द केजरीवाल के लिए तो अमेरिका भी आवाज उठा रहा हैं, जबकि देश के तौर पर ये चिंता कि बात है कि हमारे अंदरूनी मामले में अमेरिका बोलने कि हिम्मत कर किसके दम पर रहा है?