Hathras Stampede: देवप्रकाश मधुकर ने पुलिस को क्या-क्या बताया, अब नहीं बचेगा बाबा!

Global Bharat 06 Jul 2024 05:36: PM 4 Mins
Hathras Stampede: देवप्रकाश मधुकर ने पुलिस को क्या-क्या बताया, अब नहीं बचेगा बाबा!

तस्वीरों में दिख रहे ये नारायण साकार हरि के वकील एपी सिंह हैं. एपी सिंह पढ़े-लिखे औऱ समझदार वकील माने जाते हैं, लेकिन आधी रात को मीडिया के सामने उनकी हकलाती हुई आवाज में ही छिपी है योगी आदित्यनाथ के पुलिस की धमक. ये साफ है कि खुद को भगवान कहने वाला पाखंडी बाबा यूपी पुलिस की कस्टडी में ही है, लेकिन पुलिस की रजिस्टर में नाम नहीं है.

ये भी तय था कि देवप्रकाश मधुकर का एनकाउंटर होने वाला था, क्योंकि इस केस में पहली बार एसटीएफ की एंट्री हुई थी, एसटीएफ न अतीक के बेटे असद को पहचानती है, न चवन्नी छाप जैसे चवन्नी माफिया को पहचानती है और ना ही देवप्रकाश मधुकर को पहचानती है, यूपी एसटीएफ ने दो शर्तें ही रखी थीं.

पहली शर्त जैसा कहा जाएगा, वैसा ही नारायण साकार हरि को बोलना पड़ेगा. दूसरी शर्त मधुकर को खुद सरेंडर करना पड़ेगा. जब दोनों गुरु-चेले सरेंडर को तैयार हुए तो यूपी पुलिस ने इनकी शर्त नहीं मानी और सादे ड्रेस में अस्पताल में छापा मार दिया, जहां से देवप्रकाश मधुकर को सीधा गिरफ्तार कर लिया, उसके थोड़ी ही देर बाद बाबा मीडिया में आया और ऐसे डरे हुए लहजे में बयान दे रहा था, जिसको देखकर लगा कि पुलिस ने थर्ड डिग्री का इस्तेमाल बाबा के साथ भी किया हो.

ख़बर थी कि मधुकर बिजनौर के रास्ते नेपाल भागने वाला था, वहां जाकर बाबा के लिए रुकने औऱ पुलिस से बचने का इंतजाम करता. देवप्रकाश का अंदाज कुछ ऐसा है, जैसे कोई तोता अपने मालिक की भाषा को समझता है, और मालिक की भाषा को ही बोलता है. अब सवाल ये उठता है कि मुख्य आयोजक देवप्रकाश तो गिरफ्तार हुआ, लेकिन बाबा क्यों नहीं?

यहां दो बातें समझनी होंगी. बाबा के खिलाफ सीधे तौर पर पुलिस के पास एक भी सबूत नहीं मिले, वजह ये है कि बाबा ने जो ट्रस्ट बनाया है, वो भी अपने नाम नहीं है. जैसे किसी टीवी चैनल का कोई एंकर गलत ख़बर पढ़े तो नोटिस संस्थान को जाता है, वैसे ही बाबा की कहानी है. बाबा मुख्य व्यक्ति होते हुए भी पुलिस जांच में मुख्य आरोपी नहीं बन पा रहा है. लेकिन यूपी पुलिस ने अपने दिग्गज वकीलों की टीम खड़ी कर ली है. पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह को बुलाया गया, पूर्व डीजीपी ओपी सिंह को भी बुलाया गया और तेजतर्रार आईपीएस की एक टीम तैयार की गई.

यहां सवाल है कि बाबा को पुलिस कटघरे में खड़ा कैसे करेगी. क्योंकि जो बैंक अकाउंट है, उसमें बाबा का नाम नहीं है. जो ट्रस्ट बना है, उसमें भी बाबा का नाम नहीं है. जो आश्रम है, उसकी जमीन भी पाखंडी बाबा के नाम नहीं है. यानि जो खिलाड़ी मेन है, पेपर पर वही खिलाड़ी गायब है. लेकिन कानून के जानकार जो कहते हैं वो सुनकर वकील एपी सिंह और पाखंडी बाबा की सांसें अटक गईं हैं.

कानून कहता है मुख्य आरोपी वही होता है, जिसके आदेश पर काम किया जाता है, या जो साजिश में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर शामिल होता है. जैसे मान लेते हैं किसी व्यक्ति की सुपारी जिस व्यक्ति ने ली है, वो आरोपी माना जाएगा.

लेकिन जिस व्यक्ति ने सुपारी दी है, वो मुख्य आरोपी माना जाएगा. बाबा के कहीं हस्ताक्षर हैं या नहीं हैं. बाबा का नाम कहीं है या नहीं है, ये बहुत बड़ा सवाल नहीं है. सवाल ये है कि अगर एसटीएफ ने अपने अंदाज में देवप्रकाश मधुकर की खातिरदारी की और मधुकर कोर्ट में जाकर जज के सामने वही बयान तैयार हो जाता है, जो पुलिस के सामने देता है, तो संत से दिखने वाले पाखंडी बाबा का अंत करना कानूनन जायज हो जाएगा.

भारतीय न्याय संहिता की भाषा में अगर आपको समझना है तो कानून दो तरीके से काम करता है. पहला तरीका होता है प्रत्यक्ष, जिसमें आप आरोपी आसानी से बनाए जा सकते हैं. दूसरा तरीका होता है अप्रत्यक्ष, जिसमें भी आप आरोपी और मुख्य आरोपी दोनों बनाए जा सकते हैं. उदाहरण के लिए ताजातरीन केस केजरीवाल का है, केजरीवाल को न तो सीधे किसी ने शराब घोटाले में पैसा दिया है, औऱ ना ही उनके किसी कागज पर हस्ताक्षर हैं, बावजूद उसके उनको सीबीआई और ईडी दोनों ने गिरफ्तार किया है, क्योंकि केजरीवाल की गिरफ्तारी से पहले 14 लोगों को सीबीआई ने आरोपी बनाया है.

अगर कोर्ट में केस सही साबित होगा तो केजरीवाल कहीं पेपर पर नहीं होते हुए भी मुख्य आरोपी माने जाएंगे. कुछ यही केस बाबा राम रहीम का भी था, बरसों तक बाबा राम रहीम आजाद हवा में घूमता रहा, लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया तो राम रहीम की कुटिया खंडहर में तब्दील हो गई. अगर योगी सरकार पर वोटबैंक का दबाव है तो इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए स्वत: संज्ञान भी ले सकता है.

हम दो एक कमरे में बंद हैं, बाहर यूपी पुलिस खड़ी है. हम दो में एक बाबा है, और एक सादे ड्रेस में यूपी पुलिस का आदमी है, जो चौबीस घंटे बाबा की निगरानी कर रहा है. जैसे ही कानून की भाषा में सबूत तैयार होंगे, आप देखेंगे यूपी पुलिस का कोई अधिकारी बाबा के हाथों में हथकड़ी पहनाकर उसे बाहर लेकर आएगा. दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा.

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