नई दिल्ली: जो आजम खान इंटरव्यू में इन दिनों रो रहे हैं, जिनका किस्सा सुन इंटरव्यूर उनके आंसू पोंछ रहे हैं, वो गरीब मुसलमानों के लिए कितने बड़े दुश्मन रहे हैं, इसके दो किस्से जरूर सुनने चाहिए. पहला किस्सा है साल 2014 का, रामपुर में गांधी समाधि से थोड़ी दूर जिला विद्यालय निरीक्षक का ऑफिस हुआ करता था, जिसे नए ऑफिस में शिफ्ट किया जा रहा था. वहां रहने वाला गरीब मुस्लिम परिवार जो दूध का छोटा-मोटा कारोबार करता था, हाथ जोड़कर गुहार लगाता है, हमें नहीं हटाया जाए, पर आजम खुद वहां पुलिस-प्रशासन के साथ मौके पर पहुंचकर उसका टीन का घर बुलडोजर से गिरवा देते हैं.
बारिश में रोते-बिलखते बच्चों के होठ नीले पड़ गए थे, वो सुरक्षित जगह शिफ्ट होने की मांग कर रहे थे, पर सुनने वाला कोई नहीं था. अफसोस की बात ये रही कि वो परिवार दोबारा कभी रामपुर में नहीं दिखा, पर उसके बाद भी आजम की ये आदत नहीं बदली. वो नवाबों का महल तुड़वाने की धमकी देते. साल 2016 में तो कब्रिस्तान की खाली जमीन पर रहने वाले 10-12 गरीब परिवारों का आशियान छीन लिया.
कॉलेज के सामने का पुराने कब्रिस्तान की बाउंड्री करवाने के लिए आजम ने इनका आशियाना छीन लिया. बात अवैध कब्जे पर सिर्फ कार्रवाई की होती तो गलत नहीं थी, पर खुद अवैध कब्जों की लंबी फेहरिस्त आजम बनाते चले गए, और गरीब मुस्लिमों को निशाना बनाकर खुद की सियासी रोटी सेंकते रहे. पर कहते हैं सबका हिसाब यहीं होता है और आजम के गुनाहों का हिसाब शुरू होता है.
साल 2017 में करीब 5 साल जेल में बंद रहने के बाद आज वो कहते हैं, ''जहां मैं बंद था, वो 7/11 की कोठरी थी, जिस कैंपस में ये कोठरी थे, उसे फांसी घर कहा जाता है. 24 या 28 कोठरियां इसमें हैं, एक में मैं था, और दो बगल में था. सबसे ज्यादा सीतापुर जेल में ही खुदकुशी रेट है. बाकी कोठरियों में कूड़ा था, कबाड़ था, सांप थे, बिच्छू थे. दो-दो ढाई-ढाई इंच मोटी काई थी. वहीं मुझे पिछली बार कोरोना हुआ था, जबकि कोई मुझे मिलने नहीं आया था. मैं ही ऐसा कैदी था जिसे टेलीफोन तक की इजाजत नहीं थी, जबकि कई गंभीर अपराध के कैदियों को थी.''
''मुझे घटिया किस्म के गुनाहों की सजा मिली, इल्जाम लगाने वाला स्तर यही था कि मुझे मुर्गी चोरी, बकरी चोरी, भैंस चोरी, जैसी घटिया आरोपों का मुजरिम बनाया. मैंने नहीं की चोरी, मैंने कहा कि चोरी कर लाओ. न इधर के रहे, न उधर के रहे. मुर्गी चोरी भी करवाई, मुर्गी हाथ भी नहीं आई. डकैती के एक मुकदमे में मुझे 19 साल की सजा हुई, 119 मुकदमे हैं. तो लाखों साल चाहिए, शायद कयामत आ जाएगी तब तक.
आज आजम की हालत ये है कि वो अपने पुराने दिनों को याद कर रहे हैं, जब इंदिरा गांधी सरकार में उन्हें जेल हुई थी. तब उन्हें उस कोठरी में रखा गया था, जहां सुंदर डाकू रहता था. वो कोठरी जमीन के अंदर थी, सिर्फ डेढ़ फीट जमीन के ऊपर थी, जिसमें एक रोशनदान था, उसीसे पता चलता था कि दिन कब हुआ.. आजम आज पूछ रहे हैं कि, ''मेरे साथ ये इत्तेफाक क्यों है कि सरकार कोई भी रही हो मेरे साथ बहुत जुल्म किया है. अमानवीयता की सारी हदें पार हो गई. दोपहर में एक रोटी, हरी मिर्च नींबू का अचार दोपहर में खाता था, रात में उसी का एक हिस्सा खाता था. क्योंकि वहां जो खाना मिलता है, उसे गली का कुत्ता भी नहीं खाए.''
हो सकता है आजम ये बातें सुनाकर सिंपैथी हासिल करना चाहते हैं, ताकि खुद की पार्टी बनाएं या सपा से कहीं और जाएं तो लोगों का प्यार भी उनके साथ जाए. क्योंकि आजम ये भी कहने लगे हैं कि अच्छा होता मुलायम सिंह यादव के जाने के बाद ही सियासत से संन्यास ले लेता. फिलहाल शिवपाल यादव ने उनसे फोन कर हाल-चाल लिया है. 8 अक्टूबर को अखिलेश उनसे मिलने जाएंगे. उसके बाद तय होगा कि आजम कौन सी राह पकड़ेंगे.