PM Modi Pappu Yadav: बिहार के बाहुबली नेता, पूर्णिया के निर्दलीय सांसद और कभी लालू के दुलारे रहे पप्पू यादव क्या इन दिनों भारी कंफ्यूजन में हैं, कभी राहुल गांधी के मंच पर चढ़ने को बेताब दिखते हैं, जगह नहीं मिलते तो गिरते-गिरते बचते हैं, पर तब भी बुरा नहीं मानते, राहुल की तारीफ में कसीदे पढ़ते हैं, बार-बार अपमान फिर भी कांग्रेस महान वाली विचारधारा दिखाते हैं, लेकिन कुछ ही दिन बाद ये तस्वीर बदल जाती है.
जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पूर्णिया दौरे पर जाते हैं, वहां पप्पू यादव मोदी के मंच पर पहुंच जाते हैं और मोदी के कान में कुछ ऐसा कहते हैं कि मोदी भी खिलखिलाकर हंस पड़ते हैं. पास ही बैठे सीएम नीतीश कुमार को देखकर भी पप्पू यादव मुस्कुराते हैं, तो क्या पप्पू यादव निर्दलीय सांसद हैं, इसलिए उनकी अपनी कोई विचारधारा नहीं है, या 41 मुकदमों के आरोपी पप्पू यादव सबसे बैलेंस बनाकर चलने की कोशिश में हैं.
इसीलिए सामने से तो वो मोदी से मुलाकात करते हैं, रिश्ते अच्छे दिखाने की कोशिश करते हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर लिखते हैं, ''प्रधानमंत्री जी, पूर्णिया एयरपोर्ट के शुभारंभ के लिए आभार, लेकिन मखाना किसानों का दर्द हमारे लीडर राहुल गांधी ही समझते हैं. आपकी सरकार मखाना किसानों को सिर्फ दर्द देना जानती है.''
तो क्या राहुल गांधी घुटने पर पानी में उतरकर मखाना किसानों से मिले, इसलिए उन्होंने दर्द को ज्यादा समझा, और दिल्ली में बैठकर मोदी ने मीटिंग पर मीटिंग कर किसानों के लिए मखाना बोर्ड बनाया, उससे कोई उद्धार नहीं हुआ. वहां के कई किसान इस बात को मानते हैं कि मखाना बोर्ड ने हमारी जिंदगी बदल दी, इसीलिए मोदी जब इस बार पूर्णिया पहुंचे तो उन्हें फूलों की माला के साथ-साथ मखाने की माला पहनाई गई. जिसे देखकर पप्पू यादव भी गदगद हुए, क्योंकि पूर्णिया उनका गढ़ माना जाता है.
फिर पप्पू की भाषा और पप्पू के विचार बार-बार क्यों बदल रहे हैं, इसका जवाब भी वो मोदी के मंच से ही देते हैं, कहते हैं मैं विकास के मुद्दे पर मोदी के साथ हूं, पर ये नहीं बताते राहुल गांधी के साथ फिर वो क्यों हैं. तेजस्वी और राहुल को जननायक क्यों बता रहे हैं, उनकी तारीफ में मंच से कसीदे क्यों पढ़ रहे हैं. जरा पप्पू यादव के दोनों बयान आप सुनिए, फिर तय कीजिए बिन पेंदी के लोटा वाली कहावत यहां फिट बैठती है या फिर विकास के लिए कुछ भी करेंगे वाले मोड में पप्पू यादव चल रहे हैं.
पप्पू यादव के इस मिजाज को समझने के लिए थोड़ा इतिहास में चलना होगा. साल था 1967 का....मधेपुरा जिले के खुर्दा करवेली गांव के एक जमींदार परिवार में एक लड़के का जन्म होता है, घरवाले नाम रखते हैं राजेश रंजन, लेकिन दादा पप्पू कहकर बुलाते थे, यहीं से पप्पू यादव वाला नाम ज्यादा फेमस हो गया. बचपन से पैसे की कोई कमी थी नहीं तो जो मन आया वो किया.
यहीं से पप्पू यादव और आरजेडी की अनबन शुरू होती है, कभी जो लालू के एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार थे, वो लालू की पार्टी को कोसने लगते हैं, अपनी बाहुबली वाली छवि बदलने की कोशिश करते हैं, ये वो दौर था जब बिहार में आरजेडी की पकड़ कमजोर हो रही थी, नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बन चुके थे, इसीलिए पप्पू यादव की जरूरत लालू को फिर से महसूस होने लगती है, 2014 में वो पप्पू को फिर से पार्टी में लाते हैं, मधेपुरा से टिकट देते हैं, पप्पू को जीत मिलती है, पर फिर कुछ ऐसे विवाद आते हैं कि दूरियां बढ़ने लगती है.
क्योंकि कहते हैं किसी भी रिश्ते में एक बार गांठ पड़ जाए तो उसका दोबारा पूरी तरह ठीक होना मुश्किल होता है, हालांकि सियासत में ये फॉर्मूला काम नहीं आता, वहां नेता दूर होते हैं, नई पार्टी बनाते हैं, और मौके की तलाश में होते हैं. पप्पू यादव ने भी ऐसा ही किया. साल 2015 में वो जनअधिकार लोकतांत्रिक पार्टी बनाते हैं, खुद अध्यक्ष बनते हैं, नीतीश-लालू दोनों के खिलाफ मोर्चा खोलते हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं मिलता., नतीजा साल 2024 में वो अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर देते हैं, पत्नी रंजीता रंजन पहले से ही कांग्रेस की कद्दावर नेता रही हैं, इसलिए कांग्रेस से पूरी तरह पप्पू यादव कभी दूर नहीं हुए, पर कांग्रेस से बात तब बिगड़ी जब इन्होंने पूर्णिया से टिकट की मांग की, लेकिन इन्हें टिकट नहीं मिला, और ये निर्दलीय चुनाव में उतर गए.
उसके बाद कभी विकास के नाम पर नीतीश का समर्थन करने लगे तो कभी पीएम मोदी का. लेकिन राहुल जब-जब बिहार गए पप्पू यादव का दिल राहुल गांधी के साथ ही लगा रहा. यही वजह है कि पप्पू यादव के समर्थक जो अब पहले की तुलना में काफी कम बचे हैं, खुद ही कंफ्यूज हैं कि समर्थन करना किसका है.
पूर्णिया की जनता को एयरपोर्ट मिल रहा है, सरकारी योजनाओं का लाभ तेजी से मिल रहा है, मखाना बोर्ड से फायदा हो रहा है, ये सारी बातें ठीक है, लेकिन पप्पू यादव की इसमें भूमिका कितनी है, और पप्पू यादव किसके साथ हैं, क्या ये स्टैंड साफ करेंगे. क्योंकि उनका सोशल मीडिया अकाउंट ये साफ कहता है कि वो वैचारिक तौर पर कांग्रेस के साथ हैं, लेकिन दिल में लगता है मोदी प्रेम उमड़ने लगा है. इसीलिए मोदी के साथ जब मंच पर मुस्कुराते हैं तो एक साथ कई सवाल खड़े होने लगते हैं.