अभिषेक चतुर्वेदी
हरियाणा के छोरी ने पेरिस की धरती पर जब झंडा गाड़ा तो हर हिंदुस्तानी का चेहरा खिल उठा. लेकिन एक हिंदुस्तानी वहां ऐसा भी था, जो फूट-फूटकर रो रहा था. उसकी आंखों में आंसू खुशी के नहीं बल्कि गम के थे. वो बार-बार मोबाइल की ओर देखते और रोए जा रहे थे. एक वक्त को मनु भाकर भी नहीं समझ पाई कि आखिर हमारे द्रोणाचार्य जसपाल राणा को हुआ क्या. पूरी कहानी तब सामने आई जब जसपाल राणा ने एक मीडिया चैनल को इंटरव्यू दिया.
मीडिया को दिए इंटरव्यू में जसपाल राणा कहते हैं ''मुझे दुख इस बात का है कि जो लोग मुझे गालियां दे रहे थे, वही आज इंटरव्यू के लिए कॉल कर रहे हैं. जो मुझे हार का जिम्मेदार ठहरा रहे थे, वही अब बात करने को बेताब हैं. मैं अपनी भावनाओं को नहीं रोक पा रहा हूं. जसपाल राणा की ये बात साल 2020 के टोक्यो ओलंपिक से जुड़ी है. तब मनु भाकर अपने करियर के शीर्ष पर थीं. 19 साल की मनु के सामने जो भी आता, उसे हार नसीब होती, पर उस ओलंपिक में मनु का पिस्टल खराब हुआ और उसके बाद उस ओलंपिक से उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा.
तब मनु भाकर ने अपनी हार का जिम्मेदार अपने कोच जसपाल राणा को ठहरा दिया था. तब जसपाल राणा पर मीडिया ने खूब कहानियां चलाईं थी. हालत ये हो गई थी कि देश को मेडल दिलाने वाली खिलाड़ी के कोच को नौकरी के लिए छोटा-मोटा काम ढूंढना पड़ गया था. वो लोगों से नौकरी मांगते और कुछ साल तो ऐसे बीते जैसे उनकी आजीविका पर ही संकट आ गया हो, क्योंकि एक साल से सैलरी भी नहीं मिली थी. पर असली किस्मत बदली पेरिस ओलंपिक से ठीक पहले, जब मनु भाकर ने खुद अपने कोच जसपाल राणा को कॉल की और फिर से साथ जुड़ने के लिए उन्हें मनाया. जसपाल राणा मनु भाकर की प्रतिभा को अच्छी तरह पहचानते थे, उन्हें पता था ये लड़की एक दिन देश के लिए मेडल जरूर जीतेगी.
दिक्कत इस बात की थी कि मनु का आत्मविश्वास जरूरत से ज्यादा बढ़ गया था. इसिलए गुरु ने पहली शर्त यही रखी कि मेडल के लिए मेहनत करनी है तो अपने अंदर से अति आत्मविश्वास को हटाना होगा. गीता की पंक्तियों को ध्यान में रखना होगा और उनका ये ज्ञान काम आता है. मनु भाकर निशानेबाज तो पहले से ही अच्छी थी, बस अर्जुन की तरह सही जगह पर निगाहें रखने के लिए एक द्रोणाचार्य की उन्हें जरूरत थी और वो जैसे ही मिला मनु ने पहले ब्रॉन्ज जीता और फिर डबल मुकाबले में मेडल जीतकर इतिहास रच दिया.
मनु भाकर एक ओलंपिक में दो मेडल जीतने वाली पहली भारतीय बन गईं हैं और अब कोहली की तरह उनका अति आत्मविश्वास भी हवा हो गया है. वह कहती हैं ''मैं गीता बहुत पढ़ती हूं. गीता में भी कृष्ण ने अर्जुन को कहा कि अपने लक्ष्य पर ध्यान दो न कि इस कर्म के परिणाम पर. उस वक्त मेरे दिमाग में यही चल रहा था कि सिर्फ अपना काम करो, बाकी सब छोड़ दो. यही डेडिकेशन हर खिलाड़ी को मेडल दिलवाता है, चाहे वो खेल कोई भी हो.
आज मनु भाकर की उपलब्धि पर पूरे देश को गर्व है. संसद से लेकर सड़क तक उनकी तारीफ हो रही है. मरीन इंजीनियर की नौकरी छोड़कर बिटिया की प्रैक्टिस करवाने वाले पिता को वो दिन याद आ रहे हैं, जब बिटिया की प्रैक्टिस के लिए पैसे नहीं थे. उसे उधार की पिस्टल लेनी पड़ी थी, पर अब वक्त बदल चुका है. आज वो इतने गदगद हैं कि कहते हैं बिटिया ने सपना पूरा किया, पर एक आस अभी अधूरी है, और वो है गोल्ड मेडल की.