कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है यह विशेष व्रत
छठ पूजा, जिसे षष्ठी पूजा भी कहा जाता है, कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है और यह एक महत्वपूर्ण आस्था और श्रद्धा का पर्व है। इस साल छठ पूजा 5 नवम्बर से 'नहाय-खाय' के साथ शुरू होगी और 8 नवम्बर को प्रातः कालीन अर्घ्य के साथ समाप्त हो जाएगी। यह पर्व खास तौर पर सूर्यदेव की पूजा और आभार व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। इसके साथ ही छठ पूजा की शुरुआत और इतिहास के बारे में पौराणिक कथाएँ भी बहुत दिलचस्प हैं।
पौराणिक कथा: राजा प्रियव्रत और देवी षष्ठी की कृपा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा प्रियव्रत को संतान सुख की प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप से पुत्रेष्टि यज्ञ करने की सलाह मिली थी। इस यज्ञ में खीर से रानी गर्भवती हुईं, लेकिन उनका पुत्र मृत पैदा हुआ। जब राजा प्रियव्रत दुखी होकर श्मशान घाट पहुंचे और आत्महत्या करने की सोच रहे थे, तभी ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवी षष्ठी प्रकट हुईं। देवी ने राजा से कहा कि, "मैं सृष्टि के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूँ और मेरा नाम षष्ठी है। तुम मेरी पूजा करो, मैं तुम्हारी इच्छा पूरी करूंगी।"
कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर व्रत की शुरुआत
देवी षष्ठी के आशीर्वाद से राजा प्रियव्रत ने कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को व्रत रखा और जल्द ही उन्हें एक स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति हुई। इसके बाद राजा ने नगरवासियों को देवी षष्ठी की महिमा बताई और तब से ही इस दिन व्रत और पूजा की परंपरा शुरू हुई।
रामायण और महाभारत में भी हुआ था छठ व्रत का उल्लेख
रामायण में जब भगवान राम अयोध्या लौटे, तब माता सीता ने सूर्यदेव और देवी षष्ठी की पूजा की थी, ताकि कुल की सुख-शांति बनी रहे। इसी तरह, महाभारत के दौरान द्रौपदी ने भी अपने पतियों की रक्षा और खोया हुआ राज्य पाने के लिए छठ व्रत रखा था।
इस प्रकार, छठ पूजा का इतिहास केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह आस्था, आभार और सामूहिक समृद्धि का प्रतीक भी है। हर साल यह पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है और लाखों श्रद्धालु सूर्यदेव और देवी षष्ठी की पूजा करते हैं।