गले में बीजेपी का पटका पहने मनीष तिवारी ऐसे दिख रहे हैं, जैसे बरसों का सपना पूरा हुआ हो और कुछ काम अधूरा बचा है, जिसे वो पार्टी में शामिल होने के बाद पूरा करना चाहते हों, पर उस सपने पर आएं उससे पहले ये जानना ज्यादा जरूरी है कि मनीष कश्यप बीजेपी में आए कैसे, जो मनीष बेतिया से लेकर नानोसती जगदीशपुर तक जनसंपर्क अभियान चला रहे थे, निर्दलीय चुनाव में उतर चुके थे, वो चुनाव छोड़कर बीजेपी में क्यों आ गए, तो इसे समझने के लिए आपको कुछ दिन पीछे चलना होगा.
ऐसी ख़बर है कि बीजेपी का कोई बड़ा नेता दिल्ली से जब भी बिहार में रैली करने के लिए पहुंच रहा था तो मनीष कश्यप उससे मिलना चाहते थे, यहां तक कि पीएम मोदी से लेकर अमित शाह और जेपी नड्डा तक से मुलाकात की इच्छा थी, लेकिन पार्टी ने भाव नहीं दिया, और टिकट भी काट दिया तो मनीष के दिमाग में ये बात बैठ गई कि अब कुछ नहीं हो सकता, इसलिए निर्दलीय ही चुनावी ताल ठोंक देता हूं, क्या पता राजस्थान के बाड़मेर वाले रविन्द्र भाटी की तरह किस्मत पलट जाए, शुरुआत में जब समर्थकों ने वोट फॉर मनीष कश्यप कैंपेन चलाया तो उसका असर ज्यादा नहीं दिखा, लेकिन धीरे-धीरे भीड़ बढ़ती गई और ये भीड़ उसी बात का इशारा कर रही थी कि बिहार की पश्चिमी चंपारण सीट पर बीजेपी के साथ खेल हो सकता है.
इस सीट से बीजेपी के संजय जायसवाल चुनावी मैदान में हैं, जो चौथी बार लगातार चुनाव जीतना चाहते हैं, अगर मनीष निर्दलीय चुनाव लड़ते तो संजय जायसवाल को हरा पाते या नहीं ये तो वक्त बताता पर जनरल वाला वोट मनीष के पक्ष में जाता और गरीब-मजदूर वर्ग मनीष को वोट करता को गेम बिगड़ सकता था, इसीलिए मनीष को बीजेपी में लाने का प्लान बना, और चूंकि शुरू से बीजेपी की ओर से मनोज तिवारी ही लगातार मनीष के संपर्क में हैं, इसीलिए मनोज ने ही मनीष को मनाया कि अभी चुनाव मत लड़ो, अभी बस प्रचार करो, बाद में तुम्हारे लिए कुछ बड़ा देखेंगे. और बीजेपी चूंकि 400 सीटों का टारगेट लेकर चल रही है, इसलिए एक-एक सीट उसके लिए अहम है.
अगर आप कुछ महीने पहले की स्थिति देखेंगे तो जब मनीष कश्यप तमिलनाडु जेल में बंद थे, तब बीजेपी की ओर से मनोज तिवारी उनसे मिलने पहुंचे थे, यहां तक कि बिहार की जेल में भी जब मनीष लाए गए तो वहां भी मनोज तिवारी ने मुलाकात की और उसके बाद मनीष के जेल से छुटते ही मनोज तिवारी उनके घर मिलने पहुंचे और कहा कि मोदीजी को ख़बर है कि मैं यहां आया हूं.
पर मनोज तिवारी ने जो बात उस दौरान कही थी, उसका मतलब इतना बड़ा और इस अंदाज में होगा ये किसी ने नहीं सोचा था. इधर मनीष बीजेपी में शामिल हुए और उधर सोशल मीडिया पर ऐसी चर्चा उठने लगी कि मनीष अपना बदला जरूर लेंगे, और जैसे तेजस्वी ने जेल भेजा था, वैसे ही तेजस्वी को भी जेल भेजकर ही दम लेंगे, कुछ ऐसे सबूत मनीष के पास हैं, जो तेजस्वी का गेम बिगाड़ सकते हैं, क्योंकि मनीष जो कहते हैं वो करते हैं, जेल जाते ही कहा था बाहर आते ही 180 दिनों के भीतर सरकार गिरा दूंगा और बिहार में सच में सरकार बदल गई. लेकिन इस चक्कर में मनीष खुद टिकट नहीं ले पाए.
चूंकि बीजेपी की परंपरा भी यही रही है कि जिस नेता की ज्यादा चर्चा होने लगा, जिसका नाम मीडिया में ज्यादा उछलने लगे, उसे पोस्ट ही न दो, आपने गुजरात से लेकर मध्य प्रदेश तक के मुख्यमंत्री बनाने और सांसदों के टिकट को लेकर भी ये देखा होगा तो मनीष भी उसी का शिकार हो गए, इसीलिए बीजेपी का पटका पहनने से ठीक पहले लोगों ने मनीष से जब ये कहा कि आप प्रधानमंत्री बनोगे तो मनीष बिफर पड़े और कहा
मुख्यमंत्री-मुख्यमंत्री बोलकर आपलोगों ने टिकट कटवा दिया, सारे नेता लोग भड़क गए. एक आदमी बोल रहा था कि मुख्यमंत्री मनीष भैया -मुख्यमंत्री मनीष भैया, बिहार के जितने मुख्यमंत्री दावेदार नेता थे सबने सोचा कि सबसे पहले इसको गेम से बाहर किया जाए. फिर मेरा टिकट कट गया. आपलोगों को पता ही है कि कौन सी पार्टी से टिकट मिलने जा रहा था.
पर मनीष के दिल में टिकट कटने का जो दर्द था वो अब शायद कम हो, क्योंकि अधिकारिक तौर पर जब आप किसी पार्टी में शामिल होते हैं तो फिर पार्टी आपके लिए कुछ अच्छा भी सोचती है, आपके हिसाब से मनीष को बीजेपी को क्या जिम्मेदारी देनी चाहिए कमेंट कर बता सकते हैं.