नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी श्रीलंका के दौर पर हैं, जहां उनका भव्य स्वागत भी हो रहा है, लेकिन भारत में श्रीलंका से जुड़े एक मसले पर जमकर विवाद भी हो रहा है. एक ऐसा द्वीप जिसके लिए खुद मोदी सरकार 2015 में कह चुकी है कि इसके लिए हमें जंग लड़नी पड़ेगी. क्या अब मोदी श्रीलंका से उस द्वीप को वापस लेकर आएंगे जिसे इंदिरा गांधी ने तोहफे में दे दिया था!
क्या है पूरा विवाद ?
ये पूरा विवाद कच्चाथीवू नाम के द्वीप को लेकर है. जिसे 1974 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने श्रीलंका को सौंप दिया था. जबकि अगर इतिहास को देखा जाए तो ये भारत का अभिन्न हिस्सा रहा है. एक बार कच्चाथीवू के इतिहास की पूरी टाईमलाइन को देखते हैं.
कच्चाथीवू का इतिहास
लगातार इस द्वीप पर क्यों हो रहा विवाद?
शुरूआत में कच्चाथीवू द्वीप पर भारत और श्रीलंका के मछुआरे आराम से मछली पकड़ते थे, उन्हें कोई रोक-टोक नहीं थी, लेकिन बाद में श्रीलंका ने भारतीय मछुआरों को द्वीप से गिरफ्तार करना शुरू कर दिया, श्रीलंका की तरफ से कहा गया कि भारतीय मछुआरों की वजह से हमारे मछुआरों के लिए मछलियां कम बचती हैं, इसलिए वो अपने क्षेत्र से ही मछली पकड़ें, वरना जो कार्रवाई होगी उसके लिए मानवाधिकार का मुद्दा ना उठाया जाए.
मोदी सरकार ने कहा था इसके लिए जंग लड़नी पड़ेगी
2015 में सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में इस द्वीप को वापस लेने के लिए एक याचिका दायर की थी, उनका तर्क था कि यह समझौता संसद की मंजूरी के बिना किया गया था, इसलिए यह अवैध है.
इस याचिका के जवाब में केंद्र की तरफ से अटॉर्नी जनरल रोहतगी ने कोर्ट से कहा था कि मामला अंतर्राष्ट्रीय कानून और कूटनीति से जुड़ा हुआ है, ये तभी संभव हो सकता है जब भारत और श्रीलंका के बीच जंग हो, क्योंकि बिना जंग के श्रीलंका इस द्वीप को छोड़ने के लिए तैयार नहीं होगा.
ऐसे में पीएम मोदी के श्रीलंका दौरे पर जाते ही भारत में कच्चाथीवू द्वीप की मांग भी उठने लगी है, लोगों का कहना है कि जो द्वीप शुरू से भारत का रहा है उसे वापस भारत को सौंपा जाना चाहिए.