नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले के दूरदराज के सीमावर्ती गांवों में एक बार फिर से तनाव का माहौल है. हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे क्षेत्र में डर और चिंता फैला दी है. इस हमले में 26 लोगों की जान चली गई, जिसमें आम नागरिक और सुरक्षाकर्मी शामिल थे. इस घटना के बाद नियंत्रण रेखा (LOC) के पास रहने वाले लोग अपनी सुरक्षा के लिए सतर्क हो गए हैं. गांववाले अब अपने भूमिगत बंकरों को साफ करने और तैयार करने में जुट गए हैं. इन बंकरों को स्थानीय लोग 'मोदी बंकर' कहते हैं. ये बंकर उनकी जान बचाने का एकमात्र सहारा हैं, खासकर तब जब सीमा पार से गोलीबारी या हमले का खतरा बढ़ जाता है.
'मोदी बंकर' क्या हैं?
'मोदी बंकर' एक अनौपचारिक नाम है, जिसे जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती इलाकों में बने भूमिगत बंकरों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. ये बंकर सीमा पार से होने वाली गोलीबारी और हमलों से स्थानीय लोगों को बचाने के लिए बनाए गए हैं. इनका निर्माण केंद्र सरकार की एक विशेष योजना के तहत किया गया, खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल के दौरान. सरकार ने इन बंकरों को बनाने के लिए आर्थिक और तकनीकी सहायता प्रदान की थी. ये बंकर पुंछ, राजौरी, जम्मू, कठुआ और सांबा जैसे जोखिम वाले जिलों में बनाए गए हैं.
साल 2021 में, जम्मू प्रांत में नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास लगभग 8,000 बंकर बनाए गए थे. शुरुआत में सरकार ने 14,460 बंकर बनाने की मंजूरी दी थी, और बाद में 4,000 अतिरिक्त बंकरों को मंजूरी दी गई ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को सुरक्षा मिल सके. ये बंकर दो तरह के हैं- व्यक्तिगत बंकर, जो एक परिवार के लिए होते हैं, और सामुदायिक बंकर, जो कई लोगों को एक साथ आश्रय दे सकते हैं. इन बंकरों में लोग गोलीबारी या हमले के दौरान छिपकर अपनी जान बचा सकते हैं.
बंकरों की फिर से जरूरत क्यों पड़ी?
पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने एक बार फिर से सीमावर्ती इलाकों में डर का माहौल पैदा कर दिया है. इस हमले ने लोगों को पुराने दिनों की याद दिला दी, जब गोलीबारी और तनाव की वजह से उन्हें अक्सर बंकरों में शरण लेनी पड़ती थी. हाल के वर्षों में स्थिति कुछ हद तक शांत थी, और लोग इन बंकरों को भूलने लगे थे. लेकिन अब, बढ़ते तनाव और हमले की आशंका के चलते, लोग फिर से इन्हें तैयार करने में जुट गए हैं.
पुंछ जिले के करमरहा गांव के एक निवासी ने बताया, "हमारे गांव में पहले भी गोलीबारी की घटनाएं होती थीं. हमारा गांव नियंत्रण रेखा के बहुत करीब है. अब हम बंकरों को साफ कर रहे हैं ताकि जरूरत पड़ने पर अपने परिवार को सुरक्षित रख सकें." लोग इन बंकरों में कंबल, बिस्तर और अन्य जरूरी सामान रख रहे हैं ताकि आपात स्थिति में उन्हें किसी परेशानी का सामना न करना पड़े.
गांववालों का सरकार और सेना के प्रति समर्थन
सीमावर्ती गांवों के लोग न केवल अपनी सुरक्षा के लिए तैयारियां कर रहे हैं, बल्कि वे सरकार और सेना के साथ मजबूती से खड़े भी हैं. करमरहा गांव के एक अन्य निवासी ने कहा, "हम सरकार के साथ हैं और आतंकी हमले की कड़ी निंदा करते हैं. हमारी सेना और प्रशासन को हमारा पूरा समर्थन है. जब भी उन्हें हमारी जरूरत होगी, हम हर संभव मदद के लिए तैयार हैं, चाहे इसके लिए हमें अपनी जान ही क्यों न देनी पड़े."
गांववाले केंद्र सरकार के प्रति आभार भी जता रहे हैं, जिसने इन बंकरों को बनवाकर उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की. एक निवासी ने कहा, "हम केंद्र सरकार का धन्यवाद करते हैं कि उन्होंने हमें ये बंकर दिए. इनकी वजह से हम मुश्किल वक्त में अपनी और अपने परिवार की रक्षा कर सकते हैं."
बढ़ता तनाव और भविष्य की आशंका
पहलगाम हमले ने न केवल स्थानीय लोगों में डर पैदा किया है, बल्कि यह भी आशंका बढ़ा दी है कि सीमा पार से घुसपैठ और हमले की घटनाएं बढ़ सकती हैं. नियंत्रण रेखा के पास पहले भी कई बार गोलीबारी और तनाव की स्थिति देखी गई है. इस हमले के बाद लोग अब हर पल सतर्क रहने को मजबूर हैं. गांववाले चाहते हैं कि घाटी में शांति बनी रहे, लेकिन वे किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहना चाहते हैं.
जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोग एक बार फिर से अनिश्चितता और डर के साये में जी रहे हैं. 'मोदी बंकर' उनके लिए उम्मीद की किरण हैं, जो उन्हें मुश्किल वक्त में सुरक्षा प्रदान करते हैं. ये बंकर न केवल उनकी जान बचाते हैं, बल्कि उन्हें यह भरोसा भी देते हैं कि सरकार उनकी सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है. हालांकि, गांववाले शांति की उम्मीद कर रहे हैं और चाहते हैं कि घाटी में फिर से अमन-चैन कायम हो.