नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 30 अप्रैल 2025 को हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया. केंद्र सरकार ने देश में जाति आधारित जनगणना कराने का निर्णय किया है. यह जानकारी केंद्रीय रेल, सूचना और प्रसारण, और इलेक्ट्रॉनिक्स व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट बैठक के बाद दी. यह फैसला लंबे समय से विपक्षी दलों और कुछ सहयोगी दलों की ओर से की जा रही जाति जनगणना की मांग के बाद आया है. यह कदम सामाजिक और आर्थिक नीतियों को और समावेशी बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
अश्विनी वैष्णव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि जाति जनगणना 2025 में शुरू होगी और इसके आंकड़े 2026 तक उपलब्ध होंगे. उन्होंने कहा, "यह जनगणना देश की सामाजिक संरचना को समझने और पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों, और जनजातियों के लिए बेहतर नीतियां बनाने में मदद करेगी." यह पहली बार होगा जब भारत में व्यापक स्तर पर जाति आधारित जनगणना होगी, हालांकि 2011 में यूपीए सरकार ने सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) की थी, लेकिन इसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए थे.
जाति जनगणना की मांग कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, और एनडीए के सहयोगी दलों जैसे जनता दल (यूनाइटेड), लोक जनशक्ति पार्टी, और अपना दल (एस) ने बार-बार उठाई थी. विपक्षी नेता राहुल गांधी ने 2023 में 2011 की जनगणना के आंकड़े जारी करने की मांग की थी, इसे ओबीसी समुदाय के लिए जरूरी बताते हुए. इस फैसले को विपक्ष की मांग की काट और सामाजिक न्याय की दिशा में एक कदम माना जा रहा है.
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि जाति जनगणना सामाजिक तनाव को बढ़ा सकती है और इसका राजनीतिक दुरुपयोग हो सकता है. फिर भी, सरकार का मानना है कि यह डेटा आरक्षण, सरकारी योजनाओं, और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों को और प्रभावी बनाने में मदद करेगा. इस जनगणना में संप्रदाय के साथ-साथ जाति और उप-जाति की जानकारी भी एकत्र की जाएगी, जो सामाजिक समीकरणों को समझने में सहायक होगी.
यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब सरकार पर सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को लेकर दबाव बढ़ रहा है. अश्विनी वैष्णव ने कहा कि सरकार पारदर्शिता और समावेशिता के साथ इस प्रक्रिया को पूरा करेगी. इस कदम से न केवल सामाजिक न्याय को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि यह सरकार की ओबीसी और पिछड़े वर्गों के प्रति प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है.