नई दिल्ली: दिव्यांगता मुक्त भारत के लिए परमार्थ निकेतन ऋषिकेश और महावीर सेवा सदन कोलकाता ने मिलकर मानवता की सेवा के लिए कदम बढ़ाया है. क्योंकि परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती कहते हैं कि दुनिया में न्याय ही सर्वोपरि है और संविधान ही समाधान है. इन संस्थाओं के द्वारा अक्सर दिव्यांगों के कल्याण के कार्य किए जाते हैं. महाकुंभ के दौरान डीएसएफ, दिव्यांग मुक्त भारत और महावीर सेवा सदन ने परमार्थ निकेतन कुंभ शिविर में कृत्रिम अंग और कृत्रिम अंग शिविर भी लगाया था.
बता दें कि परमार्थ निकेतन ऋषिकेश, उत्तराखंड में गंगा नदी के तट पर स्थित एक प्रसिद्ध आश्रम है. इसकी स्थापना 1942 में स्वामी शुकदेवानंद सरस्वती जी ने की थी, और 1986 से स्वामी चिदानंद सरस्वती जी इसके अध्यक्ष और आध्यात्मिक प्रमुख हैं. यह भारत के सबसे बड़े आश्रमों में से एक है, जिसमें 1000 से अधिक कमरे हैं, जो तीर्थयात्रियों और आगंतुकों के लिए आवास प्रदान करते हैं. आश्रम का मुख्य उद्देश्य आध्यात्मिकता, योग, ध्यान, और आयुर्वेद के माध्यम से लोगों को शांति और आत्म-जागरूकता की ओर ले जाना है.
गौरतलब हो कि परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश और महावीर सेवा सदन, कोलकाता दोनों ही भारत में सामाजिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली संस्थाएं हैं, लेकिन इनका कार्यक्षेत्र और उद्देश्य अलग-अलग हैं. वैसे परमार्थ निकेतन मुख्य रूप से आध्यात्मिकता, योग, ध्यान और सामाजिक सेवा पर केंद्रित है, लेकिन सामाजिक कल्याण के लिए कई पहल भी करता है.
वहीं, महावीर सेवा सदन मुख्य रूप से दिव्यांगजनों के सशक्तिकरण, पुनर्वास और कल्याण के लिए काम करता है. यह संस्था कोलकाता में सक्रिय है और दिव्यांगता से प्रभावित लोगों को शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण, कृत्रिम अंग (प्रोस्थेटिक्स), और रोजगार के अवसर प्रदान करने पर ध्यान देती है. इसका उद्देश्य दिव्यांगजनों को आत्मनिर्भर बनाना और समाज में उनकी गरिमापूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करना है. "दिव्यांगता मुक्त भारत" के विजन के संदर्भ में, महावीर सेवा सदन का योगदान बहुत प्रत्यक्ष और प्रभावी है. महावीर सेवा सदन के द्वारा अक्सर जरूरतमंदों को मुफ्त या कम लागत पर कृत्रिम अंग उपलब्ध कराया जाता है.
साथ ही दिव्यांगजनों को प्रशिक्षण देकर उन्हें रोजगार योग्य भी बनाया जाता है. इसके लिए विभिन्न कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं. परमार्थ निकेतन अप्रत्यक्ष रूप से योग, ध्यान और समुदाय-आधारित गतिविधियों के माध्यम से मानसिक और आध्यात्मिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देता है, जो दिव्यांगजनों के लिए भी लाभकारी हो सकता है. यह सामाजिक समरसता और स्वीकृति को प्रोत्साहित करता है. महावीर सेवा सदन इस लक्ष्य की ओर अधिक प्रत्यक्ष और केंद्रित कार्य करता है.