नई दिल्ली: वक्फ एक्ट के विरोध में पश्चिम बंगाल के मुस्लिम बहुल जिला मुर्शिदाबाद में हिंसा भड़क गई. एक अफवाह के कारण भीड़ ने पुलिस पर पथराव किया, गाड़ियां तोड़ी और कई घरों को आग के हवाले कर दिया. हिंसा में कई पुलिसकर्मी घायल हुए, वहीं पुलिस के लाठीचार्ज में कई प्रदर्शनकारी भी घायल हुए. मौका रामनवमी का था तो, मौके पर ज्यादा पुलिसकर्मी नहीं होने की वजह से हिंसा पर काबू पाने में दिक्कतें पेश आई. हालात पर काबू तो पा लिया गया है, लेकिन अभी भी हिंसक आग की तपिश बांकी है. पुलिस ने अभी तक 22 उपद्रवियों को गिरफ्तार किया है और अन्यों की तलाश की जा रही है. प्रमुख विपक्षी पार्टी ने भाजपा ने इसके लिए टीएमसी और ममता बनर्जी को जिम्मेदार ठहराया है. वहीं, टीएमसी ने भाजपा पर राजनीति करने का आरोप लगाया है.
कैसे और क्यों भड़की हिंसा, कौन जिम्मेदार हैं और आगे ऐसी घटना न हो, इसपर आगे चर्चा करेंगे, उससे पहले जानते हैं, बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले का छोटा सा इतिहास. गंगा नदी के बाएं किनारे पर बसे इस जिले की जमीन काफी जरखेज मानी जाती है. 2011 की जनगणना के अनुसार, इस जिले की आबादी 7.103 मिलियन मानी जाती है और यह भारत का नौवां सबसे अधिक आबादी वाला जिला है. बरहामपुर शहर जिले का मुख्यालय है. कभी यह शहर बंगाल के नवाबों की सत्ता की सीट थी और पूरे बंगाल पर इसी शहर से शासन किया जाता था, लेकिन प्लासी की लड़ाई में नवाब सिराजुद्दौला के अंग्रेजों से हारने के कुछ साल बाद, बंगाल की राजधानी को नव स्थापित शहर कलकत्ता में स्थानांतरित कर दिया गया, जिसे अब कोलकाता कहा जाता है.
2011 की जनगणना के अनुसार, मुर्शिदाबाद में मुस्लिमों की आबादी 66.27 फीसदी है, तो वहीं हिन्दू धर्म की जनसंख्या 33.21 प्रतिशत ही है. अक्सर भाजपा इसपर राजनीतिक रोटियां सेंकती हैं, क्योंकि क्योंकि आजादी से पहले यहां 56.55 फीसदी मुस्लिम और 41.75 प्रतिशत हिंदू निवास करते थे. कुछ क्षेत्रों में तो मुस्लिमों की आबादी करीब 60 फीसदी तक है. अब आते हैं मुर्शिदाबाद में कैसे और क्यों भड़की हिंसा? 8 अप्रैल 2025 को जंगीपुर में वक्फ विरोध रैली के दौरान स्थिति बिगड़ गई. प्रदर्शनकारी इस कानून को वापस लेने की मांग कर रहे थे. रैली में हजारों लोग शामिल हुए, लेकिन यह जल्द ही हिंसक हो गई. उपद्रवियों ने राष्ट्रीय राजमार्ग 12 को जाम कर दिया, पुलिस वाहनों में आग लगा दी और पथराव किया. पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल किया. इस हिंसा में कई लोग घायल हुए, जिनमें कुछ पुलिसकर्मी भी शामिल थे.
प्रशासन ने तनाव को देखते हुए जंगीपुर और आसपास के क्षेत्रों में धारा 163 लागू की और 11 अप्रैल 2025 की शाम 6 बजे तक इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दीं. पुलिस ने दावा किया है कि स्थिति अब नियंत्रण में है और संवेदनशील इलाकों में भारी सुरक्षा बल तैनात किए गए हैं. हिंसा की शुरुआत एक अफवाह से हुई, जिसमें दावा किया गया कि पुलिस की कार्रवाई में एक प्रदर्शनकारी की मौत हो गई. यह अफवाह गलत थी, लेकिन इसने भीड़ को उग्र कर दिया. इस घटना ने राजनीतिक विवाद को भी जन्म दिया. तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने पुलिस कार्रवाई की आलोचना की, जबकि विपक्षी दलों ने इसे कानून-व्यवस्था की विफलता बताया.
हिंसा के लिए कौन जिम्मेदार?
हालांकि, हिंसा के लिए कोई एक पक्ष स्पष्ट रूप से दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि यह एक जटिल स्थिति थी जिसमें कई कारक शामिल थे. फिर भी कुछ कारणों पर चर्चा करनी जरूरी है. दावा किया जाता है कि हिंसा तब भड़की जब जंगीपुर में प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रीय राजमार्ग 12 को जाम कर दिया. इस दौरान कुछ उपद्रवी ने पुलिस पर पथराव किया और पुलिस वाहनों में आग लगा दी. तभी एक एक अफवाह फैली कि पुलिस की कार्रवाई में एक व्यक्ति की मौत हो गई, जिसके बाद भीड़ और उग्र हो गई. पुलिस ने लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले दागे. इस दौरान प्रशासनिक और कानूनी उपाय में देरी देखी गई. जिला प्रशासन ने धारा 163 लागू करने और अफवाहों को रोकने के लिए इंटरनेट सेवाएं निलंबित करने में देरी की. लोगों का मानना है कि पहले से बेहतर तैयारी और पुलिस बल की पर्याप्त तैनाती हिंसा को रोक सकती थी, खासकर जब उसी दिन रामनवमी के जुलूस भी हो रहे थे, जिसके कारण पुलिस बल बंटा हुआ था.
भविष्य में हिंसा को कैसे रोका जाए?
हिंसा को रोकने के लिए त्वरित और दीर्घकालिक दोनों तरह के उपायों की जरूरत है. यह तभी संभव है जब प्रशासन, समुदाय, और राजनीतिक दल मिलकर काम करें और एक-दूसरे पर विश्वास बनाए रखें. इसके अलावा संवेदनशील क्षेत्रों में प्रदर्शनों या धार्मिक आयोजनों से पहले खुफिया तंत्र को मजबूत करना चाहिए और तेजी से तेजी से अफवाहों पर नियंत्रण करने की कोशिश होनी चाहिए. साथ ही हिंसा में शामिल लोगों के खिलाफ त्वरित और निष्पक्ष कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं के लिए उपद्रवियों को स्पष्ट संदेश जाए. साथ ही, पुलिस को अत्यधिक बल प्रयोग से भी बचना चाहिए ताकि स्थिति और न बिगड़े. इसके अलावा संवेदनशील क्षेत्रों में शांति समितियों की स्थापना और स्थानीय नेताओं के साथ संवाद को प्राथमिकता देनी चाहिए.