नई दिल्ली: एनसीईआरटी ने स्कूलों के लिए विभाजन भयावहता स्मरण दिवस के लिए एक खास मॉड्यूल जारी किया है. इसमें कहा गया है कि भारत के विभाजन के लिए तीन ताकतें जिम्मेदार थीं: जिन्ना, जिन्होंने विभाजन की मांग की; कांग्रेस, जिसने इसे स्वीकार किया; और माउंटबेटन, जिन्हें इसे लागू करने के लिए भेजा गया था. मॉड्यूल में यह भी बताया गया है कि विभाजन ने कश्मीर को भारत के लिए एक नई सुरक्षा समस्या बना दिया, और एक पड़ोसी देश इसका इस्तेमाल भारत पर दबाव डालने के लिए करता रहा है. इस मॉड्यूल ने विवाद खड़ा कर दिया है.
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने इसे जलाने की मांग की, क्योंकि उनके मुताबिक यह सच नहीं बताता. उन्होंने कहा कि विभाजन हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग के गठजोड़ के कारण हुआ. मॉड्यूल में 1940 के लाहौर प्रस्ताव का जिक्र है, जिसमें जिन्ना ने कहा था कि हिंदू और मुस्लिम दो अलग-अलग समुदाय हैं. इसमें यह भी कहा गया कि ब्रिटिश चाहते थे कि भारत एकजुट रहे और उन्होंने डोमिनियन स्टेटस की पेशकश की, लेकिन कांग्रेस ने इसे ठुकरा दिया.
गांधी, पटेल और नेहरू का रुख
मॉड्यूल के अनुसार, सरदार पटेल ने कहा कि भारत में हालात विस्फोटक हो गए थे, और गृहयुद्ध से बचने के लिए विभाजन बेहतर था. गांधी विभाजन के खिलाफ थे, लेकिन उन्होंने हिंसा के साथ इसका विरोध नहीं किया. आखिरकार, नेहरू और पटेल ने विभाजन स्वीकार किया, और गांधी ने 14 जून 1947 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी को भी इसके लिए राजी किया.
माउंटबेटन पर आरोप
मॉड्यूल में माउंटबेटन की आलोचना की गई है, क्योंकि उन्होंने सत्ता हस्तांतरण की तारीख को जून 1948 से पहले कर 15 अगस्त 1947 कर दिया. इससे सीमाओं का निर्धारण जल्दबाजी में हुआ, जिसके कारण कई जगहों पर लोगों को पता ही नहीं था कि वे भारत में हैं या पाकिस्तान में.
राजनीतिक विवाद
कांग्रेस ने इस मॉड्यूल की आलोचना की है. पवन खेड़ा ने कहा कि यह सच नहीं बताता और विभाजन हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग की साठगांठ से हुआ. उन्होंने आरएसएस को देश के लिए खतरा बताया. यह मॉड्यूल अब एक नए राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है, जिसमें भारत के विभाजन की जिम्मेदारी और इतिहास को स्कूलों में कैसे पढ़ाया जाए, इस पर अलग-अलग राय सामने आ रही हैं.