अमानत अंसारी
यूपी-बिहार में एक कहावत प्रसिद्ध है, जहां-जहां पांव पड़े 'संतन' के तहां-तहां बंटाधार. इस बात को चरितार्थ करता है कि जहां-जहां अमेरिका ने कदम रखा वह क्षेत्र-वह देश कभी भी खुशहाल नहीं हो पाया और जहां-जहां इन्होंने टेढी नजर रखी उस देश को बर्बाद कर दिया. यह बात आज इसलिए कही जा रही है कि क्योंकि भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में अभी भी अस्थिरता की स्थिति बनी हुई है. शेख हसीना के देश छोड़े जाने के बाद से ही वहां लगातार आलोकतांत्रिक स्थिति देखने को मिल रही है. लगातार राजनीतिक विरोधियों की संपत्ति को जलाया जा रहा है और उनकी हत्याएं की जा रही है. हालांकि इसका वर्तमान कारण तो छात्र आंदोलन बताया जा रहा है, लेकिन अंदर-अदर ही अंदर कुछ और ही चल रहा है. दावा किया गया है कि बांग्लादेश में भले ही जमीयत इस्लाम और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने तख्ता पलट दिया है, लेकिन ऐसा कैसे संभव हुआ, उस बात की तह तक जाएं तो अमेरिका और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी (आईएसआई) की भूमिका निकल कर सामने आती है. हाल ही में बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 2 ऐसे बयान दिए थे जो आईएसआई और अमेरिका की भूमिका को स्पष्ट करता है.
पहला बयान- अमेरिका बांग्लादेश को तोड़कर ईसाई देश बनाना चाहता है
हाल ही में शेख हसीना ने कहा था कि पूर्वी तिमोर की तरह वे बांग्लादेश (चटगांव) और म्यांमार के कुछ हिस्सों को लेकर एक ईसाई देश बनाएंगे और बंगाल की खाड़ी में एक बेस बनाएंगे… हसीना ने कहा था कि कई लोगों की नजर इस जगह पर है. यहां कोई विवाद नहीं है, कोई संघर्ष नहीं है. मैं ऐसा नहीं होने दूंगी... उन्होंने यह भी दावा किया यह सिर्फ एक देश के लिए नहीं है. मुझे पता है कि वे और कहां जाना चाहते हैं.
शेख हसीना ने कहा था कि प्रस्ताव ठुकराने की वजह से ही अवामी लीग की सरकार मुश्किल में है. उन्होंने दावा किया था कि अगर मैंने एक खास देश को बांग्लादेश में एयरबेस बनाने की अनुमति दी होती, तो मुझे कोई समस्या नहीं होती. हालांकि उन्होंने स्पष्ट रूप से अमेरिका और आईएसआई का नाम नहीं लिया था लेकिन, उसका ईशारा यूएसए और पाकिस्तान पर ही था और नतीजा यह निकला कि बयान देने के दो महीने के बाद ही शेख हसीना को बांग्लादेश की सत्ता छोड़नी पड़ गई और देश से बाहर जाना पड़ गया.
इसी बीच अमेरिका ने भी एक बयान दिया है, जो शेख हसीना के दावे को पुष्ट करता है. वह है तख्ता पलट के बाद बांग्लादेशी सेना की तारीफ करना. अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा कि अंतरिम सरकार के गठन का स्वागत करते हैं और सेना ने जो संयम दिखाया हम उसकी सराहना करते हैं. ऐसे में समझा जा सकता है कि बांग्लादेश में सरकार बदलने से अमेरिका खुश है.
दूसरा बयान- बांग्लादेश में प्रदर्शन करने वाले ‘’रजाकार’’ हैं…
शेख हसीना ने प्रदर्शनकारियों को पाक समर्थक रजाकार यानी गद्दार कह दिया था. उन्होंने कहा था कि अगर स्वतंत्रता सेनानियों के बेटे-पोते को आरक्षण नहीं मिलेगा तो क्या रजाकारों के पोते-पोतियों को आरक्षण मिलेगा? शेख हसीन के रजाकार कहने का मतलब ऐसे लोगों से था, जिसने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम पाकिस्तान का साथ दिया था... यहीं इंट्री होती है पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की, जो पहले से ताक में थी कि किसी तरह से शेख हसीना को सत्ता से हटाया जाए और वहां अपनी पैठ बनाई जाए. अगर अमेरिका और आईएसआई के बीच गठजोड़ की बात करें तो यह नया नहीं है, इसी गठजोड़ ने अफगानिस्तान, ईराक, पाकिस्तान को उस दल-दल में धकेल दिया, जहां लोकतंत्र की बीज अंकुरित होने में वर्षों लग जाएंगे.
अमेरिका ने न सिर्फ बांग्लादेश को स्थिर किया बल्कि, ईरान, सीरिया, रूस, यूक्रेन, वियतनाम, यमन जैसे कई देशों में लंबे समय तक राजनीतिक हस्तक्षेप किया. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो, जुलाई 2024 तक अमेरिका से बाहर यूएसए सेना के कम से कम 128 सैन्य अड्डे हैं. अमेरिका के ज्यादातर सैन्य बेस नाटो देश, मध्य पूर्व के देश, दक्षिण कोरिया और जापान में स्थित हैं, जहां से वह पूरी निगरानी रखता है, वहां की सरकार को अस्थिर करने में और सरकार को बचाने में. इन्हीं वजहों से अमेरिका पर ऐसे भी आरोप लगे हैं कि वह अपने सैन्य ठिकानों को सुरक्षित रखने के लिए दमनकारी शासनों और लोकतंत्र विरोधी सरकारों का भरपूर सहयोगा करता है. उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो अमेरिका और साऊदी अरब का गठजोड़.
जानकार मानते हैं कि अमेरिका ने सऊदी अरब से दोस्ती इसलिए किया क्योंकि उसे ईरान पर बढ़त बनानी थी, यूक्रेन से दोस्ती इसलिए किया, क्योंकि उसे रूस को झुकाना था और भारत से दोस्ती करने की कोशिश इसलिए की क्योंकि उसे चीन से बदला लेना था. अमेरिका ऐसे तमाम देशों का समर्थन करता है, जो लोकतंत्र को भले ही नहीं मानता हो, लेकिन अगर वह अमेरिका की मानता हो तो वह उसका दोस्त है.
अमेरिका हमेशा भारत को लोकतंत्र की पाठ पढ़ाता नजर आता है, लेकिन अमेरिका का लोकतंत्र कितना मजबूत है उसका अंदाजा आप ‘’बनाना रिपब्लिक’’ जैसे एक शब्द से लगा सकते हैं. ‘’बनाना रिपब्लिक’’ भले ही एक शब्द है, लेकिन इसमें लोकतंत्र को कुचलने का पूरा इतिहास छिपा हुआ है. इस शब्द को लेकर विस्तार से हम आपको बाद में बताएंगे, लेकिन इतना जान लीजिए कि ‘’बनाना रिपब्लिक’’ वह मकड़जाल था, जिसने मध्य अमेरिका भर की सरकारों के साथ अलोकतांत्रिक सौदे कर 1911 में होंडुरास में तख्तापलट करवाया और 1954 में ग्वाटेमाला में लोकतांत्रिक जड़ को ही खत्म करवा दिया और इस अलोकतांत्रिक कृत्य में अमेरिकी सेना और सीआईए ने भी भरपूर साथ दिया.
आज यदि मिडिल ईस्ट में तानाशाही सरकार चल रही है तो, उसका कारण भी अमेरिका ही है, क्योंकि अमेरिका ने यहां अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए लोकतंत्र मूल्यों के साथ समझौता किया और सऊदी अरब जैसे देशों से कभी भी नहीं कहा कि वहां लोकतंत्र बहाल हो... ऐसे में यदि बांग्लादेश में तख्ता पलट हो जाता है और वहां कट्टर पंथियों की सरकार बन जाती है तो वह कभी भारत के साथ नहीं आएगा, क्योंकि भारत लोकतंत्र पर विश्वास रखता है और अमेरिका-पाकिस्तान अपने हित को देखता है.