नई दिल्ली: भारत ने एक और ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है. यूनेस्को ने हाल ही में चीन के हांगझोउ में आयोजित पांचवें वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ बायोस्फीयर रिजर्व्स के दौरान भारत के कोल्ड डेजर्ट बायोस्फीयर रिज़र्व को अपनी विश्व बायोस्फीयर रिजर्व नेटवर्क में शामिल किया है. इसके साथ भारत के कुल यूनेस्को बायोस्फीयर रिजर्व की संख्या 13 हो गई है. यह कदम न केवल भारत की पर्यावरण के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है, बल्कि यह देश की पारिस्थितिक और सांस्कृतिक विविधता को भी वैश्विक मान्यता दिलाता है.
क्या है कोल्ड डेजर्ट बायोस्फीयर रिजर्व?
यह बायोस्फीयर रिजर्व भारत का पहला सबसे ज्यादा ऊंचाई वाला कोल्ड डेजर्ट क्षेत्र है, जो हिमालय की ऊंचाइयों पर फैला हुआ है. इसका क्षेत्रफल करीब 7,770 वर्ग किलोमीटर है और इसकी ऊंचाई 3,300 से 6,600 मीटर तक है. यह क्षेत्र अत्यंत ठंडा, शुष्क और दुर्गम है, लेकिन पारिस्थितिकी की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध भी है. इसमें पिन वैली नेशनल पार्क, चंद्रताल झील, सरचू और किब्बर वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी जैसे मशहूर क्षेत्र शामिल हैं.
यह इलाका अपनी कठोर जलवायु, घाटियों, अल्पाइन झीलों और बर्फीली पठारी भूमि के लिए जाना जाता है. यूनेस्को के अनुसार, यह क्षेत्र विश्व नेटवर्क में सबसे ठंडे और सबसे शुष्क पारिस्थितिक तंत्रों में से एक है.
जैव विविधता का खजाना
कोल्ड डेजर्ट बायोस्फीयर रिजर्व में करीब 732 प्रकार की वैस्कुलर पौधों की प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 30 स्थानीय हैं और 157 भारतीय हिमालय क्षेत्र के आस-पास की प्रजातियां हैं. हिम तेंदुआ, हिमालयी आइबेक्स, नीली भेड़, हिमालयी भेड़िया, हिमालयी स्नोकॉक, गोल्डन ईगल यहां के प्रमुख जीवों में शामिल हैं. इन दुर्लभ प्रजातियों की मौजूदगी इस क्षेत्र की पारिस्थितिक महत्व को और बढ़ा देती है.
यहां के लोग और उनकी जीवनशैली
इस ट्रांस-हिमालयी क्षेत्र में करीब 12,000 लोग रहते हैं. ये लोग छोटी-छोटी बस्तियों में रहते हैं और पीढ़ियों से पारंपरिक जीवनशैली का पालन करते आ रहे हैं. उनकी आजीविका मुख्य रूप से याक और बकरियों के पालन-पोषण, जौ और मटर की खेती और तिब्बती हर्बल चिकित्सा प्रणाली पर आधारित है.
यहां की सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्था बौद्ध मठों और सामुदायिक परिषदों से संचालित होती है, जो प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल में संतुलन बनाए रखती है. इस प्रकार यह क्षेत्र न केवल प्राकृतिक बल्कि सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतीक है.
संरक्षण और सतत विकास का संगम
यूनेस्को के मुताबिक कोल्ड डेजर्ट बायोस्फीयर रिजर्व इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है कि किस तरह नाजुक पारिस्थितिक तंत्रों की रक्षा के साथ स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाया जा सकता है. यह भारत की प्रतिबद्धता की मिसाल है, जो संरक्षण और सतत विकास के बीच संतुलन बना कर काम कर रहा है.
यह एलान यूनेस्को के “मैन एंड द बायोस्फीयर प्रोग्राम (एमएबी)” के तहत किया है.
यूनेस्को का “मैन एंड द बायोस्फीयर प्रोग्राम”
एमएबी कार्यक्रम का उद्देश्य मानव और पर्यावरण के बीच संतुलित संबंध स्थापित करना है. यह कार्यक्रम प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञानों को जोड़कर मानव जीवन की गुणवत्ता सुधारने और पारिस्थितिकीय तंत्रों की रक्षा करने की कोशिश करता है.
बायोस्फीयर रिजर्व को “सतत विकास के लिए सीखने के स्थान” के रूप में देखा जाता है, जहां अलग-अलग समुदाय पारिस्थितिक और सामाजिक प्रणालियों के बीच संतुलन साधने के नए प्रयोग कर रहे हैं.
बायोस्फीयर रिजर्व की तीन प्रमुख भूमिकाएं
बायोस्फीयर रिजर्व के तहत जैव और सांस्कृतिक विविधता का संरक्षण किया जाता है. साथ ही साथ सामाजिक और पर्यावरणीय रूप से स्थायी आर्थिक विकास को प्रोत्साहन दिया जाता है. रिसर्च, शिक्षा और सतत विकास के लिए वैज्ञानिक आधार प्रदान किया जाता है. संरक्षण, विकास और लॉजिस्टिक के मेल से बायोस्फीयर रिजर्व न केवल पारिस्थितिकी की रक्षा करते हैं, बल्कि स्थानीय लोगों के जीवन को भी बेहतर बनाते हैं.
विश्व मंच पर भारत की बढ़ती पहचान
पांचवां वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ बायोस्फीयर रिजर्व्स अब तक का सबसे बड़ा और प्रभावशाली सम्मेलन रहा था, जिसमें 100 से ज्यादा देशों के 3,000 से ज्यादा प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया. पहली बार यह सम्मेलन एशिया में आयोजित हुआ, जो एमएबी कार्यक्रम की व्यापकता और एशिया की बढ़ती भूमिका को दिखाता है.
भारत के कोल्ड डेजर्ट बायोस्फीयर रिजर्व को इसमें शामिल करना, न केवल देश के वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों के लिए गर्व की बात है, बल्कि यह इस बात का प्रमाण भी है कि भारत विश्व स्तर पर पर्यावरणीय स्थिरता और पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभा रहा है.
कोल्ड डेजर्ट बायोस्फीयर रिजर्व का यूनेस्को सूची में शामिल होना भारत के लिए गौरव की बात है. यह न केवल हिमालय की जैव विविधता की रक्षा करेगा, बल्कि उन समुदायों को भी सशक्त बनाएगा, जो इस कठिन पर्यावरण में सदियों से जीवन जीते आए हैं. यह उदाहरण दुनिया को दिखाता है कि जब विज्ञान, संस्कृति और समुदाय मिलकर काम करते हैं, तो सतत विकास केवल लक्ष्य नहीं बल्कि वास्तविकता बन सकता है.