नई दिल्ली: समाज में महिलाओं की भूमिका अब केवल घर-परिवार तक सीमित नहीं रही. वे शिक्षा, राजनीति, व्यापार, विज्ञान, खेल और कला सभी क्षेत्रों में सक्रिय भागीदारी निभा रही हैं. इक्कीसवीं सदी में महिलाएं समाज की “परिधि” से निकलकर “केंद्र” में आ चुकी हैं.
शिक्षा और जागरूकता
स्वतंत्रता के समय महिलाओं की साक्षरता दर बेहद कम थी. आज यह 70% से ज्यादा पहुंच चुकी है. उच्च शिक्षा में लड़कियां डॉक्टर, इंजीनियर, वकील और शोधकर्ता बनकर देश का भविष्य गढ़ रही हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में भी अब लड़कियों की पढ़ाई के प्रति जागरूकता बढ़ी है.
राजनीति और नेतृत्व
भारत की राजनीति में इंदिरा गांधी से लेकर निर्मला सीतारमण और ममता बनर्जी तक महिलाओं ने अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है. पंचायतों में 33% आरक्षण ने लाखों महिलाओं को नेतृत्व के अवसर दिए हैं. अब महिला आरक्षण विधेयक के पारित होने से संसद और विधानसभाओं में भी उनकी संख्या बढ़ने की उम्मीद है.
आर्थिक और व्यावसायिक क्षेत्र
कॉरपोरेट जगत और उद्योगों में महिलाएं तेजी से आगे बढ़ रही हैं. बायोकॉन की किरण मजूमदार शॉ, एचसीएल की रोशनी नादर, नायका की फाल्गुनी नायर जैसी महिलाएं दिखाती हैं कि उद्यमिता में भी महिलाएं पुरुषों से कम नहीं.
विज्ञान और रक्षा
इसरो की चंद्रयान और मंगलयान परियोजनाओं में महिला वैज्ञानिकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही. भारतीय वायुसेना में महिला पायलट लड़ाकू विमान उड़ाकर नई मिसालें कायम कर रही हैं.
खेल जगत में चमक
पी.वी. सिंधु, मेरी कॉम, मिताली राज, साक्षी मलिक और मीराबाई चानू जैसी खिलाड़ियों ने भारत को ओलंपिक और विश्व प्रतियोगिताओं में सम्मान दिलाया. खेल अब केवल पुरुषों का क्षेत्र नहीं रहा.
चुनौतियां अभी बाकी
आज भी कई परिवारों में बेटियों को बेटों जितना महत्व नहीं मिलता. शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य सुविधाओं में असमानता साफ दिखाई देता है. महिलाओं की सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती है. NCRB की रिपोर्ट के अनुसार हर 20 मिनट में एक महिला अपराध का शिकार होती है. दुष्कर्म, छेड़छाड़ और कार्यस्थल पर उत्पीड़न जैसी घटनाएं चिंता का कारण हैं.
तो वहीं, कई महिलाएं पढ़ी-लिखी होने के बावजूद नौकरी तक नहीं पहुंच पातीं. कार्यस्थलों पर असमान वेतन और उच्च पदों तक पहुंचने में "ग्लास सीलिंग" अब भी बाधा है. ग्रामीण और छोटे कस्बों की महिलाएं अब भी शादी और बच्चों की जिम्मेदारी के कारण अपने करियर और सपनों से समझौता करती हैं. टेक्नोलॉजी के युग में भी ग्रामीण महिलाओं की डिजिटल पहुंच सीमित है. इससे उनकी शिक्षा और आत्मनिर्भरता प्रभावित होती है.
सकारात्मक पहल
महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं. घरेलू हिंसा अधिनियम, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न निरोधक कानून और दुष्कर्म की परिभाषा बदल कर कठोर सजा का प्रावधान किया गया है. जिससे महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चत हो सके. ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’, ‘सुकन्या समृद्धि योजना’ और ‘उज्ज्वला योजना’ शुरू कर महिलाओं को समृद्ध और स्वस्थ बनाने के लिए महत्वपूर्ण योजना है. स्वयं सहायता समूहों से जुड़कर ग्रामीण इलाकों में लाखों महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं.
मानसिकता बदलना जरूरी
महिला सशक्तिकरण की राह में सबसे बड़ी दीवार समाज की सोच है. जब तक परिवार और समाज बेटा-बेटी में फर्क करना बंद नहीं करेंगे, असली बराबरी संभव नहीं. शिक्षा और मीडिया को इस सोच को बदलने में बड़ी भूमिका निभानी होगी. परिवारों को बेटियों को भी समान अवसर देना चाहिए. शिक्षा और कार्यस्थलों को सुरक्षित और समावेशी बनाना होगा. मीडिया को महिलाओं की बहुआयामी छवि सामने लानी चाहिए. राजनीति और प्रशासन में उनकी भागीदारी बढ़नी चाहिए.
महिलाओं की बढ़ती भूमिका भारत की प्रगति की सबसे बड़ी उपलब्धि है. लेकिन चुनौतियां अभी भी बहुत हैं. सुरक्षा, समानता और सम्मान—इन तीन स्तंभों पर मजबूती से खड़े हुए बिना महिला सशक्तिकरण अधूरा रहेगा.
महिलाएं समाज की आधी आबादी हैं. उनके बिना न तो लोकतंत्र मजबूत हो सकता है और न ही विकास की गाड़ी आगे बढ़ सकती है. यदि भारत को सचमुच विश्वगुरु बनना है, तो अपनी बेटियों को समान अवसर और सुरक्षित माहौल देना होगा. यही होगा सशक्त और नया भारत.