पटना: बिहार की राजनीति में करीब 35 साल से पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार का दबदबा रहा है. लालू यादव की पार्टी आरजेडी की कमान उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव के हाथ में है. भले ही तेजस्वी कहते हैं कि पार्टी के फैसले पिता लालू यादव ही लेते हैं. इसी कड़ी में कुछ महीने पहले लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को आरजेडी के साथ साथ परिवार से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. अब लालू प्रसाद यादव के नाराज बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने अलग पार्टी बना कर नई हलचल मचा दी है. तेज प्रताप का यह फैसला न केवल आरजेडी भीतर खींचतान को उजागर करता है, बल्कि लालू परिवार की राजनीतिक एकता पर भी बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है.
लालू परिवार की राजनीति: एकजुटता से दरार तक
लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी ने दशकों तक बिहार की राजनीति को प्रभावित किया. लालू प्रसाद ने मंडल राजनीति और सामाजिक न्याय के नाम पर विशाल जनाधार खड़ा किया. राबड़ी देवी ने उनके जेल जाने के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली और परिवार को सत्ता में बनाए रखा. लालू परिवार की यह एकजुटता ही आरजेडी की सबसे बड़ी ताकत रही है. लेकिन अब बेटों के बीच खींचतान और नई पार्टी का गठन इस "एकता" की छवि को कमजोर करता दिख रहा है.
तेजस्वी बनाम तेज प्रताप
आरजेडी की कमान छोटे बेटे तेजस्वी यादव के हाथों में है. उन्होंने उपमुख्यमंत्री रहते हुए खुद को ज्यादा व्यावहारिक और गंभीर नेता के रूप में स्थापित किया. इसके विपरीत तेज प्रताप यादव को कई बार “विद्रोही” और “असंगत बयान देने वाले” नेता की छवि झेलनी पड़ी. अब अलग पार्टी बनाकर तेज प्रताप ने यह संदेश दिया है कि वे अपने छोटे भाई के नेतृत्व को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं.
रोहिणी आचार्य की भूमिका
लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य हाल के वर्षों में सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय रही हैं. वे अक्सर खुलकर तेजस्वी का समर्थन और तेज प्रताप की आलोचना करती दिखती हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान रोहिणी ने तेजस्वी के पक्ष में कई भावनात्मक अपील भी की थीं. उनकी छवि “तेजस्वी खेमे” की मजबूत समर्थक के रूप में है. ऐसे में तेज प्रताप की नई पार्टी का गठन रोहिणी और तेज प्रताप के बीच मतभेद को और गहरा करता नजर आ रहा है.
संजय यादव की भूमिका
आरजेडी की राजनीति में पर्दे के पीछे एक बड़ा नाम आता है—संजय यादव. मूल रुप से हरियाणा रहने वाले संजय यादव को तेजस्वी यादव का सबसे भरोसेमंद रणनीतिकार माना जाता है. संजय यादव ने 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में तेजस्वी की रणनीति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. तेज प्रताप कई बार संजय यादव पर अप्रत्यक्ष हमला करते रहे हैं. वो ये कहते सुने जाते हैं कि पार्टी के फैसले "परिवार से बाहर के लोग" लिए जा रहे हैं. अगर तेज प्रताप के बयानों का विश्लेषण करें, तो लगता है कि संजय यादव जैसे लोग पार्टी की रणनीति में केंद्रीय भूमिका निभा रहे हैं और उन्हें दरकिनार किया जा रहा है. ये तेज प्रताप की नाराजगी की एक बड़ी वजह मानी जा रही है.
राजनीतिक भविष्य की चुनौतियां
तेज प्रताप यादव ने नई पार्टी तो बना ली है, लेकिन उनकी पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती जनाधार की है. यादव–मुस्लिम समीकरण आज भी आरजेडी और तेजस्वी के साथ मजबूती से खड़ा दिख रहा है, जबकि तेज प्रताप को अलग पार्टी के लिए संगठन, संसाधन और जमीनी समर्थन जुटाना होगा, जो आसान नहीं लग रहा है. देखा जाए तो बिहार की राजनीति में तीसरे मोर्चे की पार्टियां अक्सर हाशिए पर चली जाती हैं. हालांकि तेज प्रताप के समर्थक मानते हैं कि वे युवाओं और हाशिए के लोगों की “नई आवाज़” बन सकते हैं.
लालू–राबड़ी की स्थिति
लालू प्रसाद यादव अब सक्रिय राजनीति से करीब-करीब दूर हैं और सेहत की वजह से शांत भूमिका में हैं. वहीं राबड़ी देवी भी सक्रिय राजनीति में पहले जैसी भूमिका नहीं निभा रही हैं. ऐसे में परिवार के भीतर तालमेल बैठाने की जिम्मेदारी तेजस्वी पर ही है. लेकिन तेज प्रताप का अलग हो जाना इस बात की ओर संकेत कर रहा है कि लालू–राबड़ी की “समझौता कराने वाली राजनीति” अब कमजोर पड़ चुकी है.
विपक्षी एकता पर असर
2024 के बाद विपक्षी दल मुख्यमंत्री नीतिश कुमार और बीजेपी को चुनौती देने के लिए एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे समय में आरजेडी परिवार के भीतर दरार विपक्षी एकजुटता पर भी सवाल खड़े करती दिख रही है. तेजस्वी जहां खुद को राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष का चेहरा बनाने की ओर बढ़ रहे हैं, वहीं तेज प्रताप का अलग होना उनकी ताकत को कमजोर कर सकता है.
निष्कर्ष
तेज प्रताप यादव की नई पार्टी ने बिहार की राजनीति में हलचल जरूर मचा दी है, लेकिन उनका भविष्य अभी अनिश्चित है. जनाधार, संगठन और विश्वसनीय नेतृत्व के बिना उनका राजनीतिक प्रभाव सीमित रह सकता है. लालू–राबड़ी की विरासत को अब तक तेजस्वी और परिवार की एकजुटता संभालती रही है, पर दरार गहराने से यह ताकत कमजोर पड़ सकती है. बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों और पारिवारिक निष्ठाओं पर टिकी है. अगर तेज प्रताप का विद्रोह लंबे समय तक कायम रहता है, तो यह न सिर्फ आरजेडी बल्कि पूरे विपक्षी समीकरण को प्रभावित कर सकता है.