अभिषेक चतुर्वेदी
मोईद खान को अखिलेश यादव जिस तरह से बचाने की कोशिश कर रहे हैं, उस पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं, और लोग तो ये भी पूछने लगे हैं कि क्या अखिलेश यादव या उनके किसी करीबी नेता का कोई बड़ा राज मोईन खान के पास है, आखिर इतना खुलकर किसी आरोपी को बचाने की जरूरत क्यों पड़ रही है, 30 दिन बाद मोईद खान ऐसा क्या करने वाला था, जिसके बारे में सुनकर समाजवादी पार्टी अभी से ही परेशान हो उठी है, ये वो सवाल हैं, जिनका जवाब जानने के लिए आपको अगले तीन मिनट तक ये रिपोर्ट देखनी होगी. मोईन को बचाने और DNA रिपोर्ट की मांग करने की पूरी कहानी जुड़ी है इस घटनास्थल से 30 किलोमीटर दूर मिल्कीपुर से.
मिल्कीपुर वो जगह है, जहां ब्राह्मणों की आबादी करीब 60 हजार है, यादव 55 हजार, पासी 55 हजार और मुस्लिम 30 हजार हैं. इसी मिल्कीपुर से अवधेश प्रसाद कभी विधायक हुआ करते थे, जो फिलहाल अयोध्या से सांसद हैं, ये इकलौती ऐसी विधानसभा सीट है. जहां भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का कब्जा हुआ करता था, मतलब प्रभु राम के भगवा झंडे वाले शहर में लाल झंडा का सियासी कब्जा था, दौर बदला तो अब लाल टोपी के हिस्से में ये सीट आ गई, पर इस बार बीजेपी इस सीट का इतिहास बदलना चाहती है, जबकि सपा अपना वर्चस्व बरकरार रखना चाहती है, और सपा को ये सीट बचाने के लिए मोईद खान की जरूरत सिर्फ मुस्लिम वोटबैंक के लिए नहीं होगी, बल्कि तीन और वजहों से होगी.
पहली वजह- मोईद खान ने अगर मुंह खोला तो कई और नेता जो उससे जुड़े हैं सब जाएंगे, फिर सपा की सियासत जो अयोध्या में सेट हुई थी वो बिखर जाएगी.
दूसरी वजह- मोईन खान के संबंध सपा नेता राशिद से काफी अच्छे रहे हैं, और राशिद की पकड़ सैफई में सबसे मजबूत है, अगर राशिद ने कोई बड़े राज खोले तो मुश्किलें बढ़ सकती हैं.
तीसरी वजह- मिल्कीपुर सीट पर अगले एक महीने में उपचुनाव होने वाले हैं, मायावती ने इस घटना के बाद जो कहा वो वहां के दलित वोटर्स को प्रभावित कर सकता है, और फिर अवधेश पासी भी हो सकता है वहां सपा को नहीं जीता पाए, इसलिए मोईन सपा की मजबूरी है.
वो सपा के लिए फंड जुटा सकता था और जरूरत के हिसाब से माहौल भी बना सकता था, इसीलिए मोईन शायद सपा की मजबूरी बना हुआ है. सपा नेताओं के आरोप भी यही है कि मिल्कीपुर सीट पर उपचुनाव होना है, इसलिए जानबूझकर इस मुद्दे को तुल दिया जा रहा है, गाजीपुर से सांसद अफजाल अंसारी तो इस मामले पर अलग ही राग अलापते हैं.
इंसाफ हर किसी को मिलना चाहिए, ये बात सच है, लेकिन आरोपी अगर रसूखदार हो तो फिर मीडिया को आगे आना ही पड़ता है. सरकार को फ्रंटफुट पर आकर आदेश देना ही पड़ता है, वरना सपा सरकार में कई मामले ऐसे भी हुए हैं. जब आरोपी को गिरफ्तार करने में ही पुलिस के पसीने छूट जाते थे, बाद में पता चलता था कि आरोपी को किसी बड़े नेता या अधिकारी ने संरक्षण दिया है, अयोध्या वाले केस में किसी ने मोईद को संरक्षण नहीं दिया, उसकी गिरफ्तारी तुरंत हो गई, लेकिन सवाल ये उठ रहा है कि समाजवाद की बात करने वाले नेता अपराधवाद के आरोपियों की पैरवी क्यों कर रहे हैं, डीएनए टेस्ट की मांग जिन्होंने उठाई है.
क्या उन्हें ये बात नहीं पता कि ऐसे केस में पहले मेडिकल टेस्ट ही होता है, और मेडिकल टेस्ट में पुष्टि होने के बाद ही आरोपी को पकड़ा जाता है. जब पहले ही चरण में आप पर लगे आरोपों की पुष्टि होने लगी, मेडिकल रिपोर्ट में लड़की की कही बात सच साबित होती नजर आने लगी तो फिर बात डीएनए टेस्ट तक क्यों जानी चाहिए. डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट आने में आज भी आम तौर पर 25-30 दिन का वक्त लगता है, उतने दिनों में कौन क्या कर दे क्या पता. इसीलिए लड़की को सुरक्षा के लिहाज से लखनऊ भेज दिया गया है, ताकि कोई उसे ये धमकी न दे कि केस वापस ले लो.