अमेरिकी डॉलर (US Dollar) के मुकाबले भारतीय रुपए की गिरावट (Fall of indian rupee) लगातार जारी है. गुरुवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 84.30 रुपए प्रति डॉलर तक गिर गया है जो इसका ऐतिहासिक निचला स्तर है. फॉरेन पोर्टफोलियो इंवेस्टर्स (FPI) की भारतीय बाजार में लगातार बिकवाली और फंड आउटफ्लो के बाद एक और कारण है जिससे भारतीय रुपए में गिरवाट का सिलसिला जारी रह सकता है.
अनुमान जताया गया है कि अमेरिकी चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद आने वाले महीनों में अमेरिकी करेंसी डॉलर और मजबूत हो सकता है. ऐसा हुआ तो भारतीय रुपए और अधिक नीचे जा सकता है. बता दें कि भारतीय रुपए की अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोरी के पीछे कई कारण होते हैं, जो अंतरराष्ट्रीय और घरेलू दोनों तरह की आर्थिक स्थितियों से जुड़े हो सकते हैं. जैसे...
अंतरराष्ट्रीय आर्थिक कारक
- डॉलर की मजबूती: जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था मजबूत होती है और अमेरिकी फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में बढ़ोतरी करता है, तो डॉलर अन्य मुद्राओं के मुकाबले मजबूत हो जाता है. इससे भारतीय रुपया कमजोर होता है.
- कच्चे तेल की कीमतें: भारत कच्चे तेल का बड़ा आयातक है. जब अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो भारत का आयात बिल बढ़ता है. इससे भारतीय रुपए पर दबाव बनता है.
- भूराजनीतिक अनिश्चितताएं: वैश्विक राजनीतिक संकट, जैसे युद्ध या व्यापार युद्ध, से निवेशक सुरक्षित संपत्तियों, जैसे अमेरिकी डॉलर में, पैसा लगाते हैं. इससे भी रुपए की मांग घटती है.
घरेलू आर्थिक स्थिति है कारण
- व्यापार घाटा: अगर भारत का आयात उसके निर्यात से ज्यादा होता है, तो विदेशी मुद्रा की मांग बढ़ती है, जो रुपए को कमजोर कर देती है.
- महंगाई दर: उच्च मुद्रास्फीति रुपए की क्रय शक्ति को घटाती है, जिससे उसकी विनिमय दर प्रभावित होती है.
- विदेशी निवेश में गिरावट: अगर विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजार या बॉन्ड बाजार से पैसा निकालते हैं, तो रुपए पर दबाव पड़ता है. यह आमतौर पर तब होता है जब वैश्विक निवेशक बेहतर रिटर्न की तलाश में अन्य जगह निवेश करते हैं.
मौद्रिक नीति भी डालता है असर
- भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) रुपए की विनिमय दर को स्थिर बनाए रखने के लिए कदम उठाता है. लेकिन अगर वैश्विक स्थितियां प्रतिकूल होती हैं, तो रुपए की कमजोरी पर पूरी तरह से रोक लगाना मुश्किल हो सकता है.
- अगर RBI ब्याज दरों में कमी करता है, तो विदेशी निवेशक रुपए की संपत्ति में कम आकर्षण पाते हैं, जिससे रुपए पर दबाव बढ़ सकता है.
आयात और निर्यात का प्रभाव
- भारत भारी मात्रा में दूसरे देशों से कच्चे तेल का आयात करता है. तेल की बढ़ती कीमतें रुपए की कमजोरी में योगदान करती हैं क्योंकि इससे विदेशी मुद्रा भंडार कम हो सकता है.
- अगर भारत के प्रमुख निर्यात क्षेत्रों, जैसे आईटी सेवाओं या फार्मास्यूटिकल्स, में किसी कारण से गिरावट आती है, तो विदेशी मुद्रा की आवक कम हो सकती है.
मनोवैज्ञानिक और सट्टा दबाव
- विदेशी मुद्रा बाजार में अक्सर सट्टेबाजी होती है. अगर निवेशक रुपए की कमजोरी की उम्मीद करते हैं, तो वे डॉलर की खरीदारी कर सकते हैं, जिससे रुपए पर और दबाव बढ़ता है.
रुपए की कमजोरी एक जटिल परिघटना है, जिसमें कई आर्थिक, राजनीतिक, और मनोवैज्ञानिक कारक शामिल होते हैं. हालांकि, लंबे समय तक आर्थिक सुधार और सही नीतियों से रुपए में स्थिरता लाई जा सकती है. मोदी सरकार लगातार ऐसी नीति बना रही है, जिससे गिरते रुपए पर लगाम लगाया जा सके. साथ ही केंद्र सरकार गैर-आवश्यक वस्तुओं के आयात को नियंत्रित करने के लिए कस्टम ड्यूटी बढ़ाने पर भी विचार कर रही है, ताकि विदेशी मुद्रा की बचत की जा सकती है.
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