नई दिल्ली: समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का आधिकारिक फेसबुक अकाउंट शुक्रवार शाम को अचानक बंद हो गया था. यह अकाउंट शनिवार सुबह फिर से चालू हो गया, जिससे राजनीति में हंगामा मच गया. सपा के नेताओं ने इसकी जोरदार निंदा की है. इस वेरिफाइड अकाउंट पर 80 लाख से ज्यादा लोग फॉलो करते हैं. सूत्रों के मुताबिक, शुक्रवार शाम करीब 6 बजे यह अकाउंट बंद हो गया.
सरकारी सूत्रों ने बताया कि फेसबुक ने अकाउंट को एक गलत पोस्ट शेयर करने के कारण बंद किया था. यह पेज अखिलेश यादव की राजनीतिक बातें, सरकार की नीतियों पर आलोचना और चुनावी कैंपेन से जुड़ी चीजें पोस्ट करता रहता है. बिना किसी चेतावनी के यह पेज एक्सेसिबल नहीं रहा. सपा की आईटी टीम ने तुरंत मेटा (फेसबुक की कंपनी) से संपर्क किया और फेसबुक इंडिया टीम को समस्या बताई.
शनिवार सुबह अकाउंट फिर से सक्रिय हो गया, और पुरानी सभी पोस्ट, फोटो और वीडियो दोबारा दिखने लगीं. मेटा ने अभी तक बंद करने का कोई कारण नहीं बताया है, लेकिन सपा के नेता इसे राजनीतिक साजिश बता रहे हैं. घोसी के सांसद राजीव राय ने एक्स (ट्विटर) पर गुस्सा जाहिर किया. उन्होंने लिखा, "देश की संसद में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के नेता, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी का फेसबुक अकाउंट बंद करना न सिर्फ निंदनीय है, बल्कि भारत के लोकतंत्र पर हमला भी है. अगर यह सत्ताधारी पार्टी के इशारे पर हुआ है, तो यह कायरता की निशानी है. समाजवादियों की आवाज दबाने की कोशिश गलती है."
सपा के प्रवक्ता फखरुल हसन चांद ने भी चिंता जताई. उन्होंने कहा, "बीजेपी सरकार ने बिना घोषणा के इमरजेंसी लगा दी है, जहां हर विरोधी आवाज को दबाया जा रहा है. लेकिन समाजवादी पार्टी बीजेपी की जन-विरोधी नीतियों का विरोध जारी रखेगी."
इधर, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने पत्रकारों से कहा कि सरकार का इस बंदी में कोई हाथ नहीं है. उन्होंने कहा, "यह कार्रवाई फेसबुक ने की है. सरकार का इसमें कोई रोल नहीं. उनके अकाउंट से एक गाली-गलौज वाली पोस्ट की गई थी, इसलिए फेसबुक ने अपनी पॉलिसी के तहत यह फैसला लिया."
दूसरी ओर, वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने सपा के दावों को पूरी तरह अस्वीकार करते हुए कहा कि केंद्र सरकार का इसमें कोई हाथ नहीं है. यह कदम फेसबुक की आंतरिक समुदायिक नियमावली के पालन में उठाया गया है. एक मीडिया रिपोर्ट के हवाले से बताया गया कि अधिकारी बोले, "यह कार्रवाई सूचना प्रौद्योगिकी मध्यस्थ दिशानिर्देशों के अनुरूप है, जो पूरे देश में सभी पर बराबर लागू होती है. फेसबुक ने एक विवादास्पद पोस्ट को आधार बनाकर यह फैसला लिया, जो उसके मानकों के विरुद्ध था."
सरकारी पक्ष ने जोर देकर कहा कि फेसबुक को ऐसा कोई आदेश जारी नहीं किया गया और यह पूरी तरह कंपनी के स्वतंत्र नियमों पर आधारित है. इस घटना ने सोशल मीडिया पर राजनीतिक बहस को और भड़का दिया है, जहां विपक्ष इसे दमन का प्रतीक बता रहा है, जबकि सत्ता पक्ष इसे तटस्थ कार्रवाई करार दे रहा है.