पटना: बिहार के चौक-चौराहों पर चुनावी चर्चाएं शुरू हो चुकी है, पटना के डाकबंगला से लेकर गांधी मैदान की चाय दुकानों तक ये चर्चा तेज है कि क्या नीतीश कुमार 10वीं बार भी बिहार के मुख्यमंत्री बनेंगे, क्या इस बार फिर जनता उन पर भरोसा जताएगी, वैसे तो नीतीश कुमार की उम्र 74 साल हो चुकी है, उनकी कई तस्वीरें भी वायरल होती रहती हैं, लेकिन कुछ महीने पहले जब खान सर जैसे फेमस टीचर ने नीतीश से मुलाकात की तो कहा आज भी वो 5-5 IAS के बराबर काम करते हैं, एक भी फाइल उनके टेबल पर पेंडिंग नहीं रहती..अगर काम की तुलना करें तो लालू यादव और कांग्रेस के राज में जो काम बिहार में बरसों तक नहीं हुआ. ऐसे ही 5 बड़े काम आपको गिनवाते हैं, फिर इस बात पर आते हैं कि क्या तेजस्वी के पास इसका कोई विकल्प क्यों नहीं है.
नीतीश कुमार के 5 काम
पहला काम- साल 2005 से 2010 तक जब नीतीश लगातार 5 साल पहली बार सीएम रहे तो गांवों से शहरों की कनेक्टिविटी पर भरपूर ध्यान दिया, जिसका फायदा किसानों से लेकर पढ़ने वाले युवाओं तक को मिला, साइकिल योजना शुरू कर सीएम नीतीश ने शिक्षा मजबूत करने के साथ-साथ एक बड़े वर्ग की सियासत को लंबे वक्त के लिए साध लिया.
दूसरा काम- जब नीतीश कुमार ने 2010 में चुनाव जीता तो जाति, आय और आवासीय वाली व्यवस्था को दुरुस्त किया, ब्लॉक से लेकर जिला स्तर तक अधिकारियों को ऐसा टाइट किया कि विरोधी पार्टी के समर्थक भी ये कहने लगे कि अब बिहार में अधिकारी जनता की सुनते हैं.
तीसरा काम- बिना किसी भेदभाव के हर गली, हर नाली को पक्का किया, हर घर बिजली देने का जो वादा किया था, उसे साल 2018 में शत प्रतिशत पूरा किया. लालटेन युग वाली पब्लिक बिजली की चकाचौंध लेकर नीतीश की मुरीद हो गई.
चौथा काम- साल 2016 में शराबबंदी का फैसला लेकर नीतीश ने राज्य की आधी आबादी को बड़ी राहत दी, उससे पहले चुनाव में 33 फीसदी आरक्षण देकर महिलाओं के लिए नई मिसाल कायम की थी, जिसका नतीजा ये हुआ महिलाएं नीतीश की ऐसी मुरीद हुईं कि कई चुनावों 2022 चुनाव में जेडीयू को हिंदू और मुस्लिम दोनों महिलाओं ने भर-भरकर वोट किया, और ये ट्रेंड 2027 में भी देखने को मिल सकता है.
पांचवां काम- साल 2020 से अब तक बिहार में करीब 7 लाख 24 हजार लोगों को सरकारी नौकरी दी चुकी है, पलायन रोकने के लिए कई बड़े प्लान पर काम चल रहा है. रोजगार के लिए आर्थिक मदद भी नीतीश कुमार दे रहे हैं, जिसका फायदा उन्हें इस चुनाव में मिल सकता है.
शायद यही वजह है कि बिहार कांग्रेस के नेता कन्हैया कुमार पलायन रोको यात्रा निकालने में जुटे हैं, ताकि युवाओं का ध्यान अपनी तरफ खींचा जा सके, इसके लिए बकायदा दिल्ली से राहुल गांधी फ्लाइट पकड़कर पटना पहुंचे, पर वहां भी वक्फ बोर्ड बिल के समर्थन के लिए एक युवा उनके मीटिंग रूम के बाहर पहुंच गया, नतीजा कांग्रेस नेताओं ने ही उस पर हाथ उठा दिया, जिसका वीडियो वायरल हुआ तो पब्लिक कहने लगी राहुल पहले कार्यकर्ताओं को संभालें, बिहार का सपना बाद में देखें. हालांकि सियासत में कुछ भी संभव है, पर बिहार के बारे में कहा जाता है वहां जनता अब जाति की बजाय विकास को तवज्जो देने लगी है, वरना करीब 3 फीसदी आबादी वाले कुर्मी समुदाय से आने वाले नीतीश कुमार को करीब 20 साल से सीएम की कुर्सी देकर नहीं रखती. जो बिहार अपने पिछड़ेपन, पलायन, गरीबी और अपराध के लिए बदनाम था, वो बिहार नीतीशकुमार के राज में कैसे बदला, ये बात वहां का वो व्यक्ति बेहतर बता सकता है, जिसने साल 2005 के पहले का दौर देखा है, आज नीतीश कुमार के काम के चर्चे विदेशों तक हो रहे हैं, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी तक से उन्हें मेल आ रहे हैं कि आप बताइए आपने बिहार को कैसे बदला, जिसे देखकर बिहारवासी गदगद हैं, पर विपक्ष नीतीश पर लगातार सवाल उठा रहा है, तेजस्वी से लेकर कन्हैया कुमार तक सीएम की कुर्सी तक किसी भी तरह से पहुंचना चाहते हैं.