जब-जब मुस्लिम लीग का नाम आता है कांग्रेस बौखला जाती है. लेकिन एक बार फिर चुनाव में मुस्लिम लीग की एंट्री हो गई है.भारत हो या अमेरिका, नेहरू रहे हो या राहुल गांधी मुस्लिम लीग को लेकर कांग्रेस से जब भी कोई सवाल पूछा गया है कांग्रेस के जवाब और प्रतिक्रिया ने हैरत में डाल दिया है. इसलिए समय-समय पर सवाल उठता है कि मुस्लिम लीग से कांग्रेस को इतना प्यार क्यों है। 2023 में जब अमेरिका के वॉशिंगटन डीसी में राहुल गाँधी ने आईयूएमएल पार्टी को 'सेक्यूलर पार्टी' बता दिया था तो उनकी जमकर आलोचना हुई थी. जिसे कांग्रेस पचा नहीं पाई थी. लेकिन अब एक बार चुनावों से पहले इस मुद्दे की एंट्री हो गई है क्योंकि इस बार कांग्रेस के मुस्लिम लीग से प्यार की ये झलक अब उसके घोषणा पत्र में भी दिख गई है. जी हाँ कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में जनता को लुभाने के लिए जैसे ही अपना घोषणा पत्र जारी किया बीजेपी के हाथ कुछ ऐसा लग गया कि कांग्रेस तिलमिला गई. हर बार की तरह कांग्रेस ने फिर बीजेपी पर ही पलटवार शुरू कर दिया।
कांग्रेस ने 5 ‘न्याय’ और 25 ‘गारंटी’ पर आधारित घोषणा पत्र को न्याय पत्र का नाम दिया गया है. लेकिन इस घोषणापत्र के ऐलान के साथ ही सियासी बवाल भी मच गया. मामले को बीजेपी जबरदस्त तरीके से भुना रही है. यहां तक कि खुद पीएम मोदी ने अपनी एक चुनावी जनसभा में कांग्रेस को घेर लिया कांग्रेस के घोषणा पत्र में वही सोच झलकती है, जो आजादी के आंदोलन के समय मुस्लिम लीग में थी. अब बीजेपी इस मुद्दे को ज़ोर-शोर से उठा रही है. अपनी बात साबित करने के लिए बीजेपी ने मुस्लिम लीग के 1936 के घोषणापत्र और कांग्रेस के 2024 के घोषणापत्र के तीन बिंदुओं की आपस में तुलना भी की. बीजेपी के मुताबिक'1936 में मुस्लिम लीग ने अपने मेनिफेस्टों में कहा था कि वह मुस्लिमों के लिए शरिया व्यक्तिगत कानूनों (पर्सनल लॉज) की रक्षा करेगी. 2024 में कांग्रेस ने भी कहा है कि वह यह तय करेगी कि अल्पसंख्यकों के व्यक्तिगत कानून हों. 1936 में मुस्लिम लीग ने कहा ता कि वो बहुसंख्यकवाद के खिलाफ लड़ेगी. 2024 में कांग्रेस ने कहा है कि भारत में बहुसंख्यकवाद के लिए कोई जगह नहीं है. 1936 में मुस्लिम लीग ने कहा था कि हम मुस्लिमों के लिए स्पेशल स्कॉलरशिप और नौकरियों के लिए संघर्ष करेंगे. 2024 में कांग्रेस ने कहा है कि हम इंश्योर करेंगे कि मु्स्लिम छात्रों को विदेश में पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप मिले.' कांग्रेस हमेशा से दावा करती आई है कि मुस्लिम लीग जो आज़ादी के बाद यानी 1948 में बनी है वो एक सेक्युलर पार्टी है. इस बार भी जब लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच रिश्ते पर सवाल पूछा तो कांग्रेस ने जवाब देने के बजाय उल्टा बीजेपी को ही घेरना शुरू कर दिया। क्या कांग्रेस की इस प्रतिक्रिया और बौखलाहट पर सवाल नहीं उठना चाहिए?
अब ज़रा मुस्लिम लीग के बारे में जान लेते हैं. ये जान लेते हैं कि इसकी तुलना मोहम्मद अली जिन्ना की मुस्लिम लीग से क्यों की जाती है. क्या इनका आपस में कोई कनेक्शन है? तो 1947 में जब भारत का बंटवारा हुआ तो मोहम्मद अली जिन्ना की अगुवाई वाली मुस्लिम लीग भंग कर दी गई। क्योंकि यही लीग लंबे समय से अलग पाकिस्तान की मांग कर रही थी। बंटवारे के बाद जिन्ना पाकिस्तान के गवर्नर जनरल बने और सितंबर 1948 में उनका निधन हो गया। जिन्ना की मौत के बाद वेस्ट पाकिस्तान में फिर मुस्लिम लीग का गठन हुआ और ईस्ट पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में ऑल पाकिस्तान आवामी मुस्लिम लीग बना। ठीक इसी समय भारत में मोहम्मद इस्माइल ने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग की स्थापना की। ये वही मोहम्मद इस्माइल थे जो जिन्ना वाली लीग में मद्रास प्रेसिडेंसी के अध्यक्ष हुआ करते थे लेकिन बंटवारे के वक्त भारत ही रह गए। ऐसे में कहीं न कहीं इस पार्टी की विचारधारा मोहम्मद अली जिन्ना की मुस्लिम लीग की विचारधारा तक कुछ हद तक प्रभावित होगी। और इसी मुस्लिम लीग से कांग्रेस का गठबंधन है. क्या यही वजह है कि कांग्रेस बार-बार मुस्लिम लीग की वकालत करती है.
अब बताते हैं कांग्रेस और भारत की मुस्लिम लीग में क्या कनेक्शन है. इसके लिए केरल की राजनीति को समझना ज़रूरी है.केरल में मुख्य तौर पर दो गठबंधन हैं। पहला यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी UDF और दूसरा लेफ्ट की अगुवाई वाला लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी LDF। कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री के. करुणाकरण ने साल 1979 में यूडीएफ की स्थापना की थी।वर्तमान में कांग्रेस और IUML इसी फ्रंट में एक साथ गठबंधन में हैं। केरल में दोनों पार्टियां लंबे समय से गठबंधन का हिस्सा हैं।