नेपाल : सोशल मीडिया बैन होने के बाद नेपाल में हुए बवाल के बाद राजधानी काठमांडू इस वक्त कर्फ्यू भी लागू है. सुरक्षा के मद्देनजर जगह-जगह सुरक्षा बल तैनात हैं. शहर की गलियों में सन्नाटा पसरा हुआ है. सन्नाटे के बीच देश के युवाओं ने नेपाल की राजनीति को हिला दिया है. चार घंटे चली वर्चुअल बैठक के बाद जेन-ज़ी (Gen-G) आंदोलनकारियों ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतरिम नेता बनाने का फैसला किया है. सुशीला कार्की के नेतृत्व में नेपाल को संभाला जाएगा. नेपाल में मची राजनीतिक अस्थिरता के बीच यह फैसला उम्मीद की किरण से कम नहीं है.
राजनीतिक उठापटक के बीच कई घंटों तक चली बैठक में निर्णय लिया गया कि किसी भी सक्रिय राजनीतिक दल से जुड़े व्यक्ति को नेतृत्व में जगह नहीं मिलेगी. आंदोलनकारी युवा अपने इस अभियान को पूरी तरह गैर-राजनीतिक और स्वच्छ बनाए रखना चाहते हैं. यही वजह है कि कार्की का नाम पर लगभग सभी लोगों ने सर्वसम्मति जताई. कार्की न केवल पूर्व मुख्य न्यायाधीश रही हैं. बल्कि, उनकी पहचान एक ऐसी शख्सियत की है जो सत्ता से टकराने से कभी पीछे नहीं हटीं.
बालेंदर शाह का सामने आया था नाम
नेपाल में मचे बवाल में काठमांडू के मेयर बालेंदर शाह और युवा नेता सागर धकाल के नाम खूब चर्चाओं में रहा, लेकिन आंदोलनकारियों के साथ हुई बैठक में निर्णय लिया गया कि कार्की जैसी अनुभवी और निष्पक्ष व्यक्तित्व ही नेपाल की जनता का भरोसा जीत सकते हैं.
सेना प्रमुख का सुझाव को दरकिनार
नेतृत्व को लेकर सेना प्रमुख अशोक राज सिग्देल ने भी अपना पक्ष रखा कि युवाओं को राष्ट्रिया स्वतंत्र पार्टी या कारोबारी दुर्गा प्रसाई जैसे चेहरों से बातचीत करना चाहिए, लेकिन प्रदर्शनकारियों ने इस प्रस्ताव को मानने से इंकार कर दिया. उनका मानना था कि किसी भी राजनीतिक एजेंडे वाली ताकत से दूरी बनाए रखना जरूरी है, ताकि आंदोलन की निष्पक्षता और आरोपों से दूर रखा जा सके.
सुशीला कार्की का ये है इतिहास
नेपाल की अंतरिम नेतृत्व संभाल रही सुशीला कार्की का जन्म 7 जून 1952 को बिराटनगर में हुआ. सात भाई-बहनों में सबसे बड़ी कार्की ने 1979 में वकालत की शुरू की. वकालत के बाद लंबे समय तक अध्धयन से जुड़ी रही. वर्ष 2007 में उन्हें सीनियर एडवोकेट का दर्जा मिला. 2016 में सुशीला कार्की नेपाल की पहली महिला चीफ जस्टिस बनीं. हालांकि, उनका कार्यकाल हालांकि लंबा नहीं रहा, लेकिन छोटे कार्यकाल में उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले की।
सत्ता से टक्कर लेने के बाद बनी उम्मीद
सुशीला कार्की के खिलाफ 2017 में नेपाली कांग्रेस और माओवादी सेंटर ने महाभियोग प्रस्ताव लाया. इस प्रस्ताव के बाद देशभर में विरोध हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने संसद को इस प्रक्रिया पर रोक लगाने का आदेश दिया. अंततः दोनों दलों को प्रस्ताव वापस लेना पड़ा. इस घटना ने कार्की को जनता के बीच स्थापित कर दिया.
राजनीति से जुड़े हैं परिवार के सदस्य
कार्की के पति दुर्गा प्रसाद नेपाली कांग्रेस के प्रमुख नेता रहे हैं. छात्र जीवन से ही लोकतांत्रिक आंदोलनों में सक्रिय हो गए. नेपाल में एक विमान अपहरण प्रकरण में भी उनका नाम आया था. न्यायपालिका से रिटायरमेंट के बाद सुशीला कार्की ने लेखनी शुरू की. उनकी आत्मकथा ‘न्याय’ 2018 में और उपन्यास ‘कारा’ 2019 में प्रकाशित हुआ. सुशीला कार्की ने बिराटनगर जेल के अनुभवों को साहित्यिक रूप दिया.