उस 56 सेकंड में क्या हुआ था? पुलिस ने जवाबी फायरिंग क्यों नहीं की? क्या अतीक ने हमलावरों को खुद बुलाया था ?

Global Bharat 16 Apr 2023 3 Mins 44 Views
उस 56 सेकंड में क्या हुआ था? पुलिस ने जवाबी फायरिंग क्यों नहीं की? क्या अतीक ने हमलावरों को खुद बुलाया था ?

उस 56 सेकंड की तस्वीर में UP की सबसे बड़ी घटना का राज छिपा है? जो होने वाला था क्या उसका अंदाजा पहले से ही था? क्या पुलिसवालों को उस बात की भनक नहीं थी जिस बात का अंदाजा अतीक को हो चुका था! अगर पुलिसवालों को जवाब देना ही था तो फिर हाथों में हथियार लेकर सबकुछ देखते क्यों रह गए? अतीक पुलिस की इस गाड़ी से उतरता है! सबकुछ सामान्य दिखता है! पुलिस की जिप्सी से एक पुलिसकर्मी AK-47 लेकर सबसे पहले उतरता है…उसका उंगलियां गन के ट्रिगर पर है, ऐसा लगता है जैसे सामने कुछ होते ही वो जवाब देगा, चारों तरफ से पुलिसकर्मी अतीक और अशरफ को घेर लेते हैं, और सबसे पहले अशरफ जिप्सी से उतरता है! फिर अतीक गाड़ी से बाहर निकलता है, इस तस्वीर को ध्यान से देखिए…अतीक अहमद जैसे ही गाड़ी से बाहर निकलता है, वो बाईं तरफ देखता है, फिर सिर हिलाकर एक इशारा करता है, जैसे वो किसी को बुला रहा है? सवाल उठता है कौन खड़ा था ? और ये बात अतीक को कैसे पता थी कि वहां कोई मिलेगा, क्योंकि गाड़ी से उतरने से पहले ही इशारा बताता है कि अतीक को ये पहले से ही पता था वहां कोई न कोई होगा? फिर कुछ सेकंड बाद ही हमलावर उसी तरफ से आते है जिस ओर अतीक इशारा करता है! यही से इस कहानी में कई सवाल खड़े हो जाते है…अतीक अहमद की मौत के पीछे का सच अब आपको खुद दिख जाएगा…सोशल मीडिया पर हज़ारों ट्वीट किए जा रहे है, आख़िर अतीक ने क्या खुद हमलावरों को बुलाया था? क्योंकि जहां अतीक खड़ा था ठीक उसके 15 कदम दूर अतीक की मौत खड़ी थी, पर मौत की कहानी गोली चलने से ठीक 24 घण्टे पहले लिखी गई, अतीक अहमद को मेडिकल के लिए एक दिन पहले भी पुलिस लाई थी…पहली नज़र में लगता है कि हमले की प्लानिंग एक दिन पहले ही तय हो गई थी, जिस वक्त अतीक की गाड़ी रूकी वो तीनों हमलावर वहां मौजूद बताए जा रहे थे, अतीक के चेहरे पर जो डर था वही डर UP पुलिस के चेहरे पर क्यों था? ऐसी कौन सी बात है जो अतीक और UP पुलिस दोनों को पता थी?

UP पुलिस को गैंगवार का शक था, अतीक के दुश्मन उसपर हमला कर सकते है ऐसा भी शक था, पर हैरानी की बात ये है कि जिस वक्त अतीक को मेडिकल के लिए लाया गया था उस वक्त कोई सीनियर पुलिस अधिकारी नहीं था…धूमनगंज थाने के थाना प्रभारी, इंस्पेक्टर और सब इंस्पेक्टर और कॉन्सटेबल साथ थे…ऐसा हमला कम होता है जब मौत सिर्फ उसी की हो जिसपर भीड़ में भी निशाना लगाया गया हो…!

हमलावरों को पता था अतीक किस जगह मीडिया से बात करेगा, उन्हें ये पता था निशाना किसपर लगाना है, भीड़ में किसी को ज्यादा चोट नहीं लगी पर अशरफ और अतीक की कहानी ख़त्म हो गई! क्या किसी पुलिसकर्मी को गोली न लगे इसलिए हमलावरों ने एकदम पास से हमला बोला? ऐसे कई सवाल पानी में तैर रहे है? पर एक तस्वीर दिखाते है…जिस वक्त अतीक को प्रयागराज के नैनी जेल से उठाया गया था, वहां की तस्वीर देखिए…चारों तरफ अंधेरा था…वहां भी अगर कोई खड़ा होकर हमलावरों को अपडेट कर रहा होगा तो भी पुलिस को भनक नहीं लगी होगी…पर अतीक का इशारा करना सबकुछ बयां करता है? ऐसी मौत के बाद जाति और धर्म के लोग अपराधी और आतंकी को भी शहीद मान लेते है…? कुछ लोग अतीक को भी शहीद बताने लगे है, दुनिया के कई मुस्लिम देश रमज़ान के महीने में मौत को गलत बताने लगे है!

अतीक ने कुछ दिन पहले ही कहा मिट्टी में मिल गया हूं, फिर पुलिस की पूछताछ में कहा मेरी कोई हैसियत नहीं है मिट्टी में मिल चुका हूं, फिर दूसरे दिन भी ये कहता रहा मैं मिट्टी में मिल चुका हूं, तो क्या अतीक कहानी समझ गया था, पुलिस अंत करे इसके पहले खुद मौत की तरफ चले! ये सिर्फ कहानी नहीं है, बल्कि इस एंगल पर पुलिस भी जांच कर सकती है?
ब्यूरो रिपोर्ट, GLOBAL BHARAT TV

https://youtu.be/5e0saS2Lawg

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