नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के प्राचीन वैभव को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से बीजेपी सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक पत्र लिखा है. पत्र में उन्होंने दिल्ली का नाम बदलकर 'इंद्रप्रस्थ' करने का सुझाव दिया है, जो महाभारत काल में पांडवों द्वारा स्थापित शहर का ऐतिहासिक नाम है. यह मांग दिल्ली के सांस्कृतिक और सनातन विरासत को मजबूत करने के संदर्भ में की गई है.
चांदनी चौक से बीजेपी सांसद खंडेलवाल ने पत्र में कहा, "दिल्ली का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है और यह भारतीय सभ्यता का प्रतीक है. जब भी दिल्ली के इतिहास की चर्चा होती है, तो वह सीधे पांडव काल से जुड़ जाती है. इंद्रप्रस्थ नाम से दिल्ली की सनातन परंपरा स्पष्ट रूप से झलकती है." उन्होंने जोर देकर कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सांस्कृतिक पुनरुत्थान के विजन के अनुरूप, अयोध्या, काशी और प्रयागराज जैसे शहरों की तरह दिल्ली को भी उसके मूल नाम से जोड़ा जाना चाहिए. पत्र में खंडेलवाल ने अतिरिक्त सुझाव भी दिए हैं.
उन्होंने पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर 'इंद्रप्रस्थ जंक्शन' करने और इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का नाम 'इंद्रप्रस्थ अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा' करने की मांग की है. इसके अलावा, दिल्ली के किसी प्रमुख स्थान पर पांचों पांडवों की भव्य प्रतिमा स्थापित करने का आग्रह किया गया है. उनका मानना है कि इससे नई पीढ़ी को धर्म, नैतिकता और साहस के प्रतीक पांडवों की प्रेरणा मिलेगी तथा सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा.
खंडेलवाल ने यह पत्र दिल्ली की स्थापना दिवस (1 नवंबर) के अवसर पर लिखा है, जब 1956 में दिल्ली को संघ राज्य क्षेत्र घोषित किया गया था. उन्होंने पत्र की प्रति दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और अन्य मंत्रियों को भी भेजी है. सांसद ने कहा, "इंद्रप्रस्थ नाम से दिल्ली न केवल राजनीतिक केंद्र बनेगी, बल्कि धर्म, न्याय और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक भी होगी."
दिल्ली का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है, जहां यमुना नदी के तट पर पांडवों ने इंद्रप्रस्थ की स्थापना की थी. इसके बाद मौर्य, गुप्त, राजपूत, सल्तनत और मुगल काल में शहर का विस्तार हुआ, लेकिन इसका मूल क्षेत्र इंद्रप्रस्थ ही रहा. ब्रिटिश काल में लुटियंस दिल्ली का निर्माण भी इसी प्राचीन स्थल के निकट किया गया. अभी तक केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से इस मांग पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन यह प्रस्ताव सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संदर्भ में चर्चा का विषय बन गया है. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह नाम परिवर्तन होता है, तो यह दिल्ली की पहचान को नया आयाम देगा.