बांदा जेल का वो जवान कौन है, जो मुख्तार अंसारी को जीने नहीं देना चाहता, क्या मुख्तार इसके बहाने कोई नई चाल चल रहा है, या फिर कहानी कुछ और है, हम इसे समझने की कोशिश करते हैं, लेकिन उसके पहले आपको मुख्तार के उस लेटर का हिस्सा पढ़वाते हैं, जो उसने जज साहब को लिखी है और बचाने की गुहार लगाई, लेटर में लिखा है कि अभियुक्त की ओर से निवेदन यह है कि 19 मार्च की रात मुझे खाने में विषाक्त पदार्थ दिया गया है। जिसकी वजह से मेरी तबियत खराब हो गई। ऐसा लगा कि मेरा दम निकल जाएगा और बहुत घबराहट हुई। हाथ-पैर ही नहीं पूरे शरीर के नसों में दर्द होने लगा, ऐसा लगा कि अल्लाह को प्यारा हो जाऊंगा। इससे पहले मेरा स्वास्थ्य पूरी तरह से ठीक था। कृपया मेरा सही से डाक्टरों की टीम बनाकर इलाज करवा दें। 40 दिन पहल भी मुझे विषाक्त पदार्थ मिलाकर दिया गया था। इस वजह से वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के माध्यम से पेश होने में असमर्थ रहा।
बांदा जेल के डिप्टी जेलर ने भी इस बात की पुष्टि कि मुख्तार बीमार है, जिसके बाद सवाल उठने लगे कि आखिर ऐसा किया किसने, जांच के बाद जेलर योगेश कुमार, डिप्टी जेलर राजेश कुमार और अरविंद कुमार को योगी सरकार ने सस्पेंड कर दिया, पर सवाल ये है कि आखिर कोई मुख्तार के साथ ऐसा क्यों करना चाहता है, मुख्तार की शिकायत है कि उसेक हाथ-पैरों की नसों में दर्द होने लगा था, तो सवाल उठता है कि क्या उसने पहले से कोई दवा खाई थी, जिसने रिएक्शन किया और उसका ऐसा हाल हो गया, इसकी भी जांच होनी चाहिए। मुख्तार की शिकायत है कि उसे स्लो प्वाइजन दिया गया, पर जेल में जहर आखिर आया कैसे। हो सकता है अधिकारियों के सस्पेंड होने के बाद मुख्तार सुकून की सांस ले, और अपनी जिंदगी में पहली बार थैंक्यू सीएम योगी भी कहे, क्योंकि योगी सरकार अगर एक्शन नहीं लेती, तुरंत मामले का पता नहीं चलता तो कुछ भी हो सकता है, जो लोग मुख्तार से हमदर्दी रखते हैं, उन्हें इसकी कहानी जरूर सुननी चाहिए और उसके बाद फैसला करना चाहिए कि ऐसे लोगों के साथ क्या किया जाना चाहिए।
मुख्तार ने अपनी काली दुनिया की शुरुआत ही एक सिपाही को ऊपर भेजकर की थी। साल 1991 में जब पुलिस ने पकड़ा तो दो पुलिसवालों को भी नहीं बख्शा। इसी दौर में सरकारी ठेकों को लेकर गाजीपुर में इसकी दुश्मनी ब्रजेश सिंह से हुई। साल 1996 में मुख्तार के हौंसले इतने बुलंद हो गए थे कि इसने ASP तक को निशाना बनाया। इसी साल मुख्तार ने पहली बार विधायकी का चुनाव जीता और राजनीति में आते ही पावर बढ़ गया। मुख्तार और ब्रजेश के ग्रुप के बीच बराबर आमना-सामना होता रहा, कई बड़ी फाइलें खुलती रही। साल 2005 में मुख्तार ने खुद ही गाजीपुर पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया, पर खेल करता रहा। भाई अफजाल अंसारी को चुनाव हरवाने वाले कृष्णानंद राय के साथ इसने जो किया, सब जानते हैं।
अगर कोई माफिया राजनीति में आता है तो वो कैसे जनादेश का भी अपमान करता है, इस कहानी से आप समझ सकते हैं। कहते हैं जेल में भी ऐश की जिंदगी जीता था, और साल 2010 में बसपा ने तंग आकर पार्टी से निकाल दिया, तो नया राजनीतिक ठिकाना ढूंढने लगा, पर मुख्तार की बदकिस्मती ये रही कि साल 2017 में यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार बन गई, कभी इसने योगी को भी टारगेट करने की कोशिश की थी, पर कहते हैं वक्त सबका बदलता है, आज मुख्तार जेल में है, योगी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर हैं, पर बावजूद उसके जब मुख्तार को जहर दिए जाने की शिकायत उनके अधिकारियों तक पहुंची तो सीधा उन लापरवाह लोगों को सस्पेंड कर दिया, जिनकी जेल में मुख्तार बंद था, क्या ऐसे ही कई बहाने बनाकर मुख्तार जेल से बाहर आना चाहता है या फिर कहानी कुछ और है, इसकी जांच भी होनी चाहिए। आप इस पूरे मामले पर क्या कहेंगे, कमेटं कर बता सकते हैं।