27 फरवरी को उत्तर प्रदेश की 10 राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव होने हैं, जिसमें से 7 सीटों पर बीजेपी ने अपने उम्मीदवार उतारे, बाकी के तीन पर सपा के कैंडिडेट थे, लेकिन बीजेपी ने अचानक से मूड बदला और आठवें प्रत्याशी के रूप में संजय सेठ का ऐलान कर दिया, जिसके बाद से राजा भैया की भूमिका इस चुनाव में सबसे बड़ी हो गई, जिसे समझने के लिए आपको इस सीटों का पूरा गुणा-भाग समझना होगा.
इसके लिए अखिलेश यादव राजा भैया की ओर देख रहे हैं, राजा भैया की पार्टी जनसत्ता दल के पास दो विधायक हैं, अगऱ उन्होंने साथ दे दिया तो बात बन जाएगी, पर राजा भैया के सुर बीजेपी के साथ नजर आ रहे हैं, कुछ दिन पहले विधानसभा में उन्होंने बीजेपी सरकार की जमकर तारीफ की, पिछले चुनाव में अखिलेश यादव खुद कुंडा में कुंडी लगाने की बात कर रहे थे, पर अब सपा के कई नेताओं का राजा भैया की पार्टी के शैलेन्द्र कुमार कौशांबी से चुनाव लड़ना चाहते हैं तो हो सकता है राजा भैया अपना दो वोट सपा के लिए कर दें. लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि अखिलेश के साथ तेजस्वी वाला खेल हो जाए, अपनी ही पार्टी के विधायक क्रॉस वोटिंग कर दे. ऐसी ख़बर है कि समाजवादी पार्टी के कई विधायक बीजेपी के संपर्क में है, अगर बीजेपी के लिहाज से देखें तो 8 सीटें जीतने के लिए उसे 296 वोटों की जरूरत होगी, सबको मिलाकर कुल वोटों की संख्या 277 होती है. अभी जयंत चौधरी की पार्टी रालोद ने भी समर्थन कर दिया है, तो उसके 9 विधायक मिलाकर 286 हो जाएंगे.
ऐसे जीतेगी बीजेपी!
अभी भी 10 वोटों की कमी नजर आ रही है, अब अगर सपा के कुछ विधायकों ने अखिलेश का साथ छोड़ दिया तो फिर बीजेपी के आठवें उम्मीदवार को जीताना आसान होगा. जो पार्टी सत्ता में रहती है, उसके साथ जाने को कई नेता तैयार होते हैं, और चूंकि बीजेपी कोई हारी हुई बाजी जल्दी नहीं खेलती. इसीलिए इस बात का डर अखिलेश यादव को भी है कि कहीं उनके साथ तेजस्वी वाला खेला न हो जाए.
अखिलेश के पास बस PDA का P बचा है
लोकसभा चुनाव में मोदी को हराने के लिए अखिलेश जिस PDA यानि पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक फॉर्मूले का इस्तेमाल कर रहे थे, वो पहले ही इंडिया गठबंधन की तरह बिखर गया. दलित नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने पद से इस्तीफा दिया तो अटकलें शुरू हो गई कि ऐसे ही एक दिन पार्टी के पद से भी इस्तीफा दे देंगे, हालांकि अखिलेश इस बात से इनकार कर रहे हैं. लेकिन अपना दल कमेरावादी की नेता पल्लवी पटेल ने जिस तरह से सपा प्रत्याशियों को वोट न देने की बात कही है, वो साफ बताता है सपा की सहयोगी पार्टियां भी साथ छोड़ने वाली हैं. इसके अलावा अखिलेश यादव को जिस अल्पसंख्यक वोट पर सबसे ज्यादा भरोसा है, वो भी इस बार दगा दे सकता है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रदेश अध्यक्ष हाफिज नूर अहमद अजहरी ने तो ये तक कह दिया कि ''सपा में मुस्लिमों को खड़ंजा अध्यक्ष, नाली अध्यक्ष, पुलिया अध्यक्ष, और अन्य विंग का सचिव बनाया जाता है. मगर राज्यसभा, विधान परिषद और पार्टी महासचिव जैसे राष्ट्रीय पदों पर अखिलेश यादव के खानदान और अमिताभ बच्चन की पत्नी जया बच्चन को जगह मिलती है.''
कौन हैं संजय सेठ?
जया बच्चन पांचवीं बार राज्यसभा जाने वाली हैं, जिसे लेकर सपा के अंदर विरोध हो रहा है. और इसी बात का फायदा बीजेपी ने आठवें उम्मीदवार के रूप में संजय सेठ को उतारकर उठाने की कोशिश की है. संजय सेठ कभी मुलायम और अखिलेश यादव के करीबी हुआ करते थे. लखनऊ की शालीमार रियल एस्टेट कंपनी के पार्टनर और बड़े उद्योगपति संजय सेठ सपा के कोषाध्यक्ष भी रहे हैं, मतलब इन्हें सपा के खातों की भी पूरी जानकारी है. साल 2016 में सपा ने इन्हें राज्यसभा भेजा, पर साल 2019 में इन्होंने बीजेपी का रूख कर लिया और राज्यसभा की सीट खाली हो गई. उसी सीट पर अब उन्हें फिर से बीजेपी राज्यसभा भेज रही है. पर देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी संजय सेठ की जीत कैसे सुनिश्चित करवाती है.