PM Modi G7 invitation: पीएम मोदी को न बुलाता कनाडा तो कर लेता हजारों करोड़ का नुकसान, इधर कांग्रेस ने सवाल उठाए, उधर कनाडा ने न्यौता भेजा, कैसे बनी बात, इनसाइड स्टोरी हैरान करने वाली है. जी7 देश आखिर क्या है, 7 ताकतवर देशों में चीन और रूस जैसे देश क्यों नहीं है, इस ग्रुप की ताकत क्या है, और मोदी का जी7 देशों की मीटिंग में होना क्यों जरूरी है, वो भी तब जब भारत इस ग्रुप का सदस्य देश नहीं है, ध्यान से समझिए. 2 जून को न्यूज 18 लिखता है, कनाडा ने जी7 में भारत को क्यों नहीं बुलाया, जरा समझिए. मोदी का विरोध करने वाले कई पत्रकारों ने कहा क्या यही भारत की वैश्विक नीति का डंका बज रहा है, मोदी को अब कनाडा भी नहीं बुला रहा है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश कई देशों का नाम भी गिनवाने लगते हैं, कहते हैं
“इस बार ब्राज़ील, मेक्सिको, दक्षिण अफ़्रीका और यूक्रेन के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित किया है. जो कि भारत की बड़ी कूटनीतिक चूक है.”
6 जून को मोदी ट्वीट करते हैं, और कहते हैं कनाडा के नए प्रधानमंत्री से हमारी बात हुई है, उन्होंने जी7 मीटिंग में आने का आमंत्रण दिया है. उन्हें हमने जीत की बधाई दी है, यानि मोदी को न्यौता भी मिला है, और वो जानेवाले भी हैं. पर ये सब कुछ ही दिनों के भीतर कैसे हुआ. शादी-विवाह का न्यौता भी करीब एक महीने पहले दिया जाता है, और यहां तो दुनिया के बड़े दिग्गजों को बुलाया जाना है, फिर मोदी को सिर्फ 10 दिन पहले कनाडा ने बुलावा भेजा, इसके क्या मायने हैं ?
पिछली बार इटली में आयोजित जी7 समिट में पीएम मोदी ने हिस्सा लिया था. अब इस बार कनाडा जाएंगे, ऐसी ख़बर है कि कनाडा ने भारत को न्यौता नहीं दिया तो वहां के कई विदेशी एक्सपर्ट भड़क गए थे, उनका मानना था कि जस्टिन ट्रूडो सरकार में जो गलतियां हुई, उसे मार्क कार्नी को नहीं दोहराना चाहिए. इससे कनाडा को भारी-भरकम नुकसान हो सकता है. एशिया पैसिफिक फाउंडेशन ऑफ कनाडा में रिसर्च एंड स्ट्रैटजी की उपाध्यक्ष वीना नादजीबुल्ला का कहना है कि
असल में बात ये है कि दुनिया की उभरती हुई शक्तियों में से एक के साथ जुड़ने का अवसर गंवाने में ओटावा सबसे अलग है. अमेरिका भी ICET ढांचे के माध्यम से भारत के साथ रक्षा और प्रौद्योगिकी संबंधों को गहरा कर रहा है. इसके साथ ही टोक्यो और कैनबरा भी भारत को अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीतियों के स्तंभ के रूप में देख रहे हैं. लंदन और पेरिस भारत को एक प्राथमिकता वाले बाजार और समुद्री-सुरक्षा पार्टनर के रूप में देखते हैं. जबकि पिछले साल जी7 की बैठक में इटली ने भारत को आमंत्रित करते सहयोग को मजबूत करने का मौका भुनाया.
कनाडा के नए प्रधानमंत्री के कई सलाहकारों ने ये बात अंदरखाने मानी है कि भारत को छोड़कर इस दौर में आगे चलना मूर्खता के सिवा और कुछ नहीं है. इस बार वहां की सरकार में तीन भारतीय मूल के लोग भी शामिल हैं, उनसे भी वहां के प्रधानमंत्री ने जरूर सलाह ली होगी. क्योंकि कनाडा और भारत के रिश्ते 2023 से पहले अलग स्तर पर रहे हैं.
कनाडा आज भी भारत से मंगाए जाने वाले कपड़े, दवाइयां, गहने, हीरे, मशीनरी और ऑर्गेनेकि केमिकल्स पर निर्भर है. वहां जो खेती होती है, उसमें भी भारत के सामान इस्तेमाल होते हैं. भारत वहां से दाल, तेल, लकड़ी, और फर्टिलाइजर मंगवाता है. दोनों देशों का कारोबार कई बिलियन डॉलर का है.
अगर भारत को कनाडा नहीं बुलाता, रिश्तों की दूरियां और बढ़ती जाती तो फिर कनाडा को बड़ा नुकसान हो सकता था, क्योंकि कनाडा की अर्थव्यवस्था पहले से ही खराब स्थिति में है, कोविड के बाद अमेरिका से चल रहे खटास ने कनाडा की आर्थिक स्थिति अस्त-व्यस्त कर दी है. ऐसे में भारत जैसे बड़े बाजार के खिलाफ जाना कनाडा के नए पीएम के लिए ठीक नहीं था.
चूंकि कनाडा के अंदर भारतीय भी भारी संख्या में रहते हैं, और जस्टिन ट्रूडो ने साल 2023 में चूंकि ये कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि वहां छिपे खालिस्तानी निज्जर की हत्या में भारत का हाथ है, जिसका भारत ने मुंहतोड़ जवाब दिया. जिसके बाद से दोनों देशों के राजनयिक रिश्ते भी लगातार बिगड़ते रहे, पर अब नए प्रधानमंत्री जिनका राजनीति में अनुभव जीरो है, उन्हें लिबरल पार्टी की ओर से चुना ही इसीलिए गया है ताकि वहां की अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सकें, किसी नए विवाद में न पड़ें.
मार्क कार्नी से मोदी की मुलाकात अब कैसी रहती है, वहां ट्रंप से भी मोदी की मुलाकात पर दुनिया की निगाहें टिकी होंगी. रील बनाने वाली भीड़ पीएम मोदी और इटली की पीएम जॉर्जिया मेलोनी की तस्वीरें पर भी नजरें गड़ाएं बैठी होगी. वैसे तो 7 देशों के पास कोई कानूनी अधिकार नहीं है, लेकिन पूरे साल इन देशों के विदेश मंत्री और अधिकारी बैठकें करते रहते हैं, दुनियाभर के मुद्दों पर खाका तैयार करते रहते हैं तो इसका एक अपना अस्तित्व हो जाता है. इस बार विश्व शांति, सुरक्षा, मजबूत अर्थव्यवस्था और डिजिटल प्रौद्योगिकी पर चर्चा होगी. हालांकि कई एक्सपर्ट ये भी मानते हैं कि भारत के बिना किसी ग्रुप की अब कल्पना नहीं की जा सकती, जी 7 की बजाय अब जी20 पर दुनिया को फोकस होना होगा, जो 20 देशों का ग्रुप है.