Sambhal violence: ये हर कोई समझना चाहता है कि जब रामपुर के नवाब आजम खान को जेल में डालने में देरी नहीं की तो फिर जियाउर्रहमान बर्क की गिरफ्तारी में कहां अड़चन आ रही है, क्योंकि जब तक संभल के सांसद को योगी की पुलिस गिरफ्तार नहीं करती तब तक संभल में बीजेपी की पिच तैयार नहीं होगी. इसीलिए आजम खान की तरह बर्क की गिरफ्तारी पक्की मानी जा रही है.
संभल पुलिस को गुलाम ने बताया है कि संभल में एक सांसदजी के नाम से ग्रुप था, उस ग्रुप से जियाउर्रहमान का क्या संबंध था. कॉल डिटेल खंगाली जा रही है, गुलाम का फोन फोरेंसिक टीम के पास भेजा गया है. ये पता करने के लिए की क्या उसने कभी जियाउर्रहमान बर्क को कभी कॉल की थी. अगर पुलिस की पड़ताल में गुलाम औऱ वर्तमान सांसद जियाउर्रहमान के बीच में कोई भी संपर्क मिला तो गिरफ्तारी पक्की मानी जा रही है.
पुलिस के आधार में इसलिए दम है क्योंकि सारिक साठा के निर्देश पर गुलाम सीधे दीपासराय के पत्थरबाजों से जुड़ा. उसने हथियार सप्लाई किए, दुबई में बैठे अपने बॉस का आदेश पत्थरबाजों तक पहुंचाया. गुलाम के जरिए विदेशी फंड भी कुछ पत्थरबाजों के पास पहुंचे हैं, पुलिस इस एंगल पर भी जांच करने लगी है. गुलाम ने पूछताछ में ये कबूल किया है कि साल 2014 के चुनाव में मौजूदा सांसद के दादा शफीकुर्रहमान बर्क के कहने पर एक व्यक्ति पर गोली चलाई थी, इसमें मुकदमा दर्ज हुआ, लेकिन राजनीतिक संरक्षण की वजह से वो बच गया, और बर्क को अब्बा कहने लगा, बर्क के घर में हथियार भी छिपाए जाते थे, ताकि किसी को शक न हो.
संभल में सियासत से ही शुरू हुई है खुदाई, ये बात योगी कभी भी सार्वजनिक तौर पर कबूल सकते हैं क्योंकि अपनी-अपनी सियासत है कभी सपा राज में मंदिरों पर कब्जा हुआ तो योगीराज में उन्हें हटाया जा रहा है, योगी को मंदिर पसंद है, जबकि अखिलेश को मस्जिद पसंद है, मुसलमान पसंद है.