राजस्थान : कहते हैं कि विवाद एक तरफ से नहीं होता है, ना ही ताली एक हाथ से बजती है, टोंक में कलेक्टर मैडर के आदेश पर नरेश मीणा को समझाने पहुंचे SDM की पूरी कुंडली अब मीडिया में आ चुकी है! अमित चौधरी के पास कुल 5 साल का अनुभव है! नरेश मीणा के साथ जो हुआ वो तो सबने देखा लेकिन क्या अमित चौधरी का पूरा किस्सा आपको पता है?
साल 2019 में राजस्थान सिविल सर्विस की परीक्षा पास की...उनको पहली पोस्टिंग धौलपुर में मिली! उन्हें वहां पर असिस्टेंट कलेक्टर बनाया गया! कलेक्टर की निगरानी में उन्हें वहां पर काम सीखना था...हालांकि कोई ऐसी बात होती है कि उनका तबादला सिर्फ 5 दिनों में ही कर दी जाती है! क्या ऐसा कलेक्टर के कहने पर हुआ था? इसके बाद नागौर में दूसरी पोस्टिंग हुई, पर कुर्सी असिस्टेंट कलेक्टर की ही मिली!
हालांकि कुछ दिनों बाद नागौर में SDM बन जाते हैं...हर व्यक्ति का सिर्फ एक पहलू ही नहीं होता है, अमित चौधरी ने नागौर, हिंडली में काम किया...बूंदी जिले के हिंडोली में अमित चौधरी का नाम पहली बार गूंजा! नरेश मीणा के बजाय हिंडोली में एक महिला से विवाद हो गया! हिंडोली में एक ज़मीन विवाद चल रहा था....SDM अमित चौधरी पर एक परिवार आरोप लगाता है कि उनके साथ SDM कार्यालय में अमित चौधरी के सामने जो होता है वो बहुत गलत था! महिला का पति मीडिया में बयान देता है!
SDM अमित चौधरी ने जमीन विवाद के मामले में हमें एसडीएम कार्यालय बुलाया था, जहां उन्होंने हमें जातिसूचक शब्द कहे. पत्नी मंजू बाई को पकड़कर खींचा और नीचे गिरा दिया. बीच-बचाव करने वाले दिव्यांग भाई कमलेश के साथ मारपीट की. एक महीने पहले उन्होंने हमारी जमीन का भी निरीक्षण किया था, मनमाने तरीके से पत्थर गड़वा दिए थे, जिसका हमने विरोध किया तो कहा अगर मुझे रोका तो पूरी जमीन से बेदखल कर दूंगा.
ये विवाद इतना बड़ा था कि राजस्थान सरकार ने आनन-फानन में इन्हें वहां से हटाकर APO कर दिया. तब जाकर मामला शांत हुआ, करीब दो साल तक अमित चौधरी थोड़े बदले-बदले रहे, डुंगरपुर और झालावाड़ में ढंग से ड्यूटी की, पर 29 फरवरी 2024 को जैसे ही टोंक जिले के मालपुरा का एसडीओ बनाकर इन्हें भेजा गया, एक नया कारनाम कर दिया, वहीं के एक पत्रकार अनिल पारीक ने आरोप लगाया
16 अक्टूबर को मुझे फोन पर सूचना मिली कि मेरी दुकान तोड़ दी जाएगी, जबकि हमने कोर्ट से स्टे लिया हुआ था. इसके बावजूद एसडीएम और अन्य अधिकारियों ने मौके पर पहुंचकर बुलडोजर चला दिया. दुकान से क्या-क्या सामान इन्होंने जब्त किया, उसकी डिटेल तक नहीं दी. कोर्ट में जाकर हमने अवमानना की शिकायत दी तो एसडीएम ने हमारे मां-बाप को घर जाकर धमकी दी.
अब ये तय करना अदालत और पुलिस का काम है कि आरोप सच्चे हैं या झूठे हैं, लेकिन जिन अधिकारियों को जनता का सेवक कहा जाता है, वो जनता का मालिक या जमींदार क्यों बनने लगते हैं, क्या एसडीएम अमित चौधरी की नजरों में जनता और जनता के प्रत्याशी की कोई कीमत नहीं है, नरेश मीणा ने जो किया, उसकी सजा अदालत तय करेगी, जिन धाराओं के तहत नरेश मीणा के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ है,
उसमें 2 से 7 साल तक की सजा मीणा को हो सकती है, सियासत में अक्सर कहा जाता है जो नेता जेल जाता है, वो बाहर आते ही बड़ा नेता बन जाता है, और नरेश मीणा ने जनता की मांग को लेकर एसडीएम से पंगा लिया, इसलिए लोगों की नजर में नरेश मीणा की अहमियत बढ़ी है, पर कानून की नजर में जो गलत है, वो गलत ही रहेगा. एसडीएम अमित चौधरी पर जो आरोप लगे हैं,
वो भी गंभीर हैं, पर अमित चौधरी हर आरोपों को सिरे से खारिज करते हैं, चाहे वो हिंडोली का मामला हो या फिर मालपुरा का, हर जगह अमित चौधरी ही विवादों में क्यों फंसते हैं, ये बड़ा सवाल है, या तो वो जरूरत से ज्यादा ईमानदार हैं, या फिर बात समझ से परे है.