नई दिल्ली: नेपाल की पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की जो इस पद पर पहली महिला थीं शुक्रवार को देश की अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने के लिए चुनी गईं. इससे केपी शर्मा ओली सरकार के गिरने के बाद कई दिनों की अटकलों का अंत हो गया. ओली सरकार युवाओं के नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शनों के कारण गिर गई थी. नेपाल की संसद को भी भंग कर दिया गया है.
शपथ ग्रहण समारोह स्थानीय समयानुसार शाम 8:45 बजे (भारतीय समयानुसार शाम 8:30 बजे) निर्धारित है. रिपोर्ट्स के अनुसार, कार्की ने भारत के वाराणसी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से पढ़ाई की थी. वे चार उम्मीदवारों में से एक थीं. आखिरकार, नेपाल के राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल, सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिग्देल और प्रदर्शनकारियों के प्रतिनिधियों (जिन्हें "जेन जेड" कहा जा रहा है) के बीच बातचीत के बाद उन्हें चुना गया.
नेपाल की अंतरिम नेतृत्व संभाल रही सुशीला कार्की का जन्म 7 जून 1952 को बिराटनगर में हुआ. सात भाई-बहनों में सबसे बड़ी कार्की ने 1979 में वकालत की शुरू की. वकालत के बाद लंबे समय तक अध्धयन से जुड़ी रही. वर्ष 2007 में उन्हें सीनियर एडवोकेट का दर्जा मिला. 2016 में सुशीला कार्की नेपाल की पहली महिला चीफ जस्टिस बनीं. हालांकि, उनका कार्यकाल हालांकि लंबा नहीं रहा, लेकिन छोटे कार्यकाल में उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले की.
सुशीला कार्की के खिलाफ 2017 में नेपाली कांग्रेस और माओवादी सेंटर ने महाभियोग प्रस्ताव लाया. इस प्रस्ताव के बाद देशभर में विरोध हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने संसद को इस प्रक्रिया पर रोक लगाने का आदेश दिया. अंततः दोनों दलों को प्रस्ताव वापस लेना पड़ा. इस घटना ने कार्की को जनता के बीच स्थापित कर दिया.
कार्की के पति दुर्गा प्रसाद नेपाली कांग्रेस के प्रमुख नेता रहे हैं. छात्र जीवन से ही लोकतांत्रिक आंदोलनों में सक्रिय हो गए. नेपाल में एक विमान अपहरण प्रकरण में भी उनका नाम आया था. न्यायपालिका से रिटायरमेंट के बाद सुशीला कार्की ने लेखनी शुरू की. उनकी आत्मकथा ‘न्याय’ 2018 में और उपन्यास ‘कारा’ 2019 में प्रकाशित हुआ. सुशीला कार्की ने बिराटनगर जेल के अनुभवों को साहित्यिक रूप दिया.