नई दिल्ली : जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने कई परिवारों की ज़िंदगी को बदलकर दिया. अपनों को खोने का दर्द आज भी परिवार के लोगों को है. 22 अप्रैल को पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने निर्दोष व मासूम पर्यटकों को निशाना बनाया, जिसमें 26 लोगों की मौत हो गई. वहीं, कई परिवार उजड़ गए. सरकार ने इस हमले का जवाब देने के लिए ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया. आतंकियों पर हुई इस कार्रवाई को पूरे देशवासियों ने मजबूत कदम मानते हुए सराहना की, लेकिन अब भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले क्रिकेट मुकाबले ने पीड़ित परिवारों के ज़ख्म फिर से कुरोंद दिए हैं.
पहलगाम में हुए आतंकी हमले में गुजरात के भावनगर के सावन परमार ने अपने पिता और 16 साल के भाई को खो दिया. आज भी जब वह उस दिन को याद करते हैं तो आंखें नम हो जाती हैं. उन्होंने कहा कि जब हमने सुना कि भारत-पाकिस्तान का मैच होने जा रहा है तो हम आहत हो गए. पाकिस्तान ने हमारा घर उजाड़ दिया. अब उस देश से हमारा किसी भी तरह का रिश्ता नहीं होना चाहिए. अगर मैच खेलना ही है तो पहले मेरा भाई लौटा दीजिए, जिसको आतंकियों ने गोलियों से छलनी कर दिया था. सच कहूं तो अब ऑपरेशन सिंदूर भी अधूरा और बेकार लगता है.
आतंकवाद का सफाया होने तक न हो मैच
सावन की मां किरण परमार ने सवाल उठाते हुए कहा कि जब तक आतंकवाद का पूरी तरह से सफाया नहीं हो जाता है, तब तक पाकिस्तान के साथ खेल या किसी भी तरह का संबंध नहीं रखना चाहिए. हमारे जैसे परिवारों से मिलकर देखिए कि आज भी जख्म कितने गहरे हैं. यह मैच हमारे लिए अपमान जैसा है. यह विवाद सिर्फ एक क्रिकेट मैच तक सीमित नहीं रह गया है. यह सवाल इस बात का है कि आतंकवाद से पीड़ित परिवारों की भावनाओं से ऊपर खेल की भावना को रखी जा सकती है.
खेल को हर चीजों से रखना चाहिए अलग
कुछ लोगों का मानना है कि खेल को राजनीति और युद्ध से एकदम अलग देखा जाना चाहिए, लेकिन जिन लोगों ने अपने परिवार को खोया है, उनके लिए यह तर्क स्वीकार करना आसान नहीं है. विपक्षी दल लगातार सरकार से पूछ रहे हैं कि जब पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाए जा रहे हैं तो फिर क्रिकेट संबंध क्यों बना हुआ हैं. वहीं, पूर्व क्रिकेटर और भाजपा नेता केदार जाधव ने भी इस मुकाबले का विरोध करते हुए कहा कि भारत को पाकिस्तान के खिलाफ मैदान पर उतरना नहीं चाहिए, क्योंकि यह शहीदों के परिवारों के साथ अन्याय होगा.
अलग-अलग है भावनाएं
क्रिकेट प्रशंसकों का मानना है कि खेल को खेल की तरह देखा जाना चाहिए. क्रिकेट का मंच दो देशों के बीच संवाद और आपसी संबंधों को बेहतर बनाने का माध्यम हो सकता है, लेकिन आतंकवाद से प्रभावित परिवार और उनके समर्थक कहते हैं कि यह सिर्फ एक खेल नहीं है, बल्कि उन ज़ख्मों को नज़रअंदाज़ करने जैसा है जो आज भी ताज़ा मैच होने की बात सुनकर ताजा हो जाता है.