नई दिल्ली: मुंबई के 7/11 ट्रेन धमाकों के मामले में निर्दोष साबित होने के बाद 9 साल जेल की सजा काट चुके डॉ. वाहिद दीन मोहम्मद शेख ने अब 9 करोड़ रुपये के मुआवजे की गुहार लगाई है. उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी), महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग (एमएसएचआरसी) और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनएमसी) में अपनी याचिका दाखिल की है, जिसमें गलत गिरफ्तारी, टॉर्चर और परिवार पर पड़े बेरहम असर का जिक्र किया गया है.
यह मामला 11 जुलाई 2006 का है, जब मुंबई की लोकल ट्रेनों में महज 11 मिनट के अंतराल पर सात जगहों पर बम विस्फोट हुए थे. इन धमाकों में 189 लोग मारे गए और 800 से ज्यादा घायल हो गए थे. एंटी-टेररिज्म स्क्वाड (एटीएस) ने 13 लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें से विशेष अदालत ने 2015 में वाहिद को बरी कर दिया था, क्योंकि उनके खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला. बाकी 12 को मौत या उम्रकैद की सजा सुनाई गई, लेकिन इस साल 21 जुलाई को बॉम्बे हाईकोर्ट ने सभी 12 को भी बरी कर दिया, यह कहते हुए कि अभियोजन पक्ष ने आरोप साबित करने में पूरी तरह नाकाम रहा.
अब 46 वर्षीय वाहिद, जो गुजरात के मुंद्रा से हैं, ने अपनी अपील में बताया कि 28 साल की उम्र में महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (एमसीओसीए) के तहत उन्हें फंसाया गया. आर्थर रोड जेल में 9 साल गुजारने के बाद 11 सितंबर 2015 को जज यतिन डी. शिंदे की अदालत ने उन्हें रिहा किया. उन्होंने कहा, "मैंने अपनी जवानी के सुनहरे साल खो दिए, आजादी और सम्मान गंवाया. हिरासत में क्रूर यातनाओं से मुझे ग्लूकोमा, पुराना दर्द और कई स्वास्थ्य मुश्किलें हुईं. जेल में रहते मेरे पिता का निधन हो गया, मां की मानसिक हालत बिगड़ गई, पत्नी ने अकेले बच्चों को संभाला. मेरे बच्चे 'आतंकी के लाल' के ताने सहते हुए बिना पिता के बड़े हुए. परिवार आर्थिक संकट में डूब गया, और आज भी मैं करीब 30 लाख के कर्ज तले दबा हूं."
वाहिद अब एक प्राइमरी स्कूल में शिक्षक हैं, लेकिन जेल की सजा ने उनके करियर और पढ़ाई को तबाह कर दिया. उन्होंने पीएचडी पूरी की, जो जेल में राजनीतिक कैदियों की साहित्य पर आधारित है, और अब 'इनोसेंस नेटवर्क' नामक एनजीओ चलाते हैं, जो गलत तरीके से फंसाए गए लोगों के लिए काम करता है. पहले वे मुआवजा नहीं मांग रहे थे, क्योंकि सह-आरोपी सजा काट रहे थे.
उन्होंने कहा, "मुझे डर था कि मेरी मांग से राज्य उनका और बुरा बर्ताव करेगा." लेकिन अब सबकी बरी होने से मामला 'फर्जी' साबित हो गया है, इसलिए यह मांग जायज है.उन्होंने आईएसआरओ वैज्ञानिक नंबी नारायणन को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए 50 लाख, और एनएचआरसी के अन्य फैसलों का हवाला दिया. वाहिद का मानना है कि कोई पैसे उनकी खोई जिंदगी या परिवार के दर्द की भरपाई नहीं कर सकते, लेकिन यह मुआवजा गलती को मान्यता देगा और भविष्य में निर्दोषों को बचाएगा. आयोगों में उनकी अपील पर जल्द सुनवाई होगी.