भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने जिस प्रकार से हरियाणा विधानसभा में जीत हासिल की है, ठीक उसी प्रकार से यूपी विधानसभा उपचुनाव में भी जीत का प्लान बना रही है. पार्टी को उम्मीद है कि अगर अखिलेश यादव के पीडीए का तोड़ निकाल लिया जाए तो यहां भी जीत आसान हो जाएगी. उत्तर प्रदेश में भाजपा की क्या तैयारी है, बताने से पहले जान लीजिए कि अभी अखिलेश यादव की अगुवाई में इंडिया गठबंधन और भाजपा कितना मजबूत है?
लोकसभा चुनाव में जिस प्रकार से अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने यूपी में एनडीए (NDA) को पटखनी दी, उससे अंदाजा लगाया जा रहा था कि हरियाणा में भी भाजपा को भारी नुकसान हो सकता है, लेकिन वैसा नहीं हुआ. यहां भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में सफल रही. लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या हरियाणा का फॉर्मूला अपना कर भाजपा सपा-कांग्रेस को रोक पाएगी. जबकि लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव की पार्टी ने 37 सीटों पर कब्जा जमाया था और भाजपा महज 33 सीटों पर सिमट गई थी.
लोकसभा चुनाव के बाद मंथन के दौरान पता चला कि अखिलेश यादव ने एक ऐसा पीडीए (PDA) कार्ड खेला, जिसमें बीजेपी उलझ कर रह गई है और केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं बना सकी. लेकिन हरियाणा में जैसे ही जीत मिली, मानों बीजेपी में जान आ गई है. अब भाजपा को लगने लगा है कि आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव में भी ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जीत मिल सकती है. भाजपा यहां भी हरियाणा वाले फॉर्मूले को अपनाने जा रही है.
दरअसल, हरियाणा में सत्ता विरोधी लहर को कम करने के लिए भाजपा ने पहले मनोहर लाल खट्टर (Manohar Lal Khattar) को सीएम पद से हटाया और ओबीसी चेहरा नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया. भाजपा को इसका फायदा यह हुआ है कि जाटों को छोड़कर ज्यादातर ओबीसी मतदाताओं ने बीजेपी को वोट दिया. लोकसभा चुनाव में इसी फॉर्मूला को अखिलेश यादव ने भी अपनाया था. यहां अखिलेश यादव पीडीए लेकर आए और भाजपा को मात्र 33 सीटों पर ही रोक दिया.
क्या होता है पीडीए?
पीडीए का मतलब, पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक से है. अखिलेश यादव ने इन जातियों के लोगों को जोड़कर रणनीति पर काम करना शुरू किया. इसका लाभ सपा को लोकसभा चुनाव में मिला और भाजपा को भारी नुकसान हो गया. यहां अखिलेश यादव ने जिन नए मतदाताओं को जोड़ा था, वे पिछड़ा और दलित समुदाय के थे. भाजपा ने इसी फॉर्मूले को हरियाणा में प्रयोग किया. पहले कुमारी शैलजा के बहाने दलित वोटर को दूर किया, फिर नायब सिंह सैनी को आगे कर ओबीसी का वोट बटोर लिया.
अब बारी है उत्तर प्रदेश विधानसभा उप चुनाव का. बीजेपी यहां भी ओबीसी मतदाताओं पर काम करना चाहती है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में 50 प्रतिशत वोटर ओबीसी समुदाय से आते हैं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा पूरे यूपी में अभियान चलाने की तैयारी में जुटा हुआ है, ताकि ज्यादा से ज्यादा ओबीसी वोटर को जोड़ा जा सके. यहां बीजेपी पिछड़ा वर्ग को समझाने की कोशिश करेगी कि भाजपा सरकार में उनके अधिकार सुरक्षित हैं.
दावा किया जा रहा है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) और बीजेपी इन दिनों ओबीसी वर्ग में फैले गलत धारणाओं को दूर करने पर काम कर रहे हैं. इसमें RSS के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं. बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता आलोक अवस्थी कहते हैं... हरियाणा में हमने 36 समुदायों को साथ लेने का प्रयास किया. इसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस को करारी हार मिली. उन्होंने कहा कि भविष्य में भी भाजपा इसी फॉर्मूले पर कार्य करेगी, ताकि सभी समुदायों को साथ लेकर चल सकें. हमारा लक्ष्य जनता का विश्वास और समर्थन हासिल करना है. ऐसे में अगर भाजपा ने हरियाणा वाले फॉर्मूले पर काम करना शुरू किया तो उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और राहुल गांधी के लिए मुश्किल हो सकती है.