भारत सरकार ने चीन से आने वाले उत्पादों (Chineese Goods) की कड़ी निगरानी करने का फैसला लिया है. यह कदम तब उठाया गया जब इजराइल ने हिज्बुल्ला के खिलाफ अपने सुरक्षा उपायों को मजबूत किया था. इस घटना के बाद, भारतीय सरकार ने सतर्कता बढ़ा दी है और "विश्वसनीय स्रोतों" के माध्यम से विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की जांच कराने का फैसला किया है. इनमें पार्किंग सेंसर्स, स्मार्ट मीटर, ड्रोन के हिस्से, लैपटॉप और डेस्कटॉप कंप्यूटर शामिल हैं.
सरकार का उद्देश्य "इंटरनेट ऑफ थिंग्स" (IoT) से संबंधित उत्पादों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है. इन उपकरणों से महत्वपूर्ण डेटा लीक होने की आशंका है, खासकर उन संगठनों के लिए जो भारत की उत्तरी सीमा से परे स्थित हैं. हाल ही में, सरकार ने सुरक्षा कैमरों की जांच को अनिवार्य किया है क्योंकि सर्विलांस कैमरों में कुछ कमजोरियां पाई गई थीं. इसके लिए संबंधित प्रयोगशाला से आवश्यक प्रमाण पत्र लेना होगा.
सरकार "सिस्टम्स ऑन ए चिप" (SoCs) की भी जांच कर रही है, जिसमें एकीकृत सर्किट (Integrated Circuits) पर कई इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम के घटक होते हैं. एक सूत्र के अनुसार, "हम अपने इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला में किसी भी कमजोर कड़ी से बचना चाहते हैं." ऐसे कमजोर लिंक का लाभ उठाने के लिए अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भी तैयार हैं, खासकर जब हम एक प्रतिकूल पड़ोसी क्षेत्र में रह रहे हैं.
पहले, सरकार ने चीन से आयात को रोकने के लिए टैरिफ बढ़ाने का प्रयास किया था, लेकिन अब वह तकनीकी मानकों पर ध्यान केंद्रित कर रही है. WTO के IT समझौते के तहत टैरिफ बढ़ाने की क्षमता सीमित है, और चीन के कम लागत वाले उत्पादों ने बाजार में अपनी हिस्सेदारी बनाए रखी है.
सरकार ने पहले सीसीटीवी मानकों को सरकारी ठेकों पर लागू किया था, और अब इसे खुदरा क्षेत्र में भी लागू करने का विचार है. इससे भारतीय विक्रेताओं को योजना बनाने और मानकों का पालन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक सप्लाई नेटवर्क बनाने का अवसर मिलेगा.
हालांकि, पीसी और लैपटॉप उद्योग ने पिछले वर्ष सरकारी आयात नियंत्रणों का विरोध किया था, यह कहते हुए कि इससे ग्राहकों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. लेकिन सरकार का मानना है कि बदलाव धीरे-धीरे लागू करना बेहतर होगा. इस तरह, भारत की सुरक्षा और आर्थिक स्थिति को मजबूत किया जा सकेगा.