नई दिल्ली: संभाजी महाराज के साथ औरंगजेब ने कैसी क्रूरता की, ये आपने छावा मूवी में देखी, लेकिन इसका बदला मराठों ने कैसे लिया, कैसे मराठों के दो सेनापति ने औरंगजेब को दक्कन की पठार में ही दफ्न होने पर मजबूर कर दिया, अगर सुनेंगे तो आप भी कहेंगे ये मराठे किस मिट्टी के बने हैं, जिन्होंने टोपी सीलते औरंगजेब की लाखों की सेना को नेस्तानाबूद कर दिया.
उधर संभाजी महाराज की मुगल दरबार में पेशी होती है, जहां औरंगजेब कहता है हमारी अधीनता स्वीकार करो, इस्लाम कबूल करो. संभाजी इनकार करते हैं तो जीभ निकाल दी जाती है, फिर पूछा जाता है तो संभाजी कागज कलम मंगवाते हैं और लिखकर देते हैं अगर आप अपनी बेटी भी दे दें तो मैं ये स्वीकार नहीं करूंगा. उसके बाद उनको यातनाएं दी जाती हैं, जले-कटे पर नमक छिड़का जाता है, पर संभाजी का मिजाज नहीं बदलता.
सिर्फ 31 साल की उम्र में 11 मार्च 1689 को संभाजी महाराज की मौत हो जाती है. इधर गम में डूबी संभाजी महाराज की पत्नी यसुबाई ने मुगलों के खिलाफ छापामार युद्ध की रणनीति को और धारदार बना दिया. कई महत्वपूर्ण किले मराठाओं ने फिर से जीत लिए, जिससे मुगलों के लिए दक्षिण भारत पर नियंत्रण बनाए रखना मुश्किल हो गया. जिससे आक्रोशित औरंगजेब ने 1689 में महारानी यसुबाई और उनके छोटे बेटे शाहू महाराज को बंदी बना लिया.
उन्हें मुगल दरबार में राजनीतिक बंदी के रूप में रखा गया ताकि मराठा विद्रोह को कमजोर किया जा सके. लेकिन संताजी घोरपड़े ने पूरी कहानी पलटकर रख दी. उधर संभाजी महाराज के छोटे भाई राजाराम को छत्रपति की गद्दी मिलती है, और सेनापति मल्होजी घोरपड़े के बेटे संताजी घोरपोड़े नई तैयारी में जुट जाते हैं, उनके सीने में न सिर्फ अपने राजा की मौत के बदले की आग धधक रही थी, बल्कि पिता का बदला भी लेना था, जो संभाजी महाराज को बचाते वक्त वीरगति को प्राप्त हो गए थे.
करीब 2 हजार सैनिकों के साथ संताजी घोरपोड़े मुगलों से बदले की तैयारी करते हैं, एक दिन ख़बर मिलती है औरंगजेब महाराष्ट्र के तुलजापुर नाम की जगह पर डेरा डाले बैठा है. ये वही जगह थी जहां संभाजी महाराज के साथ मुगलों ने निर्दयिता की थी. गुरिल्ला युद्ध में पारंगत संताजी और धनाजी घायल शेर की तरह मुगलों पर टूट पड़ते हैं. औरंगजेब की सेना बचाओ-बचाओ चिल्लाते भागने लगी, यहां औरंगजेब तो संताजी के हाथ नहीं आया, लेकिन अगली सुबह जब ये तांडव रुका तो वो अपनों की लाश देखकर चीखने लगा और कहने लगा हाय अल्लाह, ये मराठे किस मिट्टी के बने हैं, जो न रुकते हैं, न थकते हैं, हमारी इतनी बड़ी सेना को तहस-नहस कर देते हैं, ये औरंगजेब के आत्मविश्वास की पहली हार थी.
उधर इस जीत से उत्साहित संताजी मुगलों के नए ठिकाने पर कब्जे का प्लान बनाने लगते हैं. दो दिन बाद ही रायगढ़ के किले पर हमला बोल देते हैं. संभाजी महाराज की पत्नी येसुबाई को कैद करने वाले मुगल सरदार जुल्फिकार की सेना को न सिर्फ तितर-बितर करते हैं, बल्कि मुगलों का बेशकीमती खजाना भी लूट ले जाते हैं, लेकिन अभी बदला पूरा नहीं हुआ था, क्योंकि संभाजी महाराज को धोखे से कैद कराने वाला मुकर्रम खान खुले में घूम रहा था.
मुकर्रम खान को औरंगजेब ने महाराष्ट्र के कोल्हापुर और कोंकण प्रांत का सूबेदार बना दिया था. पर कहते हैं अपनों को धोखा देकर हासिल की गई कुर्सी ज्यादा नहीं रहती. दिसंबर 1689 में मुकर्रम खान की विशाल सेना को संताजी घोरपड़े ने चारों तरफ से घेरकर ऐसा रौंदा कि मुकर्रम खान बख्शने की गुहार लगाने लगा, पर संताजी ने दौड़ा-दौड़ाकर उसे इतना कूटा, इतना कूटा कि मुगल की सेना उसे उसी हाल में जंगलों में लेकर भाग गई, पर कहते हैं जैसे ही औरंगजेब तक पहुंचा, तड़प-तड़प कर उसने दम तोड़ दिया.
जो दर्द औरंगजेब ने संभाजी को दिया था, उसका एहसास मुकर्रम खान को आखिरी वक्त में जरूर हुआ होगा. जिसे देखकर संभाजी महाराज के भाई छत्रपति राजाराम महाराज ने उन्हें मराठा सेना का सेनापति बना दिया. नतीजा 15-20 हजार की फौज लेकर संताजी घोरपड़े कर्नाटक की ओर निकल पड़े और मुगलों के एक-एक किले पर न सिर्फ कब्जा जमाया, बल्कि कहते हैं औरंगजेब को इतना मजबूर कर दिया कि वो सहयाद्रि की पहाड़ों में छिपने लगा, और महाराष्ट्र के अहमदनगर के पास 3 मार्च 1707 को औरंगजेब की मौत हो जाती है.
88 साल के औरंगजेब की मौत को कुछ लोग प्राकृतिक मौत मानते हैं, तो कई लोग कहते हैं उसने जितनी क्रूरता की उसका दंड उसे बुढ़ापे में मिला. आज औरंगाबाद के खुल्दाबाद में उसकी खुली कब्र है, जिस पर बुलडोजर चलाने की मांग उठने लगे हैं.