नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई के सम्मान पर प्रहार की घटना के विरुद्ध मंगलवार को देश के कोने-कोने में वकीलों ने जोरदार हंगामा किया. दिल्ली से लेकर विभिन्न राज्यों तक फैले प्रदर्शनों में बार एसोसिएशन के सदस्यों ने इसे न केवल एक व्यक्ति विशेष पर कोशिश, बल्कि पूरे न्याय तंत्र की जड़ों को कमजोर करने की चाल करार दिया. उनका कहना था कि यह संविधान के मूलभूत सिद्धांतों पर सीधी ठोकर है.
वकीलों ने कहा कि हमारा राष्ट्र संविधान की मर्यादा पर टिका है, न कि धार्मिक आड़ में विष फैलाने वालों के रहमोकरम पर. प्रदर्शनकारियों का कहना था कि रोजाना दलित समुदाय पर क्रूर हत्याएं, अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और हिंदू संकट में जैसे जहर उगलने वाले नारों से समाज को बांटा जा रहा है. अधिवक्ताओं ने स्पष्ट शब्दों में बताया कि कोर्ट में जो तमाशा हुआ, वह सीजेआई तक सीमित नहीं है यह पूरी भारतीय न्याय व्यवस्था पर चोट है.
वकीलों ने मांग की है कि दोषियों पर फौरन कड़ी कानूनी चाबुक चले, ताकि आगे ऐसी गुस्ताखियां न सरजाम हों. इसी क्रम में तमिलनाडु के मदुरै में मद्रास हाईकोर्ट की बेंच के बाहर करीब 50 से अधिक वकीलों ने तख्तियां थामे धरना दिया. उन्होंने जस्टिस गवई के अपमान की तीखी भर्त्सना की और घोषणा की कि यह आंदोलन मदुरै तक ठहरने वाला नहीं. एक वकील ने कहा कि यह हलचल पूरे देश में फैलेगी. आज जिला अदालतों में अवकाश था, लेकिन जल्द ही इसे जन-आंदोलन का रूप देंगे. न्यायपालिका को भयभीत करने की कोई साजिश हम बर्दाश्त नहीं करेंगे.
महाराष्ट्र के कोल्हापुर में छत्रपति शिवाजी महाराज चौक पर इंडिया फ्रंट संगठन के बैनर तले मुख्य न्यायाधीश पर हमले के खिलाफ जमकर हल्ला बोला गया, जहां सैकड़ों ने एकजुट होकर न्याय की मांग की. इसी बीच सुप्रीम कोर्ट के बाहर भी प्रदर्शन किया गया, हालांकि यहां कम लोग और वकीलों के जुटने की बात कही जा रही है. पत्रकार प्रभाकर मिश्रा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक वीडियो पोस्ट कर कहा कि सीजेआई जस्टिस गवई पर हुए हमले के विरोध में सुप्रीम कोर्ट के बाहर प्रदर्शन था. इस दौरान यहां करीब 50 पुलिसकर्मी मौजूद रहे, करीब 20 कैमरे से वीडियो को रिकॉर्ड किया जा रहा था, लेकिन कुल पांच वकील ही प्रदर्शन में आए.
उधर सुप्रीम कोर्ट के वकील राकेश किशोर, जो इस मामले के आरोपी हैं, ने अपनी सफाई में कहा, "बार काउंसिल के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा की अगुवाई वाली कमिटी ने सोमवार रात को मुझे सस्पेंड करने वाला एक पत्र थमाया है, जिसका नमूना मैं पेश कर सकता हूं. यह उनका तानाशाही वाला आदेश मात्र है. अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 35 के तहत किसी वकील पर कोई सजा देने से पहले कारण बताओ नोटिस जारी करना अनिवार्य है, उनका पक्ष सुने बिना निलंबन या रोल से नाम काटना कानून-विरोधी है."