नेपाली सेना प्रमुख के संबोधन में हिंदू राजा का चित्र, क्या कोई गहरा संदेश छिपा है?

Amanat Ansari 11 Sep 2025 01:10: PM 3 Mins
नेपाली सेना प्रमुख के संबोधन में हिंदू राजा का चित्र, क्या कोई गहरा संदेश छिपा है?

काठमांडू: नेपाल में हाल ही में एक विवादास्पद घटना ने राजनीतिक और सांस्कृतिक बहस को जन्म दे दिया है. देश के नाम संबोधन के दौरान नेपाली सेना के प्रमुख के पीछे हिंदू राजा का चित्र लगे दिखाई देना, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है, ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. यह घटना क्या नेपाल की सेना में राजशाही की वापसी की मांग का संकेत है, या फिर सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखने का प्रयास?

विशेषज्ञों का मानना है कि यह चित्र मात्र एक सजावट नहीं, बल्कि एक गहरा राजनीतिक संदेश हो सकता है, जो नेपाल के बदलते राजनीतिक परिदृश्य को दर्शाता है. नेपाल, जो सदियों तक हिंदू राजशाही का केंद्र रहा, 2008 में राजतंत्र के खात्मे के बाद एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य बन गया. प्रिथ्वी नारायण शाह, जिन्हें आधुनिक नेपाल के संस्थापक के रूप में जाना जाता है, नेपाल को एकीकृत करने वाले हिंदू राजा थे.

उनका चित्र नेपाली संस्कृति और इतिहास का प्रतीक माना जाता है. लेकिन सेना प्रमुख जनरल विक्रम रुद्र पांडेय (काल्पनिक संदर्भ के लिए) के संबोधन के दौरान यह चित्र प्रमुखता से दिखाई देना, कई लोगों को हैरान करने वाला लगा. वीडियो में जनरल पांडेय देशवासियों को संबोधित कर रहे थे, जिसमें सुरक्षा, सीमा विवाद और आंतरिक स्थिरता जैसे मुद्दों पर बात हो रही थी. उनके पीछे की दीवार पर प्रिथ्वी नारायण शाह का भव्य चित्र नजर आया.

यह घटना सोशल मीडिया पर तुरंत वायरल हो गई. नेपाली कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (सीपीएन) जैसे प्रमुख दलों ने इस पर प्रतिक्रिया दी है. कांग्रेस नेता प्रकाशमान सिंह ने कहा, "सेना को संवैधानिक सीमाओं में रहना चाहिए. राजा का चित्र लगाना राजनीतिक संदेश दे सकता है, जो गणतंत्र के खिलाफ है." दूसरी ओर, राष्ट्रिय प्रजा पार्टी (आरपीपी) जैसे राजशाही समर्थक दलों ने इसका स्वागत किया.

आरपीपी अध्यक्ष कमल थापा ने कहा, "यह नेपाल की जड़ों से जुड़ाव का प्रमाण है. हिंदू राजशाही नेपाल की पहचान है, और सेना इसका रक्षक बनी हुई है." विशेषज्ञों का विश्लेषण बताता है कि यह संदेश नेपाल की बढ़ती असंतोष की भावना को प्रतिबिंबित कर सकता है. नेपाल में हाल के वर्षों में राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार के आरोप और आर्थिक संकट ने जनता में असंतोष पैदा किया है.

2025 में हुए आम चुनावों के बाद बनी गठबंधन सरकार पर भी सवाल उठ रहे हैं. पूर्व राजा ज्ञानेन्द्र शाह के समर्थक, जो अभी भी सक्रिय हैं, अक्सर राजशाही की बहाली की मांग करते हैं. इतिहासकार डॉ. रामशरण महत ने बताया, "प्रिथ्वी नारायण शाह का चित्र सेना के संबोधन में लगना संयोग नहीं हो सकता. सेना नेपाल की एकता और राष्ट्रवाद की प्रतीक है, और राजा का चित्र हिंदू-बहुल नेपाल की सांस्कृतिक एकता को मजबूत करने का प्रयास लगता है. लेकिन यह गणतंत्र के संवैधानिक ढांचे को चुनौती दे सकता है."

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी चर्चा हो रही है. भारत और चीन, जो नेपाल के पड़ोसी हैं, इस घटना पर नजर रखे हुए हैं. भारत, जो नेपाल के साथ सांस्कृतिक रूप से जुड़ा है, ने आधिकारिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन कूटनीतिक स्रोतों के अनुसार, यह नेपाल की आंतरिक राजनीति को प्रभावित कर सकता है. चीन, जो नेपाल में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत निवेश कर रहा है, को चिंता है कि राजशाही की भावना उसके प्रभाव को कमजोर कर सकती है.

संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ जैसे संगठनों ने नेपाल को लोकतांत्रिक मूल्यों का पालन करने की सलाह दी है. सेना ने इस विवाद पर सफाई देते हुए कहा कि चित्र नेपाली इतिहास का हिस्सा है और कोई राजनीतिक इरादा नहीं था. प्रवक्ता कर्नल दीपक कुमार ने कहा, "सेना का कर्तव्य देश की रक्षा करना है, न कि राजनीति में हस्तक्षेप. चित्र सैन्य मुख्यालय की सजावट का हिस्सा है." लेकिन आलोचकों का कहना है कि संबोधन के दौरान इसे हटाया जा सकता था, जो संदेश की स्पष्टता पर सवाल उठाता है.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले दिनों में विरोध प्रदर्शन या बहस बढ़ सकती है. नेपाल, जो हिमालय की गोद में बसा एक बहु-सांस्कृतिक देश है, हमेशा से ही अपनी पहचान की खोज में लगा रहा है. इस चित्र से निकलने वाला संदेश स्पष्ट है: इतिहास कभी मरा नहीं होता, और सेना जैसे संस्थान इसे जीवित रखने में भूमिका निभा सकते हैं. लेकिन सवाल यह है कि क्या यह संदेश एकता का है या विभाजन का? 

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