नई दिल्ली: देश में वायु प्रदूषण की 'बेहद गंभीर' स्थिति के बीच, एक संसदीय पैनल ने मंगलवार को कहा कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण योजना के लिए पर्यावरण मंत्रालय को आवंटित 858 करोड़ रुपए का 1% भी 2024-25 वित्तीय वर्ष के अंत तक उपयोग नहीं किया गया है. इस योजना का मुख्य उद्देश्य पूरे भारत में वायु गुणवत्ता की निगरानी करना और देश में जल गुणवत्ता और ध्वनि के स्तर की निगरानी के अलावा उचित वायु प्रदूषण शमन उपाय करना है.
विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन पर संसदीय स्थायी समिति ने मंगलवार को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा, ''समिति यह देखकर हैरान थी कि 'प्रदूषण नियंत्रण' के लिए 2024-25 के लिए आवंटित 858 करोड़ रुपए (संशोधित अनुमान) में से 31 जनवरी तक केवल 7.22 करोड़ रुपए खर्च किए गए.'' हालांकि, मंत्रालय ने पैनल को बताया कि वित्त वर्ष 2024-25 के लिए योजना में अधिकांश निधियों का उपयोग अब तक नहीं किया जा सका है, क्योंकि वित्त वर्ष 2025-26 तक ‘प्रदूषण नियंत्रण’ योजना को जारी रखने की मंजूरी का इंतजार है.
इसने कहा, ''निधि के वितरण और उपयोग की योजना पहले से ही तैयार है और मंजूरी मिलते ही इसे क्रियान्वित किया जाएगा.'' हालांकि, भाजपा के राज्यसभा सदस्य भुवनेश्वर कलिता की अध्यक्षता वाली समिति निधि के कम उपयोग के पीछे के कारण से आश्वस्त नहीं दिखती है, और मंत्रालय से आत्मनिरीक्षण करने और इस ''सकल कम उपयोग'' के कारणों पर गंभीरता से विचार करने को कहा.
पैनल ने इस बात पर भी आश्चर्य व्यक्त किया कि राशि (858 करोड़ रुपए), जो मंत्रालय के वार्षिक आवंटन का 27% से अधिक है, 2025-26 तक योजना को जारी रखने की मंजूरी के बाद से अप्रयुक्त रह गई. ''यहां तक कि वित्तीय वर्ष के अंत में भी'' इस बात को रेखांकित करते हुए कि देश में वायु प्रदूषण की स्थिति वास्तव में बहुत गंभीर है और यह सभी को प्रभावित कर रही है, पैनल ने कहा, “ऐसे समय में जब मंत्रालय को बिगड़ती वायु गुणवत्ता की गंभीर और महत्वपूर्ण चुनौती का समाधान करने की आवश्यकता है, मंत्रालय संबंधित योजना को जारी रखने का निर्णय नहीं ले पाया है, जिसके परिणामस्वरूप योजना के लिए आवंटित धन का 1% भी अब तक उपयोग नहीं किया गया है.''
पैनल ने यह भी कहा कि हालांकि दिल्ली अपनी ''लगातार बिगड़ती वायु गुणवत्ता'' के कारण खबरों में रही है, लेकिन देश के अन्य शहर भी पीछे नहीं हैं और उच्च 'वायु गुणवत्ता सूचकांक' (AQI) स्तरों का अनुभव कर रहे हैं. इसने कहा, ''देश में बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के कारण न केवल प्रदूषण संबंधी कई मानव रोग और स्वास्थ्य स्थितियां उत्पन्न होती हैं, बल्कि यह हमारी पारिस्थितिकी पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है.''